Saturday, September 13, 2008

बढ़ते आतंकवाद का जिम्मेदार कौन


दिल्ली में फ़िर धमाके हुए हैं. एक बार फ़िर दर्जनों मासूमों को अपनी कीमती जान से हाथ धोना पड़ा. देश के ग्रह मंत्री का फ़िर वाही रटा-रटाया जवाब लोगों ने सुना. प्रधान मंत्री ने भी कोई नई बात नहीं कही. पाकिस्तान और दूसरे देशों ने भी निंदा करने की ओपचारिकता पूरी कर दी, लेकिन इस तरह के हर हादसे के बाद जिन परिवारों के चिराग बुझ जातें जातें है, उनके लिए इन बयानों के कोई मायने नहीं हैं. आख़िर कब तक हमारी व्यवस्था आतंकवाद के सामने नपुंसक बनी खड़ी रहेगी ? ये सिलसिला लंबा है. तीस साल से देश ये दंश झेलने को अभिशप्त है. दिल्ली की ही बात करें, तो कई बार इसे लहू लुहान किया गया है. देश की तकदीर लिखने वाली सरकार यहीं बैठती है. तमाम अहम् फैसले यहीं होते हैं. अब तक आम लोगों को ये ग़लतफ़हमी रही कि कम से कम दिल्ली तो महफूज रहेगी लेकिन ये भ्रम ही साबित हुआ. अभी पूरे तीन साल भी नहीं हुए हैं, जब दिवाली से ठीक पहले दिल्ली दहल उठी थी. फ़िर वाही हुआ. वो भी तब, जबकि केन्द्र सरकार को इस तरह के आतंकी हमलों की आशंका थी. आख़िर इन बेगुनाह लोगों के खून सरकार कि निगाह में इतने सस्ते क्यों हो गए हैं.
29 अक्तूबर 2005 में दिल्ली में तीन जगहों पर हुए बम धमाकों में 62 निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। उसके बाद से अब तक देश के कई राज्यों और शहरों में उसी तरह के धमाके हो चुके हैं जिनमें सैकडो बेगुनाह जान गँवा चुके हैं। फेहरिस्त लम्बी है। वाराणसी का संकटमोचन मन्दिर ( 7 मार्च 2006) , मुंबई की लोकल ट्रेन ( 11 जुलाई 2006) , महाराष्ट्र के मालेगांव (8 सितम्बर 2006), पानीपत में समझौता एक्सप्रेस ( 18 फरवरी 2007), हेदराबाद (25 अगस्त, 18 मई 2007), अजमेर शरीफ की दरगाह (11 अक्तूबर 2007), लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी ( 23 नवम्बर 2007) उत्तर प्रदेश के रामपुर (1 जनवरी 2008), जुलाई 2008 में बेंगलूर और अहमदाबाद में सिरिअल धमाके हुए ही हैं। इस से पहले जयपुर धमाकों से दहल उठा था। यानि पिछले करीब तीन साल में सैंकडो लोग काल के गाल में समा चुके हैं और चक्र घूमकर फ़िर दिल्ली आ पहुँचा है, जहाँ अपनी भारत सरकार बैठती है। जहाँ देश की तकदीर लिखी जाती है।
मुझे ये लिखने में कोई हिचक नही हो रही की ऐसा नाकारा ग्रह मंत्री देश ने कभी नहीं देखा, जैसा आज देख रहा है। वाही रटा रटाया बयान वे हर बार मीडिया में देते हैं की आतंकवादियों को ढूंढ निकला जाएगा। सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी। देशवासी उत्तेजित न हों..वगेरा। सबको पता है कि आतंकवाद अब केवल भारत तक सीमित नहीं रह गया है। इसके तार कहाँ तक बिछे हुए हैं, इसकी जानकारी भी लोगों को है लेकिन देशवासी दो बातों का जवाब शिवराज पाटिल और मनमोहन सरकार से चाहते हैं। पहला, 9/11 के बाद फ़िर वैसी ही घटना अमेरिका में क्यों नही घट पाई और कई राज्यों के आतंकवादी निरोधक कड़े कानूनों को आज तक भी राष्ट्रपति की स्वीक्रति क्यों नहीं मिली है? लोगों का जो खून आतंकवादी बहा रहे हैं, इसकी जिमेदारी कौन लेगा? लोगों की जान माल कि हिफाजत करने की जिम्मेदारी किसकी है ? इन वारदातों को सरकार क्यों नही रोक पा रही है?



ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

8 comments:

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

aatankwad key khilaf sakhat kadam uthana ab samaya ki sabsey badi jaroorat hai

Udan Tashtari said...

अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय घटना!!

रंजन राजन said...

देश की तकदीर लिखने वाली सरकार यहीं बैठती है. तमाम अहम् फैसले यहीं होते हैं. अब तक आम लोगों को ये ग़लतफ़हमी रही कि कम से कम दिल्ली तो महफूज रहेगी लेकिन ये भ्रम ही साबित हुआ.
वक्त आ गया है िक कि आतंकियों से और सख्ती से निपटा जाए।

MANVINDER BHIMBER said...

आपने सही कहा है, नीतिनिर्धारक अगर समय रहते नही चेते तो ऐसी घटनायें होतो रहेंगी.....अगर अमेरिका में ऐसी घटनाओं पर रोक लग सकती है तो भारत में क्यो नहीं......जब भी ऐसी घटना होती है तो थोड़ा सा शोर मचता है और फ़िर अगली घटना होने तक चुप्पी रहती है.....यह गलत है.....इस पर सख्ती होनी चाहिय

Anonymous said...

आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता। जरुरत है पक्‍के इरादे की। आतंक को मानवता के लिए कुचलना ही होगा। मनविंदर जी ठीक कह रहीं हैं कि अमेरिका से सीख लेनी चाहिए।

parul said...

sir jo bhav apke hein yadi yha media ke har vayakti ki ho jay to vastav mein sudhar sambav hein.
very nice sir

Brijesh Singh said...

ok , v good

Anonymous said...

I agree with your views because this regular terrorist attacks are a challenge for the whole country. Persons sitting in Delhi making policies having discussions to stop this voilent activities but this the time to bold decision not to waste time in fusal discussions.