Sunday, October 5, 2008

राहुल गांधी पर दांव लगाएंगी सोनिया ?


कांग्रेस के भीतर से उठ रहे संकेतों को समझें तो लगता है की एक वर्ग राहुल गाँधी को अपने सर्वमान्य नेता के तौर पर देखने को कुछ ज्यादा ही उतावला है। आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, इसे लेकर पिछले कुछ समय से कुछ ज्यादा ही बयानबाजी हो गयी है. यह होड़ तब शुरू हुई, जब पंजाब यात्रा के समय ख़ुद राहुल ने बयान दे डाला कि वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं. चापलूस किस्म के कांग्रेसियों को मौका और बहाना मिल गया। हद तो तब हो गयी, जब इस मुहिम में वीरप्पा मोइली, दिग्विजय सिंह और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता भी शामिल हो गए।

कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जिन्हें, मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियाँ पसंद नहीं हैं। कुछ प्रधानमंत्री के तौर पर आज तक भी मनमोहन सिंह को स्वीकार नहीं कर पाए हैं। इनमे अर्जुन सिंह, प्रणब मुख़र्जी और शिवराज पाटील प्रमुख हैं। ये नेता ही राहुल गांधी को आगे करके मनमोहन को पीछे धकेलने के लिए उतावले हैं. हालाँकि कांग्रेस के कुछ गठबंधन सहयोगी मनमोहन को ही अगले चुनाव में भी नेता बनाए रखने के पक्ष में हैं। इनमे लालू यादव और शरद पवार सरीखे नेता शामिल हैं। अभी चुनाव में चूकि समय है, इसलिए पार्टी नेता जल्दबाजी में नहीं हैं. माना जा रहा है कि चुनाव से पहले राहुल गांधी को आगे करने की मुहिम जोर पकडेगी।

ऐसे कई मसले हैं, जिन पर मनमोहन सरकार कटघरे में है। आर्थिक मोर्चे पर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और उनकी टोली बुरी तरह विफल साबित हुई है. इस टोली में वित्त मंत्री पी चिदंबरम, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया और रिजर्व बैंक के गवर्नर शामिल हैं. महंगाई सातवे आसमान पर है. कर्ज लेकर घर बनने का सपना देखने वालों का बुरा हाल है. बैंकों ने ब्याज की दर हद से ज्यादा बढ़ा दी है. पट्रोलियम पदार्थों के दाम बेतहाशा बढे हैं. 2004 में कांग्रेस ने नारा दिया था, कांग्रेस का हाथ-आम आदमी के साथ। विपक्ष अब इसी को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरने की तैयारियों में जुटा है. सोनिया भी जानती हैं कि मनमोहन सिंह लोकप्रिय प्रधानमंत्री साबित नहीं हुए हैं. सही बात तो ये है कि सोनिया गांधी के सामने वे प्रधानमंत्री के रूप में कभी स्थापित हो ही नहीं सके. उन्हें हमेशा 10, जनपथ का ताबेदार ही माना गया. आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर तो ये सरकार विफल रही ही है।

मनमोहन सिंह दस दिन की विदेश यात्रा से लौटे तो अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने यह कहकर चर्चाओं को और पंख लगा दिए कि अभी से इस बारे में अटकलबाजियों का कोई अर्थ नहीं है. एक बार फ़िर सोनिया गांधी को आगे आना पड़ा. उन्होंने यह कहकर मामले को शांत करने कि कोशिश की कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने अच्छा काम किया है और वे ही प्रधानमंत्री होंगे. दरअसल, लगता है कि सोनिया अब ख़ुद भी चाहती हैं कि राहुल गांधी आगे आकर कमान संभालें. हालत और राजनीतिक मजबूरियों के साथ-साथ वर्तमान परिस्थितियां उन्हें और बाकी कांग्रेसियों को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं. माना जा रहा है कि चुनाव से कुछ पहले राहुल के पक्ष में जोरदार तरीके से माहोल बनने की मुहीम छेडी जाएगी. और उसे 10, जनपथ का समर्थन होगा. पार्टी के दिग्गज राहुल गांधी के पक्ष में खुलकर सामने आएँगे. ऐसे में मनमोहन सिंह ख़ुद राहुल के नाम को आगे करेंगे. इसलिए अगर चुनाव से पहले सोनिया राहुल को आगे करें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा।


ओमकार चौधरी


9 comments:

रंजन राजन said...

अत्यंत सटीक विश्लेषण। ऐसे कई मसले हैं, जिन पर मनमोहन सरकार कटघरे में है। आर्थिक मोर्चे पर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और उनकी टोली बुरी तरह विफल साबित हुई है...मनमोहन सिंह दस दिन की विदेश यात्रा से लौटे तो अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने यह कहकर चर्चाओं को और पंख लगा दिए कि अभी से इस बारे में अटकलबाजियों का कोई अर्थ नहीं है....
हालांकि पंजाब दौरे पर राहुल ने कहा था कि मनमोहन सिंह ही हमारे पीएम हैं।

manvinder bhimber said...

sonia agar essa sochti hai to issme haran hone ki kisi cangressi ko jrurat nahi hai,,,,
kai esse masle hai jin par cangressi ek mat nahi hai....
ye wakt ke baate hai.....dhaiyr rakhne ki darkaar hai....

Unknown said...

हाँ वही हैं जो बेड़ा पार लगायें तो लगायें, वरना कांग्रेस का पंजा असल में पानी में डूबते हुए व्यक्ति का हाथ ही दिखेगा…

Anonymous said...

लाकतंत्र में सिर गिने जाते हैं आदमी नहीं। ऐसे में राहुल प्रधानमंत्री बन जाएं तो हैरान होने की क्‍या बात है। जहां तक आर्थिक नीतियों की बात है तो हम जिस मॉडल के पीछे हैं वही अमेरिका आज सबसे अधिक मंदी का शिकार है।

योगेन्द्र मौदगिल said...

विश्लेषण खूब किया आपने
पर इनके पास और चारा भी क्या है

इरशाद अली said...

काग्रेंस के लिये यह विकट समय है जबकि आर्थिक मोर्चे पर भी नाकामी का सामना करना पड़ा हो और अगर राहुल की अगामी चुनाव में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी सोची जा रही हो तो यह काग्रेंस के लिये बड़ी राहत की बात होगी वैसे भी यहां राहुल को अपने सामने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वदीं आडवानी जी को भी तो पछाड़ना होगा। आपके सकेंत स्पष्ट है, कोई और विकल्प भी तो नजर नही आता है।

Anonymous said...

महाराज दांव से आगे भी बढि़ए।

parul said...

ajj ki sarkar kuch faslo ko sahi nahi kar pati h

parul said...

ajj ki sarkar kuch faslo ko sahi nahi kar pati h