बिहार के लाखों लोग संकट में हैं. उनकी मदद के लिए जो हाथ बढ़ें हैं, वे नाकाफी हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चार जिलों का हवाई दौरा करने के बाद इसे राष्ट्रीय आपदा बताया है. उन्होंने पीडितों की मदद के लिए १ हजार करोड़ रूपए और सवा लाख टन खाद्यान्न भेजने का ऐलान भी किया है. उनके परिजन तेज धारा में बह गए हैं. उनके पास खाने-पीने के लिए कुछ नही बचा है. बिहार सरकार अपने स्तर पर जो कर सकती थी, उसने किया. पटना और दूसरे इलाकों से नावें भिजवाएं गईं हैं. सेना के पांच हेलीकॉप्टर लगवाकर रहत सामग्री भिजवाई जा रही है लेकिन बारिश के चलते इस काम में भी बाधा आ रही है. जिन इलाकों में एस तरह की प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदाएं आती हैं, वहां संकट केवल खाद्यान्न का ही नही होता. मरे हुए मवेशियों और मानव शरीरों को समाई रहते वहां से हटाना और पर्यावरण को जीवन के लायक बनाए रखना भी उतना ही जरुरी है. एस मोर्चे पर अभी तक कुछ भी नही हो पा रहा है.. बाढ़ का पानी कई तरह की बीमारियाँ भी अपने साथ लेकर आता है. लिहाजा ऐसे स्थानों पर चिकित्सकों के दल पर्याप्त सख्या में भेजा जाना भी आवश्यक है. जो तस्वीरें वहां से आ रहीं हैं, उन्हें देख कर नही लगता कि चिकित्सक वहां पहुंचे हैं. अगर वक्त से चिकित्सा सुविधा नही मिली तो महामारी भी फ़ैल सकती है.प्रधानमंत्री अगर इसे राष्ट्रीय आपदा बता रहें हैं, तो इसे पूरे देश को इसी तरह लेना भी चाहिए. कोसी ने इन चार जिलों में जो तबाही मचाई है, वह किसी प्रलय से कम नही है.. यह ऐसे ही है, जैसे कोई तूफ़ान किसी घोंसले को एक ही झटके में तहस नहस कर दे. हमारे देश में जहाँ कुछ बुराइयाँ हैं, वहां अच्छी बातें भी कम नहीं हैं. लोग राजनीतिक तथा अन्य कारणों से अगर भाषा, सीमा, जाति, धरम और मामूली बातों पर झगड़तें हैं तो विपदा के समय संकट में साथ देने के लिए साथ भी आकर खड़े हो जातें हैं. हमने देखा है, संकट के वक्त देश ने हमेशा एकजुटता दिखाई है. गुजरात, उत्तरकाशी, जम्मू कश्मीर में भूकंप आए चाहे उडीसा मई चक्रवाती तूफान या फ़िर तमिलनाडु और केरल में सुनामी लहरें..पूरा देश मदद के लिए आगे बढ़कर आया. देखने में भले लगे कि चार प्रभावित हैं परन्तु जिस कदर वहां जान माल की हानि हुई है, उसे प्रलय ही कहा जा सकता है. बिहार की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि हर साल वहां तबाही होती है लेकिन जिस इलाके में इस बार तबाही हुई है, वहां के लोगों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा हो सकता है. कोसी इस इलाके से बहती ही नही है. दुसरे देशों से आने वाली नदियों पर किसी का वश नही है लेकिन सरकारों को ऐसे उपाय जरूर करने चाहिए जिस से एस तरह की बड़ी जनहानि होने ही न पाए. भारत और नेपाल सरकारों के बीच एस तरह की समझबूझ और रिश्ते जरूर होने चाहिए कि इतनी बड़ी मात्र में पानी छोड़ने से पहले वहां कि सरकार वक्त रहते सूचना दे ताकि उस एरिया के लोगों को बाहर निकला जा सके. हालाँकि कोसी से हुई तबाही दुसरे कारणों से हुई है. सरकार को एस तरह कि प्रलय को तलने के लिए कुछ ठोस कदम अब उठाने ही होंगे.
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
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6 comments:
भीषण त्रासदी-प्रभावी एवं विचारणीय आलेख!!
हमारा आपदा प्रबंधन हमेशा फेल हो जाता है।
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है। आपकी सक्रियता के लिए शुभकामनाएं।
आपने सही लिखा है कि दूसरे देशों से आने वाली नदियों पर किसी का वश नही है लेकिन सरकारों को ऐसे उपाय जरूर करने चाहिए जिस से एस तरह की बड़ी जनहानि होने ही न पाए।
aapne sahi likha hai....dusre desho se aane wali nadiyo per koi akhtiyar nahi hota hai lekin aapdha parbandan ki kami se je din bhi dekhna pad raha hai....
भीषण त्रासदी-प्रभावी एवं विचारणीय आलेख!!
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badhiya likha hai
Ankur chaudhary
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