अपने-अपने दर्द समंदर
अपने-अपने वीराने हैं
सब चेहरे जाने पहचाने
फ़िर भी कितने बेगाने हैं
एक दूजे में मस्त यहाँ सब
हम ही तनहा-अनजाने हैं
कैसी दुनिया कैसे लोग
हर रिश्ते के अफसाने हैं
किसी के हिस्से खाली जाम
कहीं छलकते पैमाने हैं
कहीं भूख से मौत के मेले
कहीं बिखरते खानें हैं
कैसी बातें लेकर बैठे
हम भी कैसे दीवाने हैं
हम भी कैसे दीवाने हैं
-ओमकार चौधरी
4 comments:
कैसी बातें लेकर बैठे
हम भी कैसे दीवाने हैं
" wonderful poetry liked reading it"
"hum to therey deewane,
deewano jaisee bateyn kerteyn hain,
jug chutey ya rub ruthey,
subkee fikr mey aahen brthey hain..."
Regards
आपके दर्द कविता में दिखाई दिए। जमाने के दर्द हैं आपकी कलम में। इसी तरह जमाए रहिए।
बहुत उम्दा, क्या बात है!
bahut achcha likha hai
kavitao ki bhochaar jaari rakhe
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