तेरे मेरे बीच शब्द ही तो पुल थे
जब से से ये पुल हुआ है जर्जर
तब से न संवाद है न शब्द है
न मै मै हूँ न तुम तुम हो
वो भी एक वक्त था
तुम्हे याद हो न याद हो
शब्द भी न कम थे
बातें भी थी हजारों
न तुम ही थकते थे
न मै लेता था उबासी
दिन-रात, सुबह शाम
दोपहर हो के बरसात
चिलचिलाती धूप या शरद रात
करते थे बातें, गूंथते थे शब्द
वो खिलखिलाना, वो चुलबुलापन
वो शरारतें, न छूटने वाली आदतें
वो तुम्हारा घुडकना, अक्सर रूठना
एक दो रोज रूठे रहना
चुपके से मान जाना
न रह पाते थे तुम भी
न रह पाते थे हम ही
बारीशों ने गज़ब ढाया
धूल अंधडों ने भरमाया
बाढ़ आई, हुआ कीचड़ ही कीचड
घुटनों तक दलदल,
हर पथ-हर पग
पुल हुआ कमजोर
दरका, दहला, कांपा, टूटा
अब लटका हुआ वो पुल है
कुछ अवशेष ही है शेष
वो भी एक दौर था
न तुम्हारे पास कमी थी
न मेरे पास कमी थी
शब्दों की, बातों की
अब न तुम्हारे पास शब्द है
न मेरे पास शब्द है
होठ सिले, जुबां बंद है
न तुम रह गए तुम हो
न हम रह गए हम है
- ओमकार चौधरी
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