Wednesday, December 17, 2008

डर्टी, डेनजर्स और डिफिकल्ट जॉब

मुंबई हमले के बाद से एक बार फ़िर देश में बढ़ते आतंकवाद पर बहस छिडी है. मैंने सेना में उच्च पदों पर रहे लेफ्टिनेंट जनरल ओ पी कौशिक से इसके विभिन्न पहलुओं पर लम्बी बातचीत की. इसे हाल ही में हरिभूमि में प्रकाशित किया गया. सेना पर किस तरह के दबाव हैं. सेना के जवानों को किस तरह मानवाधिकारों के झूठे केसों का सामना करना पड़ रहा है, इस पर वे खुलकर बोले. उनसे इस मुद्दे पर हुई बातचीत की अन्तिम कड़ी यहाँ दी जा रही है. -ओमकार चौधरी.

लेफ्टिनेंट जनरल ओ पी कौशिक (रिटायर्ड)
मानवाधिकारवादी आतंक से निपटने में एक बड़ी बाधा हैं। मिस्टर जएनके चीफ जस्टिस थे ब्रिटेन के। उनसे यह सवाल पूछा गया था कि आप ऐसी स्थिति में नेशनल सिक्युरिटी और ह्ययुमन राइटस में से किसे प्राथमिकता देंगे? उनका कहना था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सब मानवाधिकारों की अनदेखी की जा सकती है। इराक में अमेरिकी सैनिक लड़ रहे हैं। उनसे पूछा गया

कि आप किस कानून के तहत मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि हम युद्ध लड़ रहे हैं। चूंकि यह एक युद्ध क्षेत्र है, इसलिए यहां किसी प्रकार का कोई कानून मान्य नहीं है। इसके ठीक उलट अगर हम कशमीर में लड़ते हैं, तब मानवाधिकार वाले हल्ला करते हुए आ जाते हैं। बड़ा जबरदस्त किस्म का दवाब बनाते हैं।
मैं कश्मीर वैली में जीओसी था। कुपवाड़ा में एक गांव है कुनालपोसपोरा। हमें सूचना मिली कि वहां आंतकवादी आ गए हैं। हमने वहां पर एक कालम भेजा, एक सूबेदार और 29 जवान। कुल तीस सैनिक। सेना ने चारों उग्रवादी पकड़ लिये। एकदम से हमारे कालम के खिलाफ शिकायत हुई कि इन्होंने तो 70 औरतों का बलात्कार कर दिया है। यानि तीस आदमियों ने एक रात में 70 औरतों का बलात्कार कर दिया। बड़ा भारी केस हो गया। केन्द्र सरकार में भी प्रतिक्रिया हुई। एक प्रेस कमेटी बनायी गयी, जिसका अध्यक्ष पी.जी. वर्गीज को बनाया गया। मैं भी उनके साथ गया। हम गांव में गए। वहां एक बुढ़िया औरत मिली। होगी 70 साल की। मैंने उससे पूछा कि अम्मा क्या हो गया? वो कहती है कि रेप हो गया। मैंने पूछा कि रेप क्या होता है? वो बोली कि हमे नहीं मालूम रेप क्या होता है, लेकिन रेप हो गया। मैंने कहा कि मिस्टर वर्गीज सुन रहे हो?
हमने सारा गांव इकट्ठा किया। उस गांव में जवान औरतों की संख्या पच्चीस भी नहीं थी। उन औरतों से जब पूछा कि तुम्हारे साथ कुछ बदमाशी हुई? उन्होंने कहा कि नहीं हुई। कुछ नहीं हुआ लेकिन रिपोर्ट गई कि तीस लोगों ने 70 महिलाओं का बलात्कार कर दिया। अब बताइए, इसका कितना गलत प्रभाव पड़ेगा? मेरी ही रेजीमैंट (राजपुताना राइफल) के एक सूबेदार ने एनकाउंटर में एक आतंकवादी को मार गिराया। उस पर आरोप लगा कि उसने तो गलत आदमी को मार दिया। मानवाधिकार आयोग वालों ने स्टैंड ले लिया। उन्होंने सूबेदार पर कोर्ट केस करा दिया। सूबेदार को बरी होने में पांच साल लगे। कौन रिस्क लेगा ऐसे में? सेना को कोई सपोर्ट करने को तैयार नहीं है।
मैं आपको नागालैंड की बात बताता हूँ। वहां मैं चीफ आफ आर्मी स्टाफ था ईस्टन आर्मी का। हमारी राष्ट्रीय राइफल निकल रही थी। उनके ऊपर आंतकवादियों का फायर आया। सेना ने जवाब में फायर किया। छह-सात उग्रवादी मारे गए। आरोप लगा कि इन्होंने तो सामान्य नागरिकों को मार दिया। प्रेस में आ गया कि आर्मी ने सिविल एरिया में फायरिंग कर दी है। संसद में भी सवाल आ गया। उन दिनों मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष होते थे रंगनाथ मिश्र । इंकवायरी के लिए वे आ गए। मैं भी कोलकाता से कोहिमा पहुंच गया। अगले दिन हम राजभवन से घटनास्थल के लिए रवाना हुए। रास्ते में हमारे ऊपर फायर आ गया। हमारे साथ चल रहे ब्रिगेडियर ने बताया कि उग्रवादियों ने फायर किया है। आप उतरकर हिल के पास प्रोटेक्शन ले लीजिए। हमें इन्हें क्लीयर करने में बीस-पच्चीस मिनट लगेंगे। फिर चलेंगे। पच्चीस मिनट बाद ब्रिगेडियर आए कि साहब क्लीयर हो गया है, अब चल सकते हैं। रंगनाथ मिश्र बोले कि नहीं, वापस चलते हैं। हमने कहा कि डरने की कोई बात नहीं है, सब कुछ ठीक है। मैंने उनसे कहा कि आप दिल्ली से आए हैं। मैं कोलकाता से आया हूं तो आपको चलना चाहिए। फिर मैंने उन्हें बताया कि इससे एक सप्ताह पहले हमले में हमारे 26 जवान मारे गए थे, उसका इन्वेस्टीगेशन करने आप नहीं आए। मिस्टर मिश्र ने कहा कि मिस्टर कौशिक क्या मेरे कार्यकाल में आर्मी के खिलाफ एक भी मामला दर्ज हुआ? मैंने कहा कि मेरा वो मतलब नहीं है, लेकिन आप क्यों आए यहां पर? मैने उनसे कहा कि मैं इसे थ्री डी एनवायरमेंट बोलता हूं। डर्टी, डेनजर्स और डिफिकल्ट। इट इज ए डर्टी जाब। इट इज ए डेनजर्स जाब एंड वरी डिफिकल्ट जाब। मैं क्यों फंसू इस काम में। हम राजभवन पहुंच गए। मेरी और उनकी इस पर बहस हुई। ( समाप्त )

1 comment:

सुमो said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है ओमकार भाई,
इससे पहली किस्तें भी पढ़ने का सौभाग्य मिला.