जब भी कोई नदी
तोड़ती है तटबंध
आ जाती है प्रलय
मच जाती है तबाही
उजड़ जाती हैं बस्तियां
और बहुतों के सुहाग
रास्ता बदल लेना
नदी की फितरत नही है
ये अलग ही दौर है
नदियाँ रास्ता बदल लेती हैं
और मच जाती है तबाही
अकेले कोसी को दोष मत दो
जिसे देखो, जिधर देखो
नदियाँ तोड़ रही है तटबंध
बदल रही है रास्ता
बस्तियां उजडती हों उजडें
तबाही होती है तो हो
प्रलय और तबाही से
भला उनका क्या वास्ता
ये आज के दौर की नदियाँ हैं
रास्ता बदलती है
उफनती हैं
तो इसकी वजह वे नही
बल्कि हालात हैं
नदियों को दोष क्यो देते हो
उनकी मर्यादा किसने भंग की ?
उन्हें तटबंध तोड़ने को
किसने विवश किया ?
सोचोगे
तो उसे नही
ख़ुद को कोसोगे
-ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
Tuesday, August 26, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
छब्बीस जुलाई को देश ने कारगिल जंग का दसवां विजय दिवस मनाया. 15 मई 1999 में शुरू हुई लड़ाई 26 जुलाई को खत्म हुई थी। इसमें भारत के 533 जवान शह...
-
इस बार का रक्षा बंधन हमारे परिवार के लिए अजीब सी खामोशी लेकर आया। सब चुप-चुप से थे। हमें पिछला रक्षाबंधन याद आ रहा था। पिछले साल जब मैं सोकर...
-
बड़ी दीवाली पर हर साल परिवार के साथ गाँव जाना होता है. इस बार भी गया. मेरा गाँव दबथुवा मेरठ जिले में सरधना मार्ग पर है. एक किसान परिवार में ...
No comments:
Post a Comment