उन्होंने हमारी गैरत को ललकारा है. हमारे सुरक्षा तंत्र की पोल खोलकर रख दी है. 2020 तक महाशक्ति बन जाने का उपहास उड़ाया है. खुफिया एजेंसियों की काहिली, सरकारी नपुंसकता और घटना के बाद कहे जाने वाले इस जुमले की हवा निकालकर रख दी है कि बहुत हो गया, अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे. वे धड़ल्ले से मुंबई में घुसे. सड़कों पर तांडव मचाया. मुंबई की शान कहे जाने वाले दो आलीशान पाँच सितारा होटलों में नरसंहार कर विदेशी पर्यटकों को बंधक बनाया. नरीमन हाउस, एक सिनेमाघर और एक अस्पताल के अलावा सड़क पर चलते लोगों को निशाना बनाया. उनकी तादाद डेढ़ दर्ज़न से अधिक नहीं थी लेकिन उन्होंने सैकडों की संख्या में पहुंचे सैनिकों, एन एस जी कमांडो, मुंबई पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की नाक में दम करके रख दिया. उन्होंने डेढ़ सौ से अधिक बेक़सूर लोगों को मार डाला और चार सौ को घायल कर हमेशा के लिए अपंग बना दिया. इससे भी बढ़कर उन मुठ्ठी भर आतंकवादियों ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को दुनिया भर में एक असुरक्षित स्थान के रूप में बदनाम करके रख दिया. आज कोई भी मुंबई को सुरक्षित शहर मानने को तैयार नहीं है.
पूरा देश सदमे में है. मारे गुस्से के लोगों की मुठ्ठियाँ तनी हुई हैं. जबड़े भींचे हुए हैं, सरकार की काहिली के कारण वे ख़ुद को मजबूर और अपमानित महसूस कर रहे हैं. नरीमन हाउस में ऑपरेशन ख़तम कर जैसे ही एन एस जी कमांडो नीचे उतरे, उग्र लोगों ने भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिए. उन्होंने जांबाज़ सैनिकों और एन एस जी कमांडो का तालियाँ बजाकर स्वागत किया. इस एक घटना से पता चलता है कि आतंकवादियों के बार बार देश पर हो रहे आक्रमणों को लेकर नागरिकों में किस कदर नाराजगी है. हर महीने दो महीने के भीतर आतंकवादी देश के किसी न किसी कोने में बेक़सूर नागरिकों का लहू बहा देते हैं. लोगों में जितना गुस्सा उनके प्रति है, उससे कहीं ज्यादा सरकार और उसमे बैठे जिम्मेदार नेताओं के खिलाफ है जो हर घटना के बाद एक बयान देकर अपने दायित्व की पूर्ति कर लेते हैं कि अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
मुंबई ही नहीं, पूरे देश को ही डेढ़ दर्ज़न आतंकवादियों ने तीन दिन तक बंधक बनाए रखा. वहां जो कुछ हुआ, उसे वयस्क नागरिकों ही नहीं, स्त्री और मासूम बच्चों ने भी टेलीविजन के जरिये देखा. बच्चों और आम लोगों के दिलो-दिमाग पर इन गोलियों और बम विस्फोटों का कितना बुरा असर पड़ा है, इसका अंदाजा न सरकार को है और न न्यूज़ चेनलों को. छबीस नवम्बर की रात से जो कुछ हो रहा है, उसने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि हमारे तंत्र की तंद्रा तभी टूटती है, जब घर लुट चुका होता है. शत्रु घर में घुसकर परिवार के लोगों की हत्या कर चुके होते हैं. सरकार में बैठे लोगों को तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक हमला ख़ुद उन पर न हो. किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी देश-प्रदेश के नागरिकों की जान माल की सुरक्षा है. लेकिन लगता नहीं कि सरकारें अपनी इस जिम्मेदारी के प्रति सजग अथवा चिंतित हैं. हर घटना के बाद वे सिर्फ़ बयानबाजी करती हैं. इससे लोगों में गहरी नाराजगी व्याप्त है. उनके बर्दाश्त की सीमा ख़तम हो रही है.
सरकार में बैठे लोगों को ख़ुद से सवाल पूछना चाहिए कि वे देश की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं या उसे बट्टा लगाने में लगे हैं. बहुत हो चुका. अब लोग और अपमान बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं. आतंकवादियों ने भारत और इसके नागरिकों की गैरत को ललकारा है. सत्ता में बैठे लोग नहीं चेते तो जनता जानती है कि उसे क्या करना है. सरकार यह जान ले कि अब आम आदमी निर्णायक कार्रवाई चाहता है. लोग अब और हमले और अपमान बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं.
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
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9 comments:
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
खुफिया एजेन्सियों ने तो बता दिया था लेकिन हमारी केन्द्रीय निकम्मी सरकार अपने हाथ बांधे बैठी रही.
इस कांग्रेसी सरकार की गैरत को कौन ललकार सकता है, अगर गैरत हो तभी तो ललकारेगा?
आपकी बात बिलकुल सही है कि आतकवादिंयो ने देशा की गैरत आैर स्वाभिमान को ललकारा है। कितुं देश को जनता नही हमारे नेता चला रहे हैंं सवाल है इनकी गैरत को कौन ललकारेगा! आज के नेताआे से जनता परेशान है। आपको याद न हों संसद पर हमले के समय आम जनता यही कह रही थी कि काश यह हमला कुछ देर से होता आैर इसमे नेत के नेता ,मंत्री, सांसद मरते तो समस्या का समाधान हो जाता।
बिजनौर हरिद्वार मार्ग पर कई रपटे पडतें हैं। प्रतयेक साल इन पर पानी आने से वाहनो के बहने से एक दर्जन के आसपास मौत होती रही है! अभी तीन चार साल पहले इस मार्ग पर गाडी के बह जाने से हरियात्रा के एक राजनेता मारे गए! उनके मरते ही पुल स्वीकृत हो गए!काश जनता के मरने पर पहले सुनवाई हो जाती। संसद के हमले के बाद सीमा पर सेना भेज दी गई। कया हुआ वही ढ़ाक के तीन पात। कुद समय गजरेन दीजिए। सब नार्मल हो जाएगा,फिर नए हमले होंगे फिर शोर मचेगा!
To hum log sabse pehley in bakwas netaon ko laat markar hata kyon nahin dete. gairat ki lalkar par hum isse to shuruat kar hi saktey hain.
यह समय है कश्मीरी आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों पर बिना समय गवाए पूरी शक्ति के साथ सैन्य कार्यवाही का ! एक मुक्तिवाहनी सेना के हस्तक्षेप की !
sir aapne apni lekh me pure deshwasio ki soch ko likha hai. is sandesh ko is biklang sarkar ke pass pahuchane ke liye bhi aap log prayash karen. aapke blog ke madhayam se main marathi manush raj thackery se yeh sawal karna chahta hun ki kha gayi uski mardgani. apni jindgi dao par lagane wale nsg commander kya sabhi marathi the. pura media marathi tha. desh ko kamjor karno wale bal thackery aur uski jahil sena kha thi jab log mout se jugh rahi thi. kya aab bhi hum marathi aur bihari ke naam larte raheng ya phir desh drohio se milkar jung larenge.
sir, har gatna par sateek prahaar karne vale h app. apki baat bilkul sahi h. sarkaar ke bare mein kya kahe yha mook ban gai h
armaan bekege maan bekege
chalte ferte ye insaan bekege
mobile pe chalegi ye duniya
aur internet pe istri ke sammaa bikege
yahi hai aadhunikta aur yahi hai sanskriti aaj bharat ki
ki bhookho ke haath mai roti na hogi aur ameeron ke haath mai purah kaar dekhege. i have written
this is my comment to u pranaam sir
It's a excellent piece for the readers who matters. J.P.Tiwary
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