Monday, August 25, 2008

तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच शब्द ही तो पुल थे

जब से से ये पुल हुआ है जर्जर

तब से न संवाद है न शब्द है

मै मै हूँ न तुम तुम हो


वो भी एक वक्त था

तुम्हे याद हो न याद हो

शब्द भी न कम थे

बातें भी थी हजारों

न तुम ही थकते थे

न मै लेता था उबासी

दिन-रात, सुबह शाम

दोपहर हो के बरसात

चिलचिलाती धूप या शरद रात

करते थे बातें, गूंथते थे शब्द

वो खिलखिलाना, वो चुलबुलापन

वो शरारतें, न छूटने वाली आदतें

वो तुम्हारा घुडकना, अक्सर रूठना

एक दो रोज रूठे रहना

चुपके से मान जाना
न रह पाते थे तुम भी

न रह पाते थे हम ही



बारीशों ने गज़ब ढाया

धूल अंधडों ने भरमाया

बाढ़ आई, हुआ कीचड़ ही कीचड

घुटनों तक दलदल,

हर पथ-हर पग
पुल हुआ कमजोर

दरका, दहला, कांपा, टूटा

अब लटका हुआ वो पुल है

कुछ अवशेष ही है शेष
वो भी एक दौर था

न तुम्हारे पास कमी थी

न मेरे पास कमी थी

शब्दों की, बातों की

अब न तुम्हारे पास शब्द है

न मेरे पास शब्द है

होठ सिले, जुबां बंद है

न तुम रह गए तुम हो

न हम रह गए हम है


- ओमकार चौधरी

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