सुबह गुनगुनी धूप
बहुत चुपके से
आ घुसी मेरे बिस्तर में
मैंने देखा, मुस्कुराया
पूरे मन से कहा
हे सूर्य किरण
तुम्हारा स्वागत है.
सैर करने निकला
यह देख हैरान हुआ
वो पसरी थी फूलों पर
पत्तियों पर, कलियों पर
ओंस से सराबोर पत्तों पर.
कुम्हला रहे पंछियों के
रंग बिरंगे पंखों पर.
तितलियों की थिरकन पर
हरियाली भरे रास्तों पर
स्कूल जा रहे बच्चों के
खिलखिलाते चेहरों पर
अल सुबह कबाड़ के ढेर से
फटे पुराने कपडे, बोतल
बचा खुचा खाना बीन रहे
नन्हे नन्हे हाथों पर
जवान उम्र को रिक्शे
पर बैठाकर ढोते हुए
झुर्रियों भरे चेहरे पर
मैंने देखा रात का
अंधकार छंट गया है
दिन के उजाले में
अंधकार मगर बाकी है
पंछी उड़ चले उस ओर
सूर्योदय हो रहा जिस ओर
जगमग प्रकाश था अब
गगन से धरा तक
उस गुनगुनी धूप को देख
मै ही नहीं मुस्कुराया
मुस्कुरा उठी थी
पूरी कायनात ही.
omkarchaudhary@gmail.com
Tuesday, July 27, 2010
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