Monday, July 6, 2009

भोजन का अधिकार क्यों नहीं


करोड़ों परिवारों और लोगों के पास आज भी अपना घर नहीं है। मध्यम आय वर्गीय परिवार शहरों में किराए के मकानों में रहने को विवश हैं, क्योंकि जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं। बैंकों से ब्याज पर ऋण लेने की वे हिम्मत नहीं कर पाते। ब्याज दरें हद से ज्यादा हैं, जिन्हें बैंक कम करने को तैयार नहीं हैं। यह हाल तो नौकरीपेशा, मध्य आय वर्गीय परिवारों का है। अब जरा उनके बारे में सोचिए, जो दूर दराज के राज्यों से एक जोड़ी कपड़ों में महानगरों, नगरों और कस्बों की ओर रोजी-रोटी की तलाश में चले आते हैं। इनमें मजदूर, रिक्शा चालक और भीख मांगकर अपना पेट भरने वाले करोड़ों लोग शामिल हैं। ये लोग फुटबाथ पर रातें गुजारने को मजबूर हैं। तपती रातें हों, कड़ाके की ठंड अथवा बरसात का मौसम, इनके लिए कोई बचाव नहीं है। हालात भयावह हैं। भुखमरी, कुपोषण, गरीबी, अभाव-एेसे अभिशाप बन गए हैं, जो भारत की करीब तीस-पैंतीस करोड़ आबादी का दामन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जब हमें आजादी मिली, तब देश की आबादी लगभग इतनी ही थी। इस गरीब आबादी पर सरकारों को भी दया नहीं आती। शायद इसलिए, क्योंकि यह अपने मताधिकार का उपयोग भी नहीं कर पाती है। लाखों नौजवान शहरों में कामकाज की तलाश में आते हैं लेकिन जब नौकरी नहीं मिलती तो रिक्शा चलाकर या दिहाड़ी कमाकर किसी तरह उदर पूर्ति करते हैं। किराए बहुत ज्यादा होने के कारण ये लोग रहने का ठौर-ठिकाना भी नहीं कर पाते। इनके सामने फुटबाथों पर रातें गुजारने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। डा. मनमोहन सिंह सरकार ने अगले पांच साल में शहरों को झुग्गी-झोंपड़ियों मुक्त करने का एेलान तो किया है लेकिन उस आबादी को छत देने का भरोसा उसने भी नहीं दिया है, जो सड़कों के बीच या किनारों पर स्थित फुटबाथ पर रातें बिताती है।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन यह वास्तविकता है कि आजादी के बासठ साल बाद भी भारत की बीस करोड़ से अधिक आबादी कुपोषण और भुखमरी की शिकार है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा से तो भुखमरी की खबरें मिलती ही रहती हैं, बाकी राज्य भी अपवाद नहीं हैं। पूरे विश्व में हर दिन करीब 18 हजार बच्चे भूख से मर रहे हैं। विश्व की करीब 85 करोड़ आबादी रात में भूखे पेट सोने के लिए विवश है। पूरी दुनिया में करीब 92 करोड़ लोग भुखमरी की चपेट में हैं। भारत की बात करें तो हमारे देश में 42.5 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। 2006 एेसा वर्ष रहा, जिसमें भूख या इससे होने वाली बीमारियों के कारण पूरे विश्व में 36 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ भारत में करीब 20 करोड़ लोग खाली पेट रात में सोने के लिए विवश हैं। पिछले दिनों न्यूयार्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे विश्व के तमाम देशों की तुलना में भारत में वृहत पैमाने पर बाल पोषण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके बावजूद भारत की हालत चिंताजनक है। भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है, वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया जाता रहा है। कारण है, सरकारों की उदासीनता। सरकारी नीतियां अत्यंत गरीबों और वंचितों को केन्द्र में रखकर बनाई ही नहीं जाती।
भारत विश्व की दूसरी सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था हो सकती है लेकिन मंजिल अभी भी बहुत दूर है क्योंकि भुखमरी को दूर करना सबसे बड़ी समस्या है और विश्व में भारत को इसमें 94वां स्थान मिला है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में जारी अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था के विश्व भुखमरी सूचकांक -2007 में भारत को 118 देशों में 94वें स्थान पर रखा गया है। भारत का सूचकांक अंक 25.03 है, जो वर्ष 2003 (25.73) के मुकाबले कुछ ही बेहतर हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि हालात कितने खराब हैं। लगता ही नहीं कि सरकारें गरीबी दूर करने, असमानता मिटाने और बेहद अभावों में जी रहे लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने की दिशा में ठोस उपाय कर रही है। सभी राजनीतिक दल नारे तो बहुत आकर्षक देते आए हैं परन्तु उनकी नीतियां गरीब विरोधी रही हैं। सरकारें अपना बजट या तो कारपोरेट घरानों की सलाह पर बनाती हैं अथवा मध्यम आय वर्गीय परिवारों के दबाव में, जिनके बारे में यह धारणा बन गई है कि सरकारें बनाने या गिराने में यह वर्ग ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आजादी के बाद की विकास यात्रा का अध्ययन करें तो पता चलता है कि अमीर और अमीर हुए हैं। गरीब और ज्यादा गरीब होते चले गए हैं। यह आंकड़े आंखें खोलने वाले हैं। यहां के 35 अरबपति परिवारों की संपत्ति 80 करोड़ गरीब, किसानों, जमीन से वंचित ग्रामीणों, मजदूरों, शहरी झुग्गी-झौंपड़ी वालों की कुल संपत्ति से ज्यादा है। दूसरी तरफ दुनिया में 14 करोड़ 30 लाख बो कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से 5 करोड़ 70 लाख भारत में हैं, जो 47 प्रतिशत होता है। एक हकीकत यह भी है कि गरीब ज्यादा तेजी से मर रहे हैं। उनकी आबादी भी बढ़ रही है।
कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा देकर फिर से सत्ता में लौटी डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने बजट सत्र में शिक्षा के अधिकार का विधेयक लाने का एेलान किया है। यह अपने आप में कम हैरत की बात नहीं है कि अब तक बनी सरकारों को शिक्षा के अधिकार का कानून बनाने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई। चूकि मनमोहन सरकार ने यह पहल की है, इसलिए उसे साधूवाद दिया जाना चाहिए, लेकिन कुपोषण-भुखमरी और अत्यंत गरीबी को देखते हुए क्या सरकार का यह फर्ज नहीं बनता है कि वह भोजन के अधिकार का कानून भी बनाए। राज्य सरकारें भले ही बदनामी के भय से भुखमरी की घटनाओं से इंकार करें परन्तु हकीकत यह है कि लगभग हर राज्य में भूख और बेहद गरीबी से लोग मर रहे हैं। देश को आजाद हुए बासठ साल हो गए हैं। आश्चर्य और अफसोस की बात है कि आज तक भी किसी सरकार ने भोजन के अधिकार का कानून नहीं बनाया। कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इस आशय का विधेयक विधानसभा में लाने की घोषणा की है। बाकी राज्य सरकारें अभी तक चुप्पी साधे बैठी हैं। देखना यही है कि क्या केन्द्र की सरकार इस दिशा में पहल करेगी? क्या प्रणब मुखर्जी गरीबों को यह अधिकार देने की पहल करेंगे? पूरे देश की निगाहें प्रणब मुखर्जी पर टिकी थी। हर साल बजट पेश करने की परंपरा का निर्वहन करते हुए उन्होंने सोमवार को लोकसभा में इस साल के शेष बचे आठ महीनों के लिए बजट पेश किया। लोगों को उम्मीद थी कि वे राइट टु फूड (भोजन का अधिकार) पर कुछ ठोस पहल करेंगे, लेकिन उन्होंने केवल खाद्य सुरक्षा की बात की। जाहिर है, इससे अत्यंत गरीबों और वंचितों को फिर गहरी निराशा हुई होगी।

3 comments:

parul said...

padhkar aur dekh kar kafi nirasha hui but samj nahi aata asi samsya ko door kaise kiya jye kyonki dukh har koi jtata h door karne koi koi aata h
baut acha lga h ki apne is pahlu par bhi dyan diya

MANVINDER BHIMBER said...

आपने एक अच्चा बिंदु उठाया है .......बात कहने के लिए जो फोटो लिया है ....वो भी मार्मिक है

डॉ. हरिओम पंवार - वीर रस के कवि said...

bilkul sahi mudda uthaya aapne. dukh to is baat ka hai ki sarkar ki karyshaili se lagata hi nahi ki is desh me koi bhookha bhi mar raha hai. hitech. sarkar hitech. karyshaili.