Thursday, February 5, 2009

लम्बी नहीं खिंचे लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया

लोकसभा चुनाव की दुंदुभि बज चुकी है। निर्वाचन आयोग की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच गई है। राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों की बैठक में चुनाव आयोग ने जानने की कोशिश की कि मतदान प्रक्रिया के लिए सही समय कौन सा हो सकता है। बोर्ड की परीक्षाओं को देखते हुए अधिकांश दलों ने अप्रैल के अंत में चुनाव करा लेने और प्रक्रिया को अनावश्यक लंबा नहीं खींचने का सुझाव दिया। पिछले चुनावों से सीख लेते हुए राजनीतिक दलों ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया तीन सप्ताह से अधिक नहीं खिंचनी चाहिए। चार चरणों के भीतर ही मतदान संपन्न करा लिया जाना चाहिए। आचार संहिता के नाम पर विकास कार्यो को नहीं रोका जाना चाहिए और एक राज्य में एक ही दिन में मतदान करा लिया जाना चाहिए। दलों ने निर्वाचन आयोग के तीनों आयुक्तों में बेहतर समझबूझ पर भी बल दिया।
दरअसल, चुनाव आयोग की यह बैठक ऐसे समय में हुई जब मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने राष्ट्रपति से चुनाव आयुक्त नवीन चावला को बर्खास्त करने की सिफ़ारिश की है। हालांकि केन्द्र की यूपीए सरकार ने इसे खारिज कर दिया है। इस विवाद के बाद पहली बार इस बैठक में गोपालस्वामी और नवीन चावला एक साथ दिखे। इतना ही नहीं इस बैठक से कुछ दिनों पहले तीसरे चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने लंदन में कहा था कि लोकसभा चुनाव आठ अप्रैल से पंद्रह मई के बीच हो सकते हैं। इस पर भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि अभी कार्यक्रम तय नहीं हुआ है। इससे यही संकेत गए कि निर्वाचन आयोग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
भारतीय चुनाव आयोग निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र चुनावी प्रक्रिया के लिए विश्व भर में जाना जाता है। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में भी आयोग ने जितने पारदर्शी तरीके से चुनावी प्रक्रिया संपन्न कराई है, उसकी हर स्तर पर प्रशंसा हुई है। राजनीतिक दलों की इस दलील में दम है कि कई चरणों में चुनाव होने से संसाधनों और सुरक्षा व्यवस्था में दिक्कतें होती हैं। आचार संहिता के कारण विकास के काम भी सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। इसके अलावा लंबी चुनावी प्रक्रिया के कारण राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के खर्चे भी बेतहाशा बढ़ने लगे हैं। इसलिए इस सुझाव पर आयोग को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

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