इस ख़बर ने क्रिकेट प्रेमियों को एक बार फ़िर आशंकाओं से ग्रस्त कर दिया है कि चयनकर्ताओं और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के बीच तनातनी शुरू हो गई है. कप्तान की पसंद को दरकिनार करने के सवाल पर भारतीय क्रिकेट में पहले भी बवाल हो चुके हैं. चयन समिति के सदस्य हमेशा से अपनी पसंद कप्तानों पर थोपने की कोशिश करते रहे हैं. इसके नतीजे न अतीत में अच्छे निकले और न अब निकलेंगे. सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर और अनिल कुंबले जैसे महान क्रिकेटरों से लेकर सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, अजहरुद्दीन और कृष्णामचारी श्रीकांत जैसे धुरंधर खिलाड़ियों तक को कप्तानी के समय चयनकर्ताओं की मनमानी का शिकार होना पड़ा. इनमे से अधिकांश को बे-आबरू होकर पहले कप्तानी से और अंतत : टीम से ही रुखसत होना पड़ा. कप्तान और चयनकर्ताओं के टकराव के नतीजे देश लंबे समय तक भुगतता रहा. चयनकर्ताओं ने अपने क्षेत्रों के खिलाड़ियों को टीम में लेने के लिए कभी मोहिन्द्र अमरनाथ जैसे बेहतरीन हरफनमौला को टीम से ड्राप किया तो हाल के दौर में सौरव गांगुली जैसा शानदार खिलाडी इस गंदी राजनीति का शिकार हुआ.
जब भी नए कप्तान आए, टीम ने अच्छे रिजल्ट दिए. एक-दो सीरीज के बाद ही कप्तान पर चयनकर्ता अपनी पसंद के खिलाडी को टीम में लेने के लिए दबाव बनाना शुरू कर देते हैं. इसी कारण कभी अमरनाथ तो कभी गांगुली जैसे बेहतरीन खिलाडी बाहर बैठाए जाते रहे. यह अलग बात है कि इन दोनों ने ही टीम में शानदार वापसी करके चयनकर्ताओं की बोलती बंद कर दी. अब धोनी जैसे खिलाडी के साथ भी अगर चयनकर्ता ठीक उसी तरह की हिमाकत कर रहे हैं तो जान लीजिए कि टीम इंडिया के फ़िर से बुरे दिन लौटने वाले हैं.जब से धोनी के नेतृत्व में टीम ने सीरीज दर सीरीज जीतने का सिलसिला शुरू किया है, तब से विश्व की सभी धुरंधर समझी जाने वाली टीमों को पसीना आया हुआ है. दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, इंग्लेंड, वेस्ट इंडीज, श्रीलंका और बंगलादेश से लेकर विश्व चैम्पियन कंगारुओं तक को उनकी टीम हार का मज़ा चखा चुकी है.
अच्छा तो यही होगा कि धोनी की टीम को खेलने दिया जाए. धोनी को वही खिलाडी दिए जाएँ, जो वे चाहें. अगर ऐसा नहीं हुआ तो टीम उसी गर्त में जा पहुंचेगी, जहाँ से बड़ी मुश्किल से निकली है.धोनी पूरे मन से खेल रहे हैं. रननीति से लेकर टीम के चयन तक में लगभग सभी टीमें और कप्तान धोनी का लोहा मानते हैं. उन्होंने अपने खिलाड़ियों का जितना अच्छा इस्तेमाल किया है, उसकी कट किसी टीम के पास दिखायी नहीं दे रही. अगर धोनी पर इसी तरह का दबाव बनाया जाता रहा तो बाकी कप्तानों की तरह वे भी कंधे ढीले छोड़ देंगे. उनकी टीम में भी राजनीति शुरू हो जाएगी. वहां भी युवराज और सहवाग जैसे खिलाडी नैसर्गिक खेल खेलना बंद कर देंगे और फ़िर इस टीम को गर्त में जाने से कोई नहीं रोक पाएगा. इसलिए अच्छा होगा, यदि चयनकर्ता अपने क्षेत्रों की चिंता करने के बजे देश की चिंता करें.
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
छब्बीस जुलाई को देश ने कारगिल जंग का दसवां विजय दिवस मनाया. 15 मई 1999 में शुरू हुई लड़ाई 26 जुलाई को खत्म हुई थी। इसमें भारत के 533 जवान शह...
-
इस बार का रक्षा बंधन हमारे परिवार के लिए अजीब सी खामोशी लेकर आया। सब चुप-चुप से थे। हमें पिछला रक्षाबंधन याद आ रहा था। पिछले साल जब मैं सोकर...
-
बड़ी दीवाली पर हर साल परिवार के साथ गाँव जाना होता है. इस बार भी गया. मेरा गाँव दबथुवा मेरठ जिले में सरधना मार्ग पर है. एक किसान परिवार में ...
4 comments:
बिलकुल ओमकार जी, अगर चयनकर्ताओं की मन मानी जारी रही तो निश्चित रूप से भारतीय क्रिकेट के बुरे दिन आने वाले हैं.
चयन कर्ताआें ने हाकी को खत्म कर दिया। ले देकर क्रिकेट बचा है। देखना है कब तक यह बचा रहता है
मैं तो कहूगा "धोनी प्लीज कप्तानी करॊ.. selection में टांग मत अडाओ"..
चयन कमेटी यदि है तो उसे काम करने देना चाहिए। चयन कमेटी कप्तान की राय लेती है लेकिन एक व्यक्ति की राय पर पूरी कमेटी विचार करती है। अगर कोई राय न मानी जाए तो उसपर कप्तान को खेल भावना दिखानी चाहिए।
ओमकार जी, आप भी एक टीम के कप्तान हैं। इससे पहले भी कई टीमों के कप्तान रह चुके हैं। क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप जिस हाउस में गए हों उस घर के सारे बदल डाले हों?
Post a Comment