Thursday, February 25, 2010

बेशकीमती कोहिनूर है सचिन


प्रधानमंत्री ने कहा, सचिन तेंदुलकर जैसा कोई नहीं है और उन पर देशवासियों को गर्व है। उसके कुछ ही देर बाद राष्ट्रपति का बधाई संदेश भी आ गया। जिस समय न्यूज चैनलों पर सचिन की महानता के गुणगान हो रहे थे, खुद तेंदुलकर उस समय दो सौ रनों की नाबाद मैराथन पारी खेलने के बावजूद मैदान पर उसी उत्साह के साथ फील्डिंग करते नजर आ रहे थे। छोटे कद के इस महान खिलाड़ी ने ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीकी टीम के खिलाफ दूसरे वनडे में वह कारनामा कर दिखाया, जिसके सपने हर बड़ा खिलाड़ी देखता है। वनडे में दोहरा शतक लगाने का असाधारण करिश्मा। इसके आस-पास तक तो कई आए, लेकिन अंतत: इसे अंजाम दिया बीस साल से अनवरत क्रिकेट खेल रहे 36 वर्षीय सचिन रमेश तेंदुलकर ने। पाकिस्तान के अनवर सईद, विवियन रिचर्डस, सनथ जयसूर्या और खुद सचिन 186 से 194 तक रनों तक का पहाड़ चढ़ लिए थे, लेकिन पहाड़ को फतेह किया मास्टर ब्लास्टर ने।
देश कई तरह के संकटों से जूझ रहा है। आंतरिक सुरक्षा का सवाल बड़ा है। महंगाई से हर कोई कराह रहा है। इस मुद्दे पर संसद गर्म है। विपक्ष काम-काज रोककर इस पर बहस का दबाव बनाए हुए है। दोपहर में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने राहत भरा बजट पेश कर देशवासियों की दुख तकलीफों को थोड़ा कम करने की कोशिश की थी। टीवी चैनलों पर उस समय रेल बजट पर टीका टिप्पणियों का दौर चल ही रहा था कि खबर आई कि सचिन ने ग्वालियर वन डे में 46 वां शतक पूरा कर लिया है। रिमोट पर चैनल बदले जाने लगे। लोगों की नजरें सचिन पर जा टिकीं। उस सचिन पर जिसने पिछले एक साल में कई नए कीर्तिमान स्थापित कर डाले हैं। पिछले एक साल में दस टैस्ट मैचों में उन्होंने छह शतक ठोक डाले हैं। जिनमें से चार तो लगातार चार मैचों के हैं। टैस्ट में 47 शतक और वनडे में 46 शतक वे अपने नाम कर चुके हैं। अब शतकों के शतक से वे मात्र सात शतक दूर हैं। जिस तरह उनका बल्ला बोल रहा है, लगता है अगले साल तक यह करिश्माई खिलाड़ी इस कारनामे को भी अंजाम दे चुका होगा।
पूरा देश उनके कीर्तिमानों पर आह्लादित है। वे कोई नया कारनामा करते हैं तो लोग अपनी दुख तकलीफों को भूल जाते हैं। एेसे ही जैसे कुछ ही पलों के लिए सही, लोग महंगाई को भूल गए। उन्हें लगता है, जैसे ये उपलब्धि सचिन की नहीं, उनकी अपनी है। सचिन हर परिवार के अपने हो गए हैं। सुनील गावस्कर को सचिन अपना प्रेरक मानते रहे हैं। वो गावस्कर कह रहे थे कि मेरा मन कर रहा है की मई सचिन के पांव छू लूँ। नाना पाटेकर कह रहे थे कि मैं मरूंगा तो अपनी आंखें दानकर जाऊंगा ताकि मरने के बाद भी सचिन को खेलते हुए देखता रहूं। गायक अभिजित की टिप्पणी थी कि सचिन व्यक्ति
नहीं, सच में भगवान हैं। खुद भगवान भी आकर बल्लेबाजी करते तो शायद इस तरह न खेल पाते। जितने मुंह, उतनी बातें। सच में इस खिलाड़ी ने भारतीयों का मस्तक पूरी दुनिया में ऊंचा किया है। सचिन भारतीय है, इस पर हर भारतीय ही नहीं, समूचे महाद्वीप को गर्व है। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर रमीज राजा ने कहा कि जब मास्टर ब्लास्टर ने सईद अनवर का 194 रन का रिकार्ड तोड़ा तो पाकिस्तान में दुआ की जा रही थी कि वह दोहरा शतक जरूर बनाएं। और दुआ कुबूल हो गई।
दुआएं सरहद पार ही नहीं की जा रही थीं, स्टेडियम में बैठे उनके संगी-साथी, हजारों की भीड़, टेलीविजन चैनलों से चिपके करोड़ों लोग भी प्रार्थना कर रहे थे कि उनकी मुराद पूरी करा दे। सचिन जिस तरह खेल रहे थे, उसमें लग रहा था कि वह वन डे में दो सौ रन बनाने का कारनामा आज जरूर कर दिखाएंगे। और एेसा हुआ। जिस समय पूरी दुनिया सचिन को बधाई दे रही थी, पता नहीं अपनी क्षुद्र राजनीति के लिए इस जीनियस को भी निशाने पर लेने वाले वे लोग कहां दुबक गए थे, जिन्होंने पिछले दिनों उनके खिलाफ तुच्छ बयानबाजी कर अपनी जगहंसाई कराई थी। शाबास, सचिन लगे रहो। पूरे देश को आप पर गर्व है।
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Tuesday, February 16, 2010

निपटना ही होगा माओवादियों से

मुंबई पर हमले के चौदह महीने बाद तक देश में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। अब पुणे में एक बेकरी को निशाना बनाया गया तो तमाम तरह की नुक्ताचीनी शुरू हो गई। कुछ आलोचकों ने तो पाकिस्तान के साथ 25 फरवरी को नई दिल्ली में प्रस्तावित बातचीत को रद्द कर देने तक की सलाह दे डाली, जबकि वह भी जानते हैं कि आतंकवाद की आग में इस समय खुद पाकिस्तान भी झुलस रहा है। हालांकि यह भी सच है कि इस आग से खेलने का खेल भी उसी ने शुरू किया था। हाल में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा था कि माओवादी हिंसा देश की एकता-अखंडता और आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा और चुनौती बन गई है। आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों की बैठक के फौरन बाद गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने नक्सली हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ अलग से बैठक आयोजित की लेकिन बिहार और झारखंड के मुख्यमंत्रियों ने उसमें हिस्सा लेना तक मुनासिब नहीं समझा। इससे पता चलता है कि राज्य सरकारें इस गंभीर होती जा रही समस्या के प्रति कितनी संजीदा हैं।
पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में इस समय नक्चसलवादी हिंसा का तांडव मचाए हुए हैं। सोमवार को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के शिविर पर दो दर्जन से अधिक हथियारबंद नक्सलियों ने हमला कर बीस से अधिक जवानों को मार डाला। गृह मंत्नी पी. चिंदबरम ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि मिदनापुर जिले में हुआ यह हमला और इस तरह के सभी हमले नक्सलियों की वास्तविक प्रकृति और चरित्न को उजागर करते हैं। चिदंबरम ने कहा कि शिविर से 40 से अधिक हथियारों के लूटे जाने की खबर है। गौरतलब है कि भाकपा-माओवादी के नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए धमकी दी है कि जब तक माओवादियों के खिलाफ की जा रही सैन्य कार्रवाई नहीं रुकेगी, तब तक इस तरह के हमले जारी रहेंगे।
नौ फरवरी को पी चिदम्बरम ने नक्सलियों के खिलाफ संयुक्त अभियान के लिए कोलकाता में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की थी। इसके ठीक छह दिन के भीतर यह हमला हुआ है। चिदम्बरम ने कोतकाता में कहा था कि यदि नक्सलवादी हिंसा की गतिविधियों को छोड़ने को तैयार हों तो सरकार उनके साथ किसी भी विषय पर वार्ता के लिए तैयार है। चिदंबरम इन अटकलों को खारिज किया था कि नक्सलियों के खिलाफ प्रभावित राज्यों में जारी अभियान में उनकी हत्या कर दी जाएगी। गृहमंत्री ने इस तरह की मीडिया रिपोर्टों पर साफ कहा कि वे हमारे लोग हैं, हमें उनके जीवन की चिंता है। इसका उद्देश्य नक्सल प्रभावित इलाकों में नागरिक प्रशासन को फिर से स्थापित करना है। नक्सलियों के इस ताजा हमले से साफ हो गया है कि वे शासन को न केवल सीधी चुनौती दे रहे हैं बल्कि सुरक्षाकर्मियों के मनोबल को तोड़कर इस अभियान को भोथरा कर देना चाहते हैं। साफ है कि नक्सली हिंसा आतंकवाद से भी बड़ी चुनौती बनती जा रही है और अब समय आ गया है, जब सरकार को इससे निपटने के लिए कई मोरचों पर गंभीर प्रयास करने ही होंगे।

Saturday, February 13, 2010

संयोग या सुनियोजित साजिश ?

यह महज संयोग है या सोची समझी साजिश कि पुणे के कोरेगांव इलाके में जर्मन बेकरी में एेसे समय बम विस्फोट हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की बातचीत की तारीख तय हुए चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे। इस विस्फोट के पीछे पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों का हाथ है कि नहीं, फोरेंसिक जांच के बाद जल्द ही इसका खुलासा होने वाला है, लेकिन शक की सुईं एक बार फिर लश्कर ए तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की ओर घूमती नजर आ रही है। ये ही वे जमातें हैं, जो नहीं चाहतीं कि भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधरें। 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत बंद थी। भारत का साफ कहना था कि जब तक पाकिस्तान मुंबई के हमलावरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करता, तब तक बातचीत नहीं होगी, लेकिन हाल ही में भारत ने सचिव स्तर की बातचीत का प्रस्ताव रखा, जिसे पाक सरकार ने स्वीकार कर लिया। 25 फरवरी को नई दिल्ली में यह बातचीत होनी है, लेकिन पुणे के आतंकी हमले में अगर पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और आईएसआई की भूमिका उजागर हुई तो बहुत संभव है, शुरू होने से पहले ही वार्ता फिर टूट जाए।
पुणे में यह पहली आतंकवादी वारदात है। मुंबई और महाराष्ट्र लगातार आतंकवादियों के निशाने पर रहा है। 26 नवम्बर 2008 का आतंकी हमला सबसे सुनियोजित और बड़ा था, जिसमें दस आतंकवादियों ने तीन दिन तक सेना, अर्धसैनिक बलों, एनएसजी कमांडो और मुंबई पुलिस से टक्कर ली। उस वारदात में पौने दो सौ से अधिक लोग मारे गए, जिनमें बीस से अधिक विदेशी थे। जांच में साफ हो गया था कि उस वारदात के तार सीधे पाकिस्तान से जुड़े थे। सभी दस आतंकवादी कराची से समुद्री रास्ते से मुंबई पहुंचे थे, जिनमें से नौ मारे गए और आमिर अजमल कसाब को जीवित पकड़ लिया गया, जिस पर इस समय मुंबई की विशेष अदालत में मुकदमा चल रहा है।
भारत कहता आया है कि पाकिस्तान सरकार ने मुंबई की वारदात के बाद भले ही कहा हो कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा, हकीकत यह है कि वहां आतंकवादियों का नेटवर्क जस का तस काम कर रहा है। मुंबई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को वहां खुली छूट है। वह पाक अधिकृत पाकिस्तान जाकर अभी भी भारत विरोधी भड़काऊ भाषण दे रहा है। यह अपने आप में हैरत की बात है कि पाकिस्तान अभी भी वहां सक्रिय भारत विरोधी जमातों और आतंकी संगठनों पर नकेल कसने के बजाय उन्हें हवा दे रहा है। पाक प्रधानमंत्री का बयान आता है कि कश्मीर का मसला फलीस्तीन जैसा ही है और जब तक इसे हल नहीं किया जाएगा, तब तक दक्षिण व दक्षिण पूर्वी एशिया में शांति बहाल नहीं होगी। साफ है कि आतंकवाद की आग में झुलस रहे पाकिस्तान को अब भी अक्ल नहीं आ रही है। पुणे की इस ताजा घटना से साफ हो गया है कि खतरा टला नहीं है, बल्कि और बढ़ गया है। गृहमंत्री पी चिदम्बरम और पीएमओ की सक्रियता के चलते पिछले करीब सवा साल में कोई बड़ी वारदात नहीं हो सकी लेकिन इस तरह के हमलों की आशंका लगातार बनी रही है। इस घटना से साफ हो गया है कि न केवल केन्द्रीय एजेंसियों को बेहद सतर्क रहना होगा, बल्कि राज्यों को भी अपनी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को चुस्त चौकस करना होगा। पुणे की घटना के बाद जाहिर है, हालात एक बार फिर बदल गए हैं। यूपीए सरकार को पाकिस्तान के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के बारे में पुर्नविचार करना होगा, नहीं तो विपक्षी दल, खासकर भाजपा के तीखे सवालों का सामना उसे संसद के भीतर और बाहर करना होगा। इस घटना के बाद भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। उसने जानना चाहा है कि क्या सरकार रिलैक्स हो गई है। और सरकार स्पष्ट करे कि यह सब आखिर कब तक चलता रहेगा?
इस घटना से एक बात और स्पस्ट हुई है कि मुंबई कि तरह पुणे में भी आतंकवादियों के निशाने पर विदेशी ही थे. जर्मन बेकरी, जहाँ ये विस्फोट किया गया है, पर विदेशी बड़ी संख्या में आते हैं. इसके अलावा करीब ही यहूदियों का निवास है. पुणे में खासकर यूरोपियन देशों के नागरिक बड़ी तादाद में रहते हैं. आतंकवादी चाहते हैं कि विदेशियों में खौफ पैदा कर यह सन्देश भेजा जाए कि भारत उनके लिए सुरक्षित जगह नहीं है. भारत सरकार को इस घटना से सतर्क हो जाना चाहिए. आतंकवादियों का अगला टार्गेट निश्चित रूप से कामनवेल्थ गेम्स होंगे. पाकिस्तान नहीं चाहेगा कि भारत सफलता पूर्वक कामनवेल्थ गेम्स आयोजित कर दुनिया भर में यह सिद्ध करे कि यहाँ सुरक्षा के कोई खतरा नहीं है. इस समय दक्षिण अफ्रीका की टीम भारत दौरे पर है. रविवार से कोलकाता में दूसरा टेस्ट शुरू हो रहा है. दोनों टीमों की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है लेकिन भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवादी लाहोर जैसी कोई हरकत नहीं करने पाएं जिसके बाद श्रीलंकन टीम को दौरा बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौटना पड़ा था. उसके बाद से किसी देश की टीम ने पाकिस्तान जाने की हिम्मत नहीं की है.
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Tuesday, February 9, 2010

इन उत्सवों को संभालिए


रुचिका गेहरोत्रा कांड के आरोपी पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर पर सोमवार को अदालत के बाहर चाकू से प्रहार करने वाले 28 वर्षीय युवक उत्सव शर्मा के संबंध में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की फाइन आर्ट्स फैकल्टी में बीएफए का वह गोल्ड मेडलिस्ट रहा है। उसकी शार्ट फिल्म चाय ब्रेक को प्रतिष्ठित अवार्ड के लिए चुना गया है। वह मेधावी छात्र है और इस समय भले ही डिप्रेशन से ग्रस्त है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वह अहमदाबाद के प्रतिष्ठित संस्थान नेशनल स्कूल आफ डिजायनिंग का छात्र है। अब तक की पूछताछ से पता चला है कि पिछले महीने वह पंचकूला पहुंचा और वहां की जाट धर्मशाला में रहकर एसपीएस राठौर के बारे में जानकारियां जुटा रहा था। धर्मशाला के केयरटेकर से उसने अपनी मंशा भी बताई थी कि वह रुचिका-राठौर प्रकरण पर फिल्म के लिए एक स्टोरी तैयार करना चाहता है। जिस धर्मशाला में वह रात बिताता था, वह न तो कोर्ट परिसर से दूर है और न राठौर के निवास स्थान से।

उत्सव की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। उल्टे वह बहुत प्रतिभाशाली छात्र रहा है। उसके पिता और माता बनारस के प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रोफेसर और चिकित्सक हैं। उन दोनों को भी उत्सव के कृत्य पर आश्चर्य है और उनका साफ कहना है कि किसी को भी कानून हाथ में लेने का हक नहीं है, लेकिन वे यह भी बताते हैं कि उस्तव की दिमागी हालत ठीक नहीं है। उसका पिछले चार महीने से अहमदाबाद में डिप्रेशन का उपचार चल रहा है, जिसके कागज लेकर वे दोनों बनारस से पंचकूला पहुंच रहे हैं। उत्सव ने छोटे चाकू से राठौर पर तीन वार करने की कोशिश की। गनीमत रही कि राठौर के चेहरे पर हल्की सी चोट आई। वे बच गए। चोट ज्यादा घातक भी हो सकती थी।
राठौर ने अपनी तरफ से हमलावर युवक के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं कराने का निर्णय लिया है। हो सकता है, कि यह गांधीगीरी दिखाकर वे उन करोड़ों भारतीयों की सहानुभूति हासिल करने की चेष्टा कर रहे हों, जो रुचिका गेहरोत्रा मामले में उनके कारनामों से बेहद नाराज हैं। कौन नहीं जानता कि राठौर ने रुचिका को विदेश जाने से रोका। उसका योन शोषण किया। उसके परिजन उनके खिलाफ शिकायत नहीं करें, इसके लिए उसके भाई को झूठे कार चोरी के मामलों में बंद कराकर बुरी तरह टार्चर किया। फीस जमा नहीं करा पाने पर रुचिका को स्कूल से बर्खास्त करा दिया। इस सबसे वह बालिका इस कदर टूटी कि अंतत: रुचिका ने आत्महत्या कर ली।
मीडिया के प्रेशर और लोगों के सड़कों पर उतर पड़ने के बाद रुचिका के परिजनों की हिम्मत बंधी है। केंद्र और हरियाणा सरकार भी जागी हैं. इतने साल बाद उन्हें भी लग रहा है कि रुचिका के परिवार के साथ ज्यादती हुई है. गृह मंत्री ने तो रुचिका के पिता को बुलाकर बात भी की है. मीडिया, लोगों और सरकारों की सक्रियता के बाद ऊंची अदालतों ने भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए राठौर के खिलाफ नए सिरे से मामले दर्ज कर दोबारा जांच के निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद जिस तरह राठौर को हरियाणा की पुलिस बचाने की चेष्टा करती रही है और राठौर के चेहरे पर गहरी होती मुस्कान देखी गई है, उससे उत्सव क्चया, हजारों-लाखों लोगों के मन में आक्रोश पैदा होता है।
हालांकि किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता और किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है.उत्सव ने जो किया, उसका समर्थन उसके माता पिता तक ने नहीं किया. लेकिन यह भी सच है कि इस प्रकरण ने आम आदमी के मन में राठोर जैसे पुलिस अधिकारियों के प्रति असम्मान और नफरत पैदा कर दी है. उन्हें लगता है कि पद का दुरपयोग कर अधिकारी कितने निचले स्तर हरकतों पर उतर सकते हैं..यह प्रकरण बताता है.सत्ता-व्यवस्था में बैठे लोगों को सोचना होगा कि उत्सव जसे प्रतिभाशाली नौजवान यदि अपने करियर को दांव पर लगाकर इस तरह आपा खो रहे हैं तो इसकी वजह क्या है। समय रहते उन कारणों को दूर करना होगा, नहीं तो एेसे बहुत से उत्सव कानून को हाथ में लेते नजर आएंगे। इस घटना से यह भी पता चलता है कि हमारा युवा वर्ग इस तरह के मामलों में कितना संजीदा होता जा रहा है.
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Monday, February 1, 2010

एक और शानदार उपलब्धि


जाने-माने संगीतकार ए आर रहमान ने डैनी बायल की आस्कर विजेता फिल्म स्लमडाग मिलिनियर के लिए बेस्ट कम्पाइलेशन साउंडट्रैक और बेस्ट मोशन पिक्चर सांग श्रेणियों में दो ग्रैमी अवार्ड जीतकर विश्व मंच पर एक बार फिर भारतीयों का मस्तक ऊंचा कर दिया है। पिछले साल रहमान ने आस्कर में धूम मचाई थी। उन्हें ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डाग मिलिनियर में संगीत के लिए दो आस्कर अवार्ड से नवाजा गया था। ग्रैमी अवार्ड प्राप्त करने के बाद रहमान ने इसे अद्भुत अनुभव बताते हुए भगवान का शुक्रिया अदा किया। साउंडट्रैक श्रेणी में रहमान ने फिल्म कार्डिलेक रिकाड्स के लिए स्टीव जोर्डन, इनग्लोरियस बास्टर्ड के लिए क्वेनटीन टोरांटिनो और ट्विलाइट एवं ट्र ब्लड के निर्माताओं को पछाड़कर ग्रैमी जीता है। सर्वश्रेष्ठ गीत की श्रेणी में रहमान के जय हो ने आस्कर के लिए चयनित फिल्म द रेसलर में रेसलर गीत लिखने वाले ब्रूस स्प्रिंगस्टीन को हराया। लास एंजिलिस में आयोजित 52 वें ग्रैमी पुरस्कारों के भव्य समारोह में जहां रहमान को दो-दो पुरस्कार मिले, वहीं दो अन्य भारतीय उस्तादों को निराशा हाथ लगी। उस्ताद अमजद अली खान और उस्ताद जाकिर हुसैन को कामयाबी नहीं मिल सकी। अमजद अली खान को उनकी एल्बम एनसियंट साउंड्स के लिए नामित किया गया था जबकि तबला वादक जाकिर हुसैन को सर्वोत्तम क्लासिकल क्रासओवर एल्बम की श्रेणी में द मेलोड़ी आफ रिदम के लिए नामांकन मिला था। पिछली बार हुसैन को उनकी एल्बम ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट के लिए ग्रैमी अवार्ड से नवाजा गया था। जहां तक रहमान का सवाल है, जय हो के लिए उन्हें पहले ही गोल्डन ग्लोब ट्राफी और दो अकादमी अवार्ड मिल चुके हैं। वे पहले भारतीय हैं, जिन्हें आस्कर पुरस्कार मिला। रहमान ने ग्रैमी अवार्ड जीतने के बाद भले ही ईश्वर का आभार व्यक्त किया हो, लेकिन उनके परिवार, मित्रों और संगीत के जानकारों को इससे कोई ताज्जुब नहीं हुआ है। सभी का मानना है कि रहमान इस पुरस्कार के योग्य हैं। जय हो को अपनी आवाज देने वाले सुखविंदर सिंह की प्रतिक्रिया सही है कि रहमान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलनी ही थी। उन्होंने यह भी कहा कि रोजा से यहां तक का रहमान का सफर बहुत ही खास रहा है। आस्कर अवार्ड जीतने वाले साउंड आर्टिस्ट रसूल पोकुट्टी ने इसे विलक्षण जीत बताते हुए कहा कि रहमान की जीत दिखाती है कि भारत सृजनात्मकता के क्षेत्र में भी एक ताकत के रूप में उभर रहा है। 44 वर्षीय रहमान को मद्रास का मोत्जार्ट कहा जाता है। वह बेहद विनम्र हैं। बहुत कम लोगों को मालूम है कि रहमान का जन्म का नाम ए एस दिलीप कुमार था, जिसे बदलकर वे अल्लाह रक्खा रहमान यानि ए आर रहमान बने। सुरों के बादशाह रहमान ने हिंदी के अलावा कई अन्य भाषाओं में बनने वाली फिल्मों में भी संगीत दिया है। रहमान को संगीत अपने पिता आर के शेखर से विरासत में मिला, जो मलयाली फिल्मों में संगीत देते थे। हालांकि नौ साल की अल्पायु में ही रहमान के सिर से पिता का साया उठ गया। विलक्षण प्रतिभा के धनी रहमान के गानों की दो सौ करोड़ से भी अधिक रिकार्डिग अब तक बिक चुकी हैं। विश्व के टाप टेन म्युजिक कंपोजर्स में वे शुमार किए जाते हैं। रहमान ग्यारह बार फिल्म फेयर, सहित अनेक पुरस्कार जीत चुके हैं। 2000 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया था। निश्चय ही उनकी महान उपलब्धियों पर भारतीयों को उन पर गर्व है।
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क्या मुंबई उनकी जागीर है ?


कभी-कभी लगता है कि हमारे देश में अराजकता फैलाने वाले कुछ बाहुबलि किस्म के क्षत्रपों के लिए जैसे कानून है ही नहीं। बाल ठाकरे और राज ठाकरे ने मुंबई में जिस तरह का अराजक माहौल पैदा कर दिया है, उसे देखकर आश्चर्य होता है। इससे भी बढ़कर ताज्जुब इस बात का होता है कि वहां की सरकार पंगु बनी हुई है। बाल ठाकरे कभी मुकेश अंबानी को धमकाते हैं, कभी सचिन तेंदुलकर को तो कभी शाहरुख खान को। मुकेश अंबानी देश के कारपोरेट जगत का ऐसा चेहरा हैं, जिनकी दुनिया भर में ख्याति है। सचिन तेंदुलकर को केवल भारत के उनके प्रशंसक ही नहीं, विश्व भर के उनके चाहने वाले क्रिकेट का भगवान मानते हैं। पिछले बीस साल से वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल रहे हैं और उन्होंने जहां तमाम तरह के रिकार्ड कायम किए हैं, वहीं भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों पर पहुंचाकर उसे सम्मान दिलाया है। शाहरुख एेसे चमकते सितारे हैं, जिन्हें संसार भर में मान-सम्मान मिला है। अलग-अलग कारणों से बाल ठाकरे ने इन तीन हस्तियों को धमकाने की चेष्टा की है। बाल ठाकरे मुंबई के मठाधीश बने हुए हैं। यह जानकर आश्चर्य होता है कि पिछले तीन विधानसभा चुनाव में मुंबई और महाराष्ट्र के लोगों ने उन्हें सबक सिखाया है, फिर भी उनकी और उनके भतीजे राज ठाकरे की समझ में यह बात नहीं आ रही है कि लोग चरमपंथी विचारधारा और माफिया डान की धमकाने वाली शैली को पसंद नहीं करते हैं। राज ठाकरे और बाल ठाकरे को यह भ्रम हो गया है कि मुंबई और मराठावाद के वे जितने बड़े पैरोकार बनकर उबरेंगे और मुंबईकर के नाम पर लोगों को हड़काएंगे, आम मुंबईवासी शायद उन्हें उतना ही पसंद करेंगे। सही बात तो यह है कि इस तरह नफरत फैलाकर, क्षेत्र, भाषा और धर्म के नाम पर लोगों को बांटकर वे लोगों की नजरों में अपना कद घटा रहे हैं। मुंबई में रहने वाले नामचीन लोगों को शांति से अपना काम करना है। यह सोचकर वे कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। इसे ठाकरे परिवार लोगों की बुजदिली मानकर और दबाने की कोशिश करता है। शाहरुख खान हों या सचिन तेंदुलकर, उन्होंने एेसी कोई बात नहीं कही जो देश विरोधी हो। क्या संविधान में हरेक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है? शाहरुख और सचिन भी उतने ही मुंबईकर हैं, जितना ठाकरे का परिवार। किसी को भी किसी को धमकाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। शाहरुख ने केवल इतना कहा था कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को भी आईपीएल में खिलाया जाना चाहिए। बोली के समय उनके साथ जिस तरह का व्यवहार हुआ, उससे किसी को भी दुख पहुंच सकता है। लगभग यही बात गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने भी कही है। बाल ठाकरे ने उनके खिलाफ जबान क्यों नहीं खोली? अब ठाकरे सिनेमाघरों के मालिकों को धमकाने पर उतर आए हैं। उन्होंने पत्र लिखकर मुंबई के सिनेमाघर मालिको से कहा है कि वे शाहरुख की फिल्में नहीं लगाएं। योगगुरू बाबा रामदेव ने तो साफ कहा है कि मुंबई सबकी है और वहां किसी की दादागीरी नहीं चलनी चाहिए। लखनऊ में रामदेव ने सही ही कहा कि वे लोग घोर असंवैधानिक काम कर रहे हैं। उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। इसके लिए जरूरत पड़े तो राज्यों को विशेष कानून बनाना चाहिए। रामदेव ने कहा कि जाति-धर्म और क्षेत्न के नाम पर देश को बांटने की कोशिश की जा रही है। ये देश के लिए खतरनाक है। अच्छी बात है की संघ ने हिंदी भाषी उत्तर भारतियों की रक्षा का प्रण लिया है लेकिन यह सवाल तो उनसे भी पूछा ही जाएगा कि इतने लम्बे समय तक संगठन चुप्पी क्यों साधे रहा. क्या किसी को भी इस तरह किसी को सरेआम धमकाने की इजाजत दी जानी चाहिए. महाराष्ट्र में सर्कार ओउर पुलिस प्रशासन नाम की कोई व्यवस्था काम कर रही की नहीं ?