Friday, September 19, 2008

पगली / कहानी

बेगम पुल से आबूलेन मार्केट की तरफ़ मुडा तो वही चित परिचित आवाजें कानों में गूंजने लगीं. पगली आज फ़िर चीख चिल्ला रही थी. सड़क पर भीख मांगने वाला राजू उसे रानी मुखर्जी कह कह कर चिढा रहा था.
'रुक जा साले..तुझे अभी बताती हूँ'
' आ जा आ जा..और तेज भाग..खाकर पड़ी रहती है ' फ़िर चिढाया उसने.
' नरक में जाएगा हरामी ' कहकर वह फ़िर उसके पीछे दौडी.
' तू भी पीछे पीछे वहीं पहुँच जाएगी पगली '
' अभी बताती हूँ तुझे..' कहकर वह फ़िर भागी.
वे दोनों सड़क के इस और उस पार इस तरह भाग दौड़ कर रहे थे कि मुझ सहित कई गाडी चालकों को बड़े तेज ब्रेक लगाने पड़े. ऐसा नहीं करते तो उनमे से कोई सा जरूर नीचे आ गया होता.

मै झल्लाकर रह गया. चीख ही पड़ा, क्या बदतमीजी है ?
आस पास के कई दूकानदार बाहर निकल आए.
उन्होंने पगली को डांटा. लड़के को वहां से भगाया.
पगली बडबड़ाते हुए एक दूकान के आगे पसर गई. लड़का भीख मांगने में मशगूल हो गया. एक ही मिनट में ऐसा लगने लगा जैसे यहाँ शोर शराबा था ही नहीं.

दोपहर में मेडिकल स्टोर से दवा लेने के लिए उस तरफ़ से गुजरा तो देख कर हैरान रह गया.
पगली राजू को अपने हाथों से रोटी का टुकडा खिला रही थी. वो भी बड़े आत्मीय भावः से उसे निहारे जा रहा था. दवा लेकर लौट रहा था, तो नजरें उन्हें तलाशने लगी. वे वहां नहीं थे. थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा, सड़क से जाने वाली छोटी सी गली में राजू पगली की गोद में सर रख कर सो रहा है. वह ख़ुद भी ऊंघ रही थी. मेरे लिए ये अलग तरह का अनुभव था. मै इन दोनों के रिश्ते पर बहुत देर तक सोचता रहा.

जिज्ञासू हूँ, इसलिए आस पास के दूकानदारों से उनके बारे मै पूछा. पगली पाँच साल से इसी एरिया में रह रही थी. राजू कुछ ही समय पहले यहाँ आया था. पता नहीं कहाँ से. एक रोज दूकानदारों ने उसे खंभे से सर टिका कर सोते हुए पाया. उसके पास कपड़े भी नहीं थे. एक निक्कर में था वह. उसकी आंख खुली तो वह सुबकने लगा. अपने बारे में वह कुछ भी बता नहीं पा रहा था. उसकी उम्र छः वर्ष रही होगी. शुरू में दूकानदारों ने उसे खाने को दिया. कुछ दिन उसने एक ढाबे पर बर्तन धोए. लेकिन जल्दी ही वहां से भाग खड़ा हुआ क्योंकि ढाबे वाला भर पेट भोजन भी नहीं देता था और मारपीट भी करने लगा था. कुछ दिन वह किसी को दिखा नही, एक दिन अचानक पगली के पास बैठे देखा. वह उसके बालों में अपनी अँगुलियों से कंघी कर रही थी.
कभी कभी दूकानदारों को लगता था कि पगली इतनी पगली नहीं है.

आबूलेन मार्केट में ही दफ्तर था, सो रोज बेगम पुल से गुजरना होता. कभी उन दोनों को लड़ते झगड़ते देखता, कभी एक दूसरे से सट कर बैठे हुए तो कभी एक दूसरे को गालियाँ निकालते. ये क्रम पिछले कई महीने से जारी है. अब आँखे भी उन्हें ढूँढने लगी थी. वे नहीं होते तो मन में एक पल को आता जरूर, कहाँ गए होंगे ? फ़िर ख़ुद ही जवाब देता, यहीं कहीं भीख मांग रहे होंगे.

उस सुबह जब वहां से गुजरा तो पगली का रुदन जैसे दिल और दिमाग को चीरता हुआ भीतर तक हिला गया. इस तरह रोते हुए तो उसे कभी किसी ने नहीं देखा था. मै जल्दी में था, तो भी मैंने गाडी को साइड में लगाया. उतरा, उसके पास गया. गली में वह राजू को गोद में लिटाए विलाप कर रही थी. आस पास काफी लोग जमा थे. पता चला, कई दिन की भूख राजू बर्दाश्त नहीं कर सका और सुबह उसके प्राण पखेरू उड़ गए. पगली उसका विछोह सहन नहीं कर पा रही थी.
कई आँखें भर आई. मैंने मन ही मन सोचा, ये दुनिया कितनी क्रूर है ? हम लोग कितने संवेदनहीन हो गए हैं ? लोग अपने ही तक इतने सिमटकर क्यों रह गए हैं ? अब आंसू बहने से क्या होगा ? राजू तो वापस नहीं लौटेगा.. पगली की तो दुनिया ही उजाड़ गई थी. अब राजू ही तो उसकी दुनिया थी.
मुझे लगा जो औरत एक अनजाने बच्चे के लिए दहाड़े मारकर इस तरह विलाप कर रही है, वो पागल नहीं हो सकती. पागल ये समाज है, जो उसे पगली पगली कहकर अपमानित करता है. बोझिल पाँव से मै गाडी की ओर बढ़ गया. अब राजू और पगली की वो लडाई मुझे कभी नहीं दिखेगी.

ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

11 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

आंखें नम हो गई पूरी कहानी को पड़ कर......हमारे आस पास हर दिन कई राजू भूख और बीमारी से दम तोड़ते रहते है....अपने उनके बारे में जानने का प्रयास किया है....यही बड़ी बात है ....मुझे मेरा राजू याद आ गया जिसने झारखंड में बीमारी से दम तोड़ किया कुछ दिन पहले.....उसने मेरे घर में काफी दिन काम किया था....

शैलेश भारतवासी said...

सच है भाई।

ajit said...

sambedan hin samaj ke jis vidrup chehra ko benakab karne ki jo kosis aapne ki hai wah kabil e tarif hai.eske saath samaj ko sambedansil banane ke prayas ki baat aati to aur behtar hotin.Aapki is kriti ke liye aapko badhai,logon ko sambedanshil bananewali aapki aane wali rachna ke liye shubhkamna

Hima Agarwal said...

एक संवेदनशीन व्‍यक्ति ही पगली की पीड़ा समझ सकता है।

Udan Tashtari said...

हृदयस्पर्शी कहानी.

रंजन राजन said...

अच्छी सत्यकथा। सचमुच जो औरत एक अनजाने बच्चे के लिए दहाड़े मारकर इस तरह विलाप कर रही है, वो पागल नहीं हो सकती. पागल ये समाज है, जो उसे पगली पगली कहकर अपमानित करता है.

parul said...

apki trha har koi apne veechaar kar le to kafi sudhar ho sakta h desh mein.apki pagli ke bare mein jaan kar kafi dhukh hua.

dharmender said...

this is the truth of life. we can feel it but maneys are sufferin it.
-Dharmender

Anonymous said...

भाईजान पगली को दो दिन हो गए।

SHEHZAD AHMED said...

आदरणीय सर, आपकी पगली कहानी पढ़ी जो समाज उस सच्चाई को सामने लेन की कोशिश करती है। जिसे हम अपने इर्द गिर्द होने के बाद भी भुलाने की कोशिश करती है। हमे ख़ुद को बदलना होगा। तभी समाज से ऐसे पगली दूर हो सकती है।

Unknown said...

आदरणीय सर, आपकी पगली कहानी पढ़ी जो समाज उस सच्चाई को सामने लेन की कोशिश करती है। जिसे हम अपने इर्द गिर्द होने के बाद भी भुलाने की कोशिश करती है। हमे ख़ुद को बदलना होगा। तभी समाज से ऐसे पगली दूर हो सकती है।