tag:blogger.com,1999:blog-995146313743172486.post3556941252111982816..comments2023-10-17T16:24:41.073+05:30Comments on आजकल: मूल मुद्दों की किसे फिक्र है ?ओमकार चौधरीhttp://www.blogger.com/profile/00252694907504968476noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-995146313743172486.post-73515280806283439232009-04-13T20:24:00.000+05:302009-04-13T20:24:00.000+05:30यह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है कि जूते जैसे मसले की...यह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है कि जूते जैसे मसले की वजह से राजनीति और हल्की हो गई है। जिन मुद्दों की चर्चा होनी चाहिए, नहीं हो रही है। दुखद तो ये है कि पत्रकार बिरादरी के कुछ लोग भी अपने पूर्वाग्रहों के चलते जरनैल की इस हरकत को सही बताने पर तुल गए हैं। मुद्दों की राजनीति बची ही कहां है। अब तो अपसंस्कृति, अपशब्दों की राजनीति शुरू हो गई है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995146313743172486.post-25082816610950388612009-04-10T19:52:00.000+05:302009-04-10T19:52:00.000+05:30अजी जिस ओर भी जा रहा है, जाने दीजियेजूते तो हैं ना...अजी जिस ओर भी जा रहा है, जाने दीजिये<BR/>जूते तो हैं ना<BR/>मारो जूते तान के<BR/>हर इक बेईमान केAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995146313743172486.post-26062075484349463052009-04-10T18:49:00.000+05:302009-04-10T18:49:00.000+05:30राजनेताओं से तो मूल मुद्दों की उम्मीद करना ही बेम...राजनेताओं से तो मूल मुद्दों की उम्मीद करना ही बेमानी है लेकिन आम आदमी भी मुद्दों पर वोट नहीं करता। ये चिंता की बात है।<BR/>हम और आप भले ही चींखें कि लोकतंत्र जीत गया लेकिन सच ये है कि पंडित, बनिया, जाट, गूजर या अगड़े-पिछड़े जीतते हैं; मुद्दे दरकिनार रहते हैं।हरिhttp://irdgird.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995146313743172486.post-43212183732314723642009-04-10T18:27:00.000+05:302009-04-10T18:27:00.000+05:30मूल मुद्दों की किसे फिक्र है ? Shayad kisi ko nahi...मूल मुद्दों की किसे फिक्र है ? Shayad kisi ko nahin... lekin yakeen hai ki ek din sabko iskee fikra karnee padegee.रंजीत/ Ranjithttps://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.com