Friday, September 11, 2009

जेट के लिए ये शुभ संकेत नहीं


लगता है कि भारत की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइंस जेट एयरवेज में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कभी प्रबंधन उन्नीस सौ कर्मचारियों की छंटनी का एेलान कर असंतोष को दावत देता है तो कभी अचानक सूचना मिलती है कि चार सौ से अधिक पायलट स्वास्थ्य खराब होने के कारण एक साथ छुट्टी पर चले गए हैं। एयरलाइंस के एक बड़े अधिकारी ने हाल में हैदराबाद में स्वीकार किया कि यात्रियों की संख्या में 20 से 25 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। मंदी और फ्यूल में बारह प्रतिशत की बढ़ोत्तरी का बहाना बनाकर एयरलाइंस इसी साल जून में घरेलू उड़ानों में किरायों में वृद्धि कर ही चुकी है। जेट एयरवेज कंपनी के साठ वर्षीय चेयरमैन नरेश गोयल का नागरिक उड्डयन क्षेत्र में अड़तीस वर्ष का अनुभव है। कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अवार्ड उनके नाम हैं। जेट एयरवेज को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली एयर लाइंस का रुतबा हासिल है। 1993 में जेट के पहले विमान ने उड़ान भरी थी और निसंदेह इस सोलह साल के सफर में इसने कई आयाम स्थापित किए। एक सौ सात विमानों के बेड़े के साथ जेट एयरवेज रोजाना 65 शहरों के लिए तीन सौ तीस उड़ानें भरता है। न्यूयार्क, बैंकाक, सिंगापुर, लंदन सहित सोलह विदेशी शहरों तक भी जेट की उड़ानें उपलब्ध हैं। जाहिर है, विश्व स्तरीय सेवा उपलब्ध कराने के उसके दावे को देखते हुए ही सरकार ने उसे इतनी ऊंची उड़ान भरने के लिए लाइसैंस जारी किए, लेकिन अहम सवाल यही खड़ा हो रहा है कि क्चया जेट एयरवेज वे उच्च मानदंड बनाए रखने में सफल रही है, जिसके वह दावे करती है? जेट के विमानों में यात्रा करने वाले अधिकांश यात्रियों के हाल के महीनों के अनुभव कोई बहुत अच्छे नहीं हैं। चाहे टिकट बुकिंग का मसला हो, पैसे वापस लौटाने का, फ्लाइट कैंसिंल होने की सूरत में यात्रियों को होटलों आदि में ठहराने की व्यवस्था का अथवा फ्लाइट के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनाएं देने का, जेट का हाल सरकारी एयरलाइंस से भी बदत्तर नजर आने लगा है।
घरेलू उड़ानों में यदि जेट यात्रियों की पहली पसंद बनी तो इसकी कुछ पुख्ता वजहें रहीं। आरामदेह यात्रा के मामले में किंगफिशर ने भी अपना विशेष स्थान बनाया है लेकिन मंदी का रोना रोते हुए जिस तरह इन नामचीन निजी एयरलाइनों ने एक-एक कर सुविधाओं में कमी करनी शुरू की है, उससे इनके पेशेवर होने पर ही संदेह होने लगा है। निजी एयरलाइनों ने पैकेज लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की गर्ज से एक दिन की हड़ताल का एेलान किया, लेकिन उन्हें सरकार के कड़े रुख के बाद हड़ताल वापसी का निर्णय लेना पड़ा। निजी एयरलाइनें भले ही मंदी का रोना रो रही हैं, वास्तविकता यह है कि अधिकांश रूट्स पर उनके विमानों में कोई सीट खाली नहीं होती। कुछ रूट्स पर तो हफ्तों पहले बुकिंग कराने के बावजूद टिकट कन्फर्म नहीं होते हैं।
यात्रियों के प्रति जिम्मेवारी और जवाबदेही के मामले में निजी एयरलाइनें किस कदर बेपरवाही दिखाने लगी हैं, इसका अंदाजा हाल की लेह-लद्दाख की यात्रा के दौरान खुद लेखक को हुआ। यह ठीक है कि रिमोट एरिया की अपनी कुछ दिक्कतें हैं और मौसम खराब होने की हालत में कोई भी एयरलाइन हो, उड़ान का खतरा नहीं उठा सकती। लेह और आसपास के पूरे क्षेत्र में इस समय तापमान दस से पंद्रह डिग्री सेल्सियस के बीच है। दूर नजर आने वाली पहाड़ियों पर बर्फबारी साफ दिखती है। पहाड़ी इलाकों में कब घना कोहरा छा जाए। धुंध के साथ बारिश शुरू हो जाए, कहा नहीं जा सकता। वापसी के समय हमें भी मौसम की बेरुखी का शिकार होना पड़ा। तय समय पर लेह एयरपोर्ट पर पहुंचे। सिक्योरिटी जांच के बाद बोर्डिंग पास ले लिया लेकिन खराब मौसम के चलते दिल्ली से लेह पहुंचने वाला जेट का विमान दिल्ली से रवाना ही नहीं हो सका। साढ़े तीन घंटे तक एयरपोर्ट पर ही इंतजार करते रहे। अंतत: यह उद्घोषणा हुई कि फ्लाइट कैंसिल कर दी गई है। बोर्डिंग पास वापस ले लिए गए। टिकटों पर सुबह सवा पांच पहुंचने का समय दर्ज कर दिया गया। बताया गया कि दिल्ली से विशेष विमान आएगा, जो सात बजे उड़ान भरेगा।
एेसी दशा में एयरलाइनें यात्रियों को होटलों में ठहराने, उनके खान-पान और लाने-ले जाने की व्यवस्था करती है। यात्रियों को जेट एटरलाइन के लेह प्रबंधकों ने इस तरह की सुविधा देने से इंकार कर दिया। इससे भी बड़ा आश्चर्य हमें तब हुआ, जब सुबह पौने पांच बजे होटल छोड़कर हम लेह एयरपोर्ट पहुंचे और वहां बताया गया कि हमारी फ्लाइट तो ग्यारह बजे है। जब जेट के प्रबंधक को पकड़ा गया तो उसने माना कि पहले सात बजे ही फ्लाइट उड़ान भरने वाली थी। बाद में इसमें संशोधन हुआ, जिसकी सूचना वे लोग कुछ यात्रियों को नहीं दे सके। इन कुछ यात्रियों की तादाद बीस से ऊपर थी। आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि विश्व स्तरीय सुविधाएं देने का दावा करने वाली जेट एयरलाइंस के प्रबंधकों का क्या हाल है। वह भी देश के रिमोट एरियाज में। कहा-सुनी के बाद आखिर हम लोगों को सवा सात बजे रवाना होने वाली किंगफिशर की फ्लाइट में जगह मिल पाई।
अब यह घटनाएं आम हैं। आम आदमी के लिहाज से हमारी घरेलू एयरलाइनें आज भी सस्ती नहीं हैं। खासकर किंगफिशर, जेट, एयर इंडिया वगैरा की यात्रा बाकी के मुकाबले महंगी हैं। इनमें यात्रियों की घटती संख्या की एक बड़ी वजह बढ़ते किराये और घटती सुविधा है तो बहुत हद तक यह रवैया भी है कि यात्रियों की गर्ज है तो वह खुद फ्लाइट के कैंसिल होने की जानकारी हासिल करे। नियमानुसार एेसी दशा में एयरलाइनों को यात्रियों को एसएमएस अथवा फोन काल से सूचना देनी होती है। जेट एयरलाइन देश की निजी क्षेत्र की सबसे अच्छी विमान सेवा होने का दावा करती है, लेकिन यही हाल रहा तो बहुत जल्दी उसे अपने रुतबे से हाथ धोना पड़ेगा। पिछले साल अक्तूबर में दीवाली से ठीक पहले अचानक उन्नीस सौ कर्मचारियों की छंटनी के फरमान के बाद इस एयरलाइन्स को जबरदस्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। तब नरेश गोयल को खुद सामने आकर आंदोलनरत कर्मचारियों से माफी मांगनी पड़ी थी। जिस तरह चार सौ से अधिक पायलट एक साथ छुट्टी पर चले गए हैं, उससे जहां एयरलाइन में बढ़ रहे असंतोष के संकेत मिलते हैं, वहीं यह भी पता चलता है कि अनुशासनहीनता चरम पर है और यात्रियों को होने वाली असुविधा की चिंता उन्हें नहीं है। जाहिर है, किसी भी एयरलाइन के लिए ये कोई शुभ संकेत नहीं हैं।

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