Monday, September 8, 2008

राष्ट्र भाषा का अपमान क्यों

राष्ट्रभाषा का जैसा अपमान अपने देश में होता है, ऐसा कहीं और सम्भव नहीं है. कई देशों में तो ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तक हो जाती है. अपने यहाँ कोई किसी को भी गाली दे देता है. लगता है, जैसे यहाँ किसी को कुछ भी कहने की पूरी आज़ादी है. न किसी को संविधान की परवाह है, न मर्यादा की. न किसी की उमर का लिहाज है और न देश के प्रति किसी के योगदान का. ऐसे लोग गाँधी तक को नहीं बख्शते, जिन्होंने उनके बारे में पढ़ा तक नहीं, ऐसे लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में गाँधी के योगदान के बारे में भी कभी जानने की चेष्टा नही की. बड़े और नामचीन आदमी या हस्ती को गाली देंगे, उतनी ज्यादा पब्लिसिटी मिलती है. मीडिया ऐसे लोगों को बैठे बिठाए चमकाता रहता है. आजकल अजीब चलन शुरू हो गया है. राजनीति की दूकान चलाने के लिए हिन्दी का विरोध करो. हिन्दी भाषियों का विरोध करो. उन्हें भिखारी बताओ. यू पी, बिहार के भैये बताकर पीटो. इस से वोट बढेगा. हिन्दी की बात करने वाले को गाली दो. उसके खिलाफ पोस्टरबाजी करो, इससे वोट बैंक मजबूत होगा. इस निचले स्तर की राजनीति से राष्ट्रभाषा का अपमान होता हो तो हो. ये आश्चर्य की बात की है कि न तो सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कर्रबाई करती हैं, न ही हिन्दी के समर्थक उनके विरोध में स्वर बुलंद करते हैं. इसीलिए कहा कि ऐसा अपने देश में ही सम्भव है.
अमिताभ बच्चन और उनके परिवार का हिन्दी सिनेमा के लिए जो योगदान है, वो किसी से छिपा नहीं है. इस लिए किसी को उनकी वकालत करने की जरूरत नही है. अमिताभ इस तरह की बयानबाजी का समय समय पर अपने अंदाज में जवाब देते भी रहें हैं. खासकर महाराष्ट्र के ऐसे राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिदी के सवाल पर बच्चन परिवार पर पिछले कुछ समय से आक्रमण बोल रखा है, जिनका जनाधार खिसक चुका है और जो काफी अरसे से सत्ता के गलियारों से बाहर है. मराठा मराठा चिल्लाकर वे मराठियों को एकजुट कर अपना खोया जनाधार हासिल करना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि बच्चन परिवार का विरोध करेंगे और उनकी निष्ठा पर सवाल खड़ा करेंगे मुफ्त में पब्लिसिटी भी मिल जाएगी और मराठियों तक उनकी बात भी पहुँच जाएगी. ये एक अत्यन्त घटिया किस्म का हथकंडा है, जो इन लोगों ने अपनाया है. ये ये भूल जाते हैं कि महाराष्ट्र सरकार को कुल राजस्व का बहुत बड़ा हिस्सा हिन्दी फिल्मों से ही मिल रहा है. हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री को मुंबई से अलग कर दे तो वहां क्या बचेगा, इसका अंदाजा इन्हे नहीं है. शिव सेना और राज ठाकरे उन मराठियों पर रोक क्यों नहीं लगाने की जुर्रत कर रहे जो हिन्दी फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में लगें हैं. असंख्य मराठी हिन्दी फिल्मों में गीत गातें हैं, संगीत देते हैं, कहानी लिखते हैं. संवाद लिखते हैं. उनके परिवार की रोजी रोटी का इंतजाम हिन्दी सिनेमा से हो रहा है. ख़ुद बालासाहेब ठाकरे की पुत्र वधु हिन्दी फिल्मों के निर्माण से जुड़ी हुईं हैं.
देश में संविधान को गाली देने, राष्ट्र भाषा को अपमानित और तरस्कृत करने का एक फैशन सा हो गया है. किसी की मात्रभाषा मराठी हो सकती है. किसी की गुरमुखी हो सकती है. कोई तमिल भाषी हो सकता है. कोई कन्नड़ या बांग्लाभाषी हो सकता है. उसे अपनी मात्रभाषा में बोलने से कौन रोकता है ? ये ही तो भारत की विशेषता है कि यहाँ अनेक भाषा भाषी रहतें हैं परन्तु उनमे एकता है. देश प्रेम है. एक दूसरे के प्रति सम्मान का भावः है. वे एक दूसरे के तीज त्यौहार में हिस्सा लेतें हैं. एक दूसरे कि संस्कृतियों और परम्पराओं का आदर करतें हैं. ये राज ठाकरे और बाल ठाकरे जैसे लोगों ने इस देश में कौन सी परिपाटी शुरू कर दी है ? और वह भी तुच्छ राजनीति की पूर्ति के लिए ? इनकी पार्टी के लोग किस भाषा का प्रयोग कर रहें हैं, क्या उन्हें पता नहीं है ? ये लोग महिला तक का लिहाज नही कर रहे हैं. जया बच्चन ने दो दिन पहले एक हिन्दी फ़िल्म के म्यूजिक रिलीज के मौके पर ये कहकर क्या गुनाह कर दिया कि वे तो उत्तर प्रदेश से हैं, इसलिए हिन्दी में बोलेंगे. क्या अब राजनीतिक दलों के नेता बताएँगे कि किसे कौन सी भाषा बोलनी है, कौन सी नहीं. और हिन्दी कोई गई गुजरी भाषा नही है. देश के कुछ राज्यों को छोड़कर पूरे राष्ट्र में वह बोली और समझी जाती है. अगर किसी राजनीतिक दल के नेता को ये ग़लत फहमी हो गई है कि वह राष्ट्रभाषा का अपमान करके अपना खोया हुआ जनाधार हासिल कर सकता हैं तो भ्रम में हैं. महाराष्ट्र में भी हिन्दी भाषी लोगों की संख्या कम नहीं है.
देश के सामने और बहुत सी चुनौतियां हैं, महाराष्ट्र में भी समस्या कम नहीं हैं. अच्छा हो, अगर हिन्दी का विरोध करके अपनी राजनीति चमकाने की चेष्टा करने वाले नेता लोगों के बुनियादी सवालों को हल करने के बारे मैं गंभीरता से सोचें. उन्हें हल करें, तब पूरे देश में उनका सम्मान बढेगा. राष्ट्र भाषा को गाली देकर वे सम्मान अर्जित नही कर सकते. अमिताभ बच्चन हिन्दी के जाने-माने कवि और साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं. इस परिवार का हिन्दी के लिए योगदान किसी से छिपा नहीं है. और आज अमिताभ ख़ुद दुनिया के कुछ गिने-चुने अभिनेताओं में सुमार हैं. उन्हें धमका कर या अपमानित करके ये लोग किस स्तर की राजनीति कर रहें हैं, उन्हें ख़ुद पता नहीं है. राष्ट्र भाषा को गाली देकर वे कौन सी देश भक्ति का परिचय दे रहें हैं ?

ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

14 comments:

रंजन राजन said...

राष्ट्रभाषा का जैसा अपमान अपने देश में होता है, ऐसा कहीं सम्भव नहीं.
सही कहा सर। राष्ट्रभाषा को गाली देने और दूसरों के अधिकारों का हनन करने वाले ऐसे सनकी नेताओं को सदा के लिए जेल या पागलखाने में डाल देना चाहिए।
इसी मुद्दे पर मैंने भी अपने ब्लाग में एक छोटी सी पोस्ट डाली है। लिंक है-
http://gustakhimaaph.blogspot.com/2008/09/blog-post_08.html#links

कामोद Kaamod said...

छोटी सोच, छोटी बात..
राजनीति करनी तो आती नहीं. बखेड़ा खड़ा करके लोगों को जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद के नाम पर बर्गलाना, #$%&>@ कहना.. खिशियाए लोगों की निशानी है. कानून यहाँ पर शिथिल हो जाता है और तथाकथित राजनीति हावी हो जाती है.
यह बहस का मुद्दा है..

अच्छा लेख

शायदा said...

सही कहा आपने जैसा अपमान कर सकने की आज़ादी यहां है वैसी कहीं और न होगी। दुखद है।

Anonymous said...

बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है आपने। सीधी बात है कि अगर किसी राजनीतिक दल के नेताओं को ये ग़लत फहमी है कि वे राष्ट्रभाषा का अपमान करके अपना खोया हुआ वोट हासिल कर सकते हैं, तो ये उनका भ्रम है। घटिया व टुच्ची वोटो की राजनीति के लिए ये देश बांटने के बीज बो रहें हैं। ये लोग किसी भी हालत में जिन्ना से कम नहीं हैं।

ओमप्रकाश तिवारी said...

सही कहा सर।

सचिन मिश्रा said...

Pata nahi inki mansikta kya hai.

ajit said...

Twarit aur satik tippni.Mujhe aisa lagta hai ki Raj thakre ki karyshaili ko dekh kar shatad hi koi yakin karega ki isi Maharashtra main Shiva jee v kabhi Hua the.

parul said...

sir
bahut sahi kha h. voto ki rajneety h. but sir yha bhaut badi samsya h. is samsya ke hal par bhi apne veechar likhe.sadar abhivadan

seema gupta said...

"totally disgusting and shameful" aapke artical se inkee ankhen khulnee chaheye"

Regards

फ़िरदौस ख़ान said...

सवाल यह भी है कि अपने ही देश ( महाराष्ट्र) में हिन्दी का अपना हो रहा है और हिन्दी के कर्ता-धर्ता खामोश हैं...आख़िर क्यूं...?

pallavi trivedi said...

समझ नहीं आता ये कैसी आज़ादी है और कैसा लोकतंत्र है?

शोभा said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने. हमारी राष्ट्रीयता कहीं खो गई है. अधिक से अधिक पाने की लालसा मैं हम अपनी संस्कृति और अपनी पहचान से दूर होते जा रहे हैं.

MANVINDER BHIMBER said...

देश में संविधान को गाली देने, राष्ट्र भाषा को अपमानित और तरस्कृत करने का एक फैशन सा हो गया है. किसी की मात्रभाषा मराठी हो सकती है. किसी की गुरमुखी हो सकती है. कोई तमिल भाषी हो सकता है. कोई कन्नड़ या बांग्लाभाषी हो सकता है. उसे अपनी मात्रभाषा में बोलने से कौन रोकता है ? ये ही तो भारत की विशेषता है कि यहाँ अनेक भाषा भाषी रहतें हैं परन्तु उनमे एकता है. देश प्रेम है. एक दूसरे के प्रति सम्मान का भावः है. वे एक दूसरे के तीज त्यौहार में हिस्सा लेतें हैं. एक दूसरे कि संस्कृतियों और परम्पराओं का आदर करतें हैं. अपने सही लिखा है...देश की राजनीती में अपने कद बढाने के लिए राज नेता कुछ भी कर सकते हैं ...कुछ भी कर गुजरेंगे ....इसका अंजाम तो बाद में पता चलेगा .....
लिखते रहें

Gyan Dutt Pandey said...

आप हिन्दी के मानापमान की बात कर रहे हैं तो ठीक, पर आप बच्चन परिवार की यूलोजी (eulogy) कर रहे हैं तो बात अलग है। कुछ लोग लार्जर देन लाइफ हैं - उनकी क्या बात करें। इनमें ठाकरे भी हैं और बच्चन भी।