Tuesday, October 21, 2008

देश को तोड़ डालेंगे ये काले अंग्रेज

इन राजनेताओं ने ऋषियों मुनियों की इस भारत भूमि को क्या बना दिया है ? कौन सा आदर्श ये आने वाली पीढी के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ? कोई मराठियों की बात कर रहा है, कोई गुजरात प्राइड की बात करता है। कोई दलितों की राजनीति कर रहा है, कोई मुसलमानों की तो कोई हिन्दुओं की. कोई भाषा को तूल देता नजर आ रहा है तो कई क्षेत्रों से अलग राज्य की मांग उठती दिखाई देती है. इस गंदी राजनीति ने लोगों को धर्म, जाति, भाषा, प्रान्त और वर्ग के आधार पर बांटकर रख दिया है. आज के इन नेताओं को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि वोटों की फसल काटने और येन केन प्रकारेण सत्ता को हथियाने के लिए उन्होंने नफरत के बीज बोने के अलावा क्या किया है. बांटो और राज करो की नीति पर चलते हुए अंग्रेजों ने बरसों तक भारतवासियों पर शासन किया. वे चले गए तो ये काले अंग्रेज आ गए. आम आदमी तब भी पिसता था. आज भी पिस रहा है. हकीकत तो यह है कि इन्होने अंग्रेजों से दो कदम आगे जाकर दिलों और समाजों को बाँट दिया है और अब प्रांतवाद, भाषावाद जैसे खतरनाक नारे देकर देश को बाँटने का गहरा षडयंत्र रच रहे हैं.

कितने अफ़सोस की बात है कि समाज और देश को बाँटने की साजिश रचने वाले ये मुट्ठी भर लोग कानून और संविधान से खिलवाड़ करते हुए सरेआम तोड़ फोड़ करते हैं। मासूम और बेक़सूर लोगों को पीटते हैं. उनका खून बहाते हैं. ये व्यवहार ऐसे लोगों के साथ भी हो रहा है, जो अभावग्रस्त जीवन जीने को अभिशप्त कर दिए गए हैं. जो दो जून की रोटी की तलाश में यहाँ वहां भटक रहे हैं. वे कोई अपराधी नहीं हैं. वे नक्सलवाद भी नहीं फैला रहे हैं, वे आतंकवाद में भी विश्वास नहीं करते. वे इन अमीरजादों की धन दौलत छीनने के लिए लूटपाट का रास्ता भी नहीं अपना रहे। ये मेहनतकश इन्सान देश के कानून और संविधान में पूरी आस्था रखते हुए काम चाहते हैं, ताकि अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें. देश की तरक्की में अपना अमूल्य योगदान दे सकें. आजादी के साठ साल बाद भी अगर इस कदर असमानता, गरीबी और भुखमरी है तो इसके लिए इस देश के नीति नियंता और शासक जिम्मेदार हैं न कि ये लोग, जिन्हें राज ठाकरे जैसे लोग सड़कों पर पिटवा कर वोटों की बेहद गंदी राजनीति करने पर आमादा हैं.

इनकी गंदी राजनीति के शिकार कौन बन रहे हैं ? गरीब, आटो चालक, बस-ट्रक ड्राईवर, मेहनत मजदूरी करने वाले वंचित तबके के लोग। उन्हें लाठियों से पीटा जाता है। उनके ऑटो तोडे जाते हैं. टेक्सियाँ फूंक दी जाती हैं. जिन बसों-ट्रकों को वे चलाते हैं, उन्हें आग के हवाले कर दिया जाता है. उनकी ठेलियां लूट ली जाती हैं. गुंडे लाठियाँ और हथियार लेकर सड़कों पर उतर पड़ते हैं। पुलिस, प्रशासन, सरकार-सब मूकदर्शक की भूमिका निभाते नजर आते हैं. आखिर इस देश की व्यवस्था को ये क्या हो गया है ? जिन पर कानून व्यवस्था लागू करने की जिम्मेदारी है, वे हाथ पर हाथ रख कर क्यों बैठे हैं ?

आम आदमी को आख़िर कितना दबाया जाएगा ? और कितने जुल्म उस पर किए जाएँगे ? कब तक वह ये गुंडागर्दी बर्दाश्त करेगा ? क्या मजबूर होकर वह नक्सली और आतंकवादी नहीं बनेगा ? क्या वह हथियार उठाने को बाध्य नहीं होगा ? आख़िर उसे इन्साफ कौन देगा ? अगर किन्हीं लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक जमीन बचाने के लिए राज ठाकरे जैसे सिरफिरों की गिरफ्तारी का नाटक किया भी जाता है तो उसकी जमानत का बंदोबस्त पहले कर लिया जाता है. इस तरह के मिले जुले ड्रामे देख कर इस देश का आम आदमी बस मन मसोसकर रह जाता है। जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्वा न्योछावर कर दिया, उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अंग्रेजों के जाने के बाद इसकी बागडोर संभालने वाले इतने गिरे हुए जमीर के लोग होंगे, जो अपनी क्षुद्र राजनीति को चमकाने के लिए समाज के सबसे निर्बल व्यक्ति को कुचलने का दुष्चक्र रचेंगे।

यह देश के जन जन के चेत जाने का वक्त है. गोरे अंग्रेजों ने तो इस देश के दो ही टुकड़े किए थे. ये आज के नेता पता नहीं कितने टुकड़े करेंगे. आम आदमी के पास कोई और ताकत हो या नहीं, उसके पास वोट की ताकत तो है. ठान लीजिए कि देश और समाज के साथ दिलों के टुकड़े करने और भाषा, प्रान्त, नस्ल के आधार पर लोगों को आपस में लड़ने वालों को किसी भी सूरत में संसद और विधानसभाओं तक नहीं पहुँचने देना है. भगा दो इन काले अंग्रेजों को, नहीं तो ये सत्ता पाने और अपनी तिजोरियां भरने के लिए इसी तरह आम आदमी को मरवाते रहेंगे। और तोड़ डालेंगे इस देश को.

ओमकार चौधरी


15 comments:

सचिन मिश्रा said...

kabhi ye bhi khud hi tut jayegein.

Anonymous said...

आम आदमी ही तो सताया जाता है हर जगह। कभी आपने खास को पिसते देखा है। क्‍या ये संभव है कि बिना राज्‍य सरकार की मूक सहमति के राज का राज चल जाए।

Anonymous said...

ye na thi hamari kismat visale yaar hota...
respected sir Bhagat Sigh ki baat lagbhag sach ho rahi hain aur desh fir bantware ke kagar par hain. Ab ki baar Bharat chhaute-2 hissaon main bantega........

मुंहफट said...

ठीकै कहिन चौधरी साब,
डीएलए क्यों छोड़ दई. हरिभूमि में क्या ह्वै रह्यो है. अच्छौ लिखौ है. बधाई.

MANVINDER BHIMBER said...

कितने अफ़सोस की बात है कि समाज और देश को बाँटने की साजिश रचने वाले ये मुट्ठी भर लोग कानून और संविधान से खिलवाड़ करते हुए सरेआम तोड़ फोड़ करते हैं। मासूम और बेक़सूर लोगों को पीटते हैं. उनका खून बहाते हैं. ये व्यवहार ऐसे लोगों के साथ भी हो रहा है, जो अभावग्रस्त जीवन जीने को अभिशप्त कर दिए गए हैं. जो दो जून की रोटी की तलाश में यहाँ वहां भटक रहे हैं
बहुत अच्छा और सच्चा लिखा है ......हर आदमी अपने हित की सोच रहा है.....देश की चिंता ही किसे है....जो सोचते हैं उनकी कही सुनवाई नही है ......
फ़िर भी .......अच्छी पोस्ट के लिए बधाई

Smart Indian said...

बिल्कुल सच कहा है आपने. यह समय है जब इन देशद्रोहियों को क़ानून की गिरफ्त में होना चाहिए.

Anonymous said...

यह पूरा प्रकरण यह सिद्ध करता है कि हमारे नेतागण अपनी सत्ता-लिप्सा में कुर्सी से आगे सोंच नहीं पाते हैं फिर वे इतिहास की त्रासदियों से भला क्या सबक सीखेंगे ?

parul said...

राजनीति करने का तरीका तो गन्दा हो ही चुका हैं लेकिन यह लेख उन राजनेतायो तक भी पहुचना चाहिए , एक दम सही कहा सर आपने,

Vivek Gupta said...

बहुत सुन्दर।

Arvind Aditya said...

बिल्कुल यकीन नहीं होता कि आज के समय में जब पूरी दुनिया वैश्वीकरण के चलते सिमट रही है वहीँ ये कुछ नामुराद किस्म के लोग इतनी नीचता भारी बातें करते हैं . मुझे ये समझ में नही आता कि मुंबई के गुंडों के संगठन के आगे महाराष्ट्र सरकार इतनी बेबस कैसे हो गई.यह सारा वाकया अस्वीकार्य है .ये लोग पहचान को मुद्दा बनते है जो कि अपने आप में बेमानी है .भाषा क्षेत्रीयता ,जाति ये सारी बातें संकीर्ण ही बनाती हैं. आपका कहना बिल्कुल सही है ,आम लोगों के अलावा कोई कुछ नहीं कर सकता ,इन घटिया लोगों को वोट न देकर इनकी अक्ल ठिकाने लगानी ही पड़ेगी.

जगदीश त्रिपाठी said...

भाई साहब
ज्वलंत मुद्दों पर जब आप लिखेंगे तो जाहिर है कि आप का लेख इतना विचारोत्तेजक होगा कि झकझोर कर रख देगा। इसके लिए आपको धन्यवाद। बाकी दोनों ब्लाग पर भी कुछ डालिए। नई पारी के लिए बधाई। मैं दैनिक जागरण की पांच साल लंबी पारी खेल कर फिलहाल दैनिक भास्कर चंडीगढ़ में बतौर चीफ सब एडीटर बारह अगस्त से क्रीज पर हूं। खुशकिस्मती रही कि अचानक घूमते-घूमते आपके ब्लाग तक पहुंच गया। बाकी बातें आपकी बाकी पोस्ट पढ़ने के बाद।
किसी को कहीं भी जाकर खून-पसीने से रोजी-रोटी हासिल करने का अधिकार है। क्योंकि सारा भारत अपना है। लेकिन सारा भारत अपना है तो हम जहां गए हैं। उसे भी अपना समझें। अगर हम वहां जय बिहार बोलेंगे। बात बात पर अपनी शक्ति जताने के लिए दावा करेंगे कि मुंबई में पचास लाख से ज्यादा उत्तर भारतीय हैं तो वहां के स्थानीय निवासियों में असुरक्षा बोध पनपेगा ही। और राज ठाकरे जैसे लोग उसका अपने निहित स्वार्थ के लिए उस असुरक्षा बोध को आक्रामकता में परिवर्तित कर देंगे। हरियाणा में कुछ दिन पहले कुलदीप विश्नोई भी हरियाणा से बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को खदेड़ने का एलान कर चुके हैं। सो हमें भी सतर्क रहना चाहिए। कहीं भी रहें अपने आचरण से वहां के लोगों को अपना बना कर रखें।आज के नेता तो अलगाव के सहारे अपनी राजनीति को परवान चढ़ाने की होड़ लगाए बैठे हैं।

Anonymous said...

Ekdum sahi bat hai ki dhram, jati, chetr aadi par logon ko banta ja raha hai. Aur iska shikar mehnat-mazdoori karke do roti jutane wala garib tabqa sabse jyada hota hai. Is tabqe ke samne rasta kya hai? Jahira taur par sansdiy rajneeti sad chuki hai aur gandhivadi tarike se kuch milne wala nahin hai. Kya is raste ki talash hum sabko bhi nahin hai?
"Kale angrezo" shabd ka istemal Bhagat Singh ne deshi poonjipatiyon ke liye kiya tha. Mujhe lagta hai bhavishy ki ladai poonjivad ke khatme ki honi chahiye.

Anonymous said...

aapne bahut accha liha hai hai.padhkar dil khush ho gaya.
agar samay mile to hamare blog par bhi dastkat de.
aapke bichar mere liye sahayak honge.

Anonymous said...

aapne bahut accha liha hai hai.padhkar dil khush ho gaya.
agar samay mile to hamare blog par bhi dastkat de.
aapke bichar mere liye sahayak honge.

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

उत्तर भारतीय छात्रों को मनसे के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से दौड़ा-दौड़ा कर पीटा है, उसे देखकर लगता है कि जैसे उत्तर भारत के लोगों के लिए महाराष्ट्र युगाण्डा है, जहां के तानाशाह इदी अमीन ने भारतीयों के साथ इसी तरह का सलूक किया था, जैसा कि राज ठाकरे कर रहे हैं। इदी अमीन का तर्क भी यही था कि भारतीय मूल के लोगों ने स्थानीय लोगों के रोजगार पर कब्जा कर लिया है। इदी अमीन तो एक देश का तानाशाह था। एक तानाशाह के कुकृत्यों को नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन राज ठाकरे एक जनतान्त्रिक देश में ही ईदी अमीन बनने की कोशिश कर रहे हैं।