Tuesday, February 3, 2009

भारत का एटमी वनवास खत्म

भारत द्वारा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ सुरक्षा निगरानी संबंधी एक समझौते पर वियना में हस्ताक्षर करने के साथ ही लंबे समय से चला आ रहा एटमी वनवास पूरी तरह समाप्त हो गया है। अब संयुक्त राष्ट्र भारतीय परमाणु संयंत्रों की जांच कर सकेगा। दूसरी ओर भारत को परमाणु सामग्री और तकनीक आयात करने की छूट मिल जाएगी। इस समझौते को आईएईए के सदस्य देशों ने पिछले साल अगस्त में मंज़ूरी दे दी थी। समझौते के तहत भारत को अपने बाईस में से चौदह असैन्य परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए आईएईए को मंजूरी दे दी है। सितंबर में परमाणु तकनीक के निर्यात और बिक्री पर नियंत्रण रखने वाला पैंतालीस सदस्यीय परमाणु सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) भी भारत को विशेष छूट देने पर सहमत हो गया था। अमेरिका के साथ परमाणु समझौते से पहले ही भारत के सामने सुरक्षा संबंधी समझौते पर दस्तख़त करने की शर्त रखी गई थी ताकि वह परमाणु संपन्न राष्ट्रों के साथ परमाणु सामग्री और तकनीकी का असैन्य इस्तेमाल कर सके । इस समझौते के बाद आईएईए के पर्यवेक्षक भारतीय असैनिक परमाणु ठिकानों की निगरानी करेंगे ताकि परमाणु ईंधन सैनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल न हो। इस समय भारत अपनी बिजली की जरूरतों का तीन प्रतिशत परमाणु संयंत्रों से बनाता है। अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक देश पच्चीस प्रतिशत बिजली परमाणु संयंत्रों से बनाने लगेगा। भारत के पास यूरेनियम और कोयले का सीमित भंडार है लेकिन भारत के पास दुनिया के थोरियम भंडार का 25 प्रतिशत है और संभावना है कि इसके उपयोग से भारत को भारी लाभ मिलेगा। भारत सरकार का मानना है कि इस समझौते से उसे देश और अर्थव्यवस्था की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। हालांकि भारत में अनेक विपक्षी दल इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उधर अंतरराष्ट्रीय समीक्षकों का मानना है कि इससे परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद भारत को अपने परमाणु ऊर्जा उद्योग का विस्तार करने की अनुमति मिल गई है। भारत अमरीका असैन्य परमाणु समझौता एक ऐतिहासिक समझौता है। इस समझौते के साथ ही परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से चला आ रहा भारत का कूटनीतिक वनवास ख़त्म हो जाएगा। इस समझौते को लेकर मनमोहन सिंह सरकार को बड़ी राजनीतिक और कूटनीतिक अड़चनों को पार करना पड़ा है।
हालाँकि जहाँ एक ओर भारत को परमाणु तकनीक और ईंधन मिलने का रास्ता साफ़ हुआ है, वहीं दूसरी ओर उसे अपने गैर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को आई ऐ ई ऐ की निगरानी के लिए खोलने होंगे. आस्ट्रेलिया जैसे देश अब भी इस जिद पर अडे हुए हैं की भारत पहले परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे. कुछ रक्षा विशेषज्ञ गैर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को आई ऐ ई ऐ की निगरानी के लिए खोलने को सही नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि यह देश के व्यापक हित में नहीं है.

ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

3 comments:

Vinay said...

आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग

parul said...

acha cheetan kiya h nice sir

roushan said...

यह एक महत्वपूर्ण कदम है.
हमें शुरू से महसूस होता रहा है कि यह समझौता भारत के हित में है. ऐसी तकनीकी रखने से क्या फायदा कि ईधन की कमी के चलते हम कुछ कर ही न सकें