मुंबई पर हमले के बाद से एक बार फ़िर इस पर चर्चा तेज हो गई है कि सरकार आतंकवाद रोकने में नाकाम क्यों साबित हो रही है. भारतीय सेना में महत्वपूर्ण पदों पर रहे लेफ्टिनेंट जनरल ओ पी कौशिक से हाल में मैंने आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की. उनकी मानें तो न देश के राजनेता इस पर गंभीर हैं, न न्याय व्यवस्था, न नौकर शाही और न ही पुलिस. उन्होंने जो कुछ कहा, उसे यहाँ लेखों के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ. - ओमकार चौधरी
लेफ्टि. जन. ओ. पी. कौशिक (रि.)
वर्ष 1954 में चीन की मदद से मलाया-पेन्नसुला में आंतकवाद शुरू हुआ। ब्रिटिश सरकार ने जनरल टेंपलर को मलाया का सिविल और मिल्रिटी प्रमुख बनाकर भेजा और सीधे शब्दों में कहा कि यू विल फिनिश टेरेरिजम फ्राम मलाया-पेन्नसुला एट आल कास्ट। जनरल टेंपलर ने मलाया से आंतकवाद को बिल्कुल खत्म कर दिया और आज वो एक विकसित और प्रगतिशील देश है। हमारे यहां सेना को कोई डायरेक्शन ही नहीं है।
कश्मीर में उग्रवाद शुरू हुआ था, नौ दिसम्बर 1989 में, जब रूबैया सईद पकड़ी गई थी। मुफ्ती सईद की बेटी। मैं उन दिनों आईजी आपरेशन था ब्लैक कैट कमांडो का। जैसे ही रूबैया के अपहरण की सूचना मिली, वैसे ही हम हवाई जहाज से श्रीनगर पहुंच गए। दो घंटे के भीतर पता लगा लिया कि उन्होंने रूबैया को कहां रखा है। उस स्थान को घेरकर मैं तुरंत फ्लाइट से दिल्ली आया। यहां हमारी क्रोइसिस मैनेजमेंट कमेटी की मीटिंग थी। मैंने सबको ब्रीफ किया। उनमें टीएन सेशन भी थे जो कि उन दिनों कैबिनेट सेकेट्री होते थे। उन्होंने होम मिनिस्टर मुफ्ती मोहम्मद सईद को बुला लिया। उन्होंने पूछा कि जनरल कौशिक कौन है? मैंने कहा, मैं हूँ। उन्होंने कहा कि जनरल कौशिक आप एकदम बाहर जाइए और अपने कमांडोज को उस बंगले से हटने का निर्देश दे दें। मैंने उनसे कहा कि एक मिनट मेरी बात तो सुन लीजिए। कहने लगे कि नहीं.नहीं.आप तुरंत जाइए ओर रेडियो पर मैसेज दें कि कमांडो वहां से हट जाएं। मैंने उनसे कहा कि मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि रूबैया को कुछ नहीं होगा। मैं तो आपसे निर्देश चाहता हूं। पांच मिनट में हम रूबैया को उनसे छुड़वा लेंगे। कहने लगे कि नहीं.नहीं.मैं आपसे ज्यादा बात नहीं करूंगा। आप कमांडो को वहां से हटा लीजिए। हम बाहर गए। कमांडो को हटने के लिए कह दिया। आतंकवादियों ने रूबैया को छोड़ दिया। बदले में छह आतंकवादियों को छुड़वा लिया। वो छह लोग ही आज छह आंतकवादी संगठनों के मुखिया बन गए हैं।
19 साल हो गए उस घटना को। हजारों उग्रवादी सुरक्षाबलों ने पकड़ रखे हैं। जेलें भरी हुई हैं। एक भी उग्रवादी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं है। आखिर क्यों? मिल्रिटी वालों के खिलाफ झूठी शिकायतें हो रही हैं। 453 केस कोर्ट में रजिस्टर्ड हैं मानवाधिकार उल्लंघन के। ऐसे में क्या करेगी मिलेट्री? लगभग 1300 लोगों को सजा दी जा चुकी है। इससे क्या संदेश जाएगा। आज कशमीर में इतनी खराब हालत है कि यदि कोई आंतकवादी मिलिट्री वेन पर हमला करता है और उसके जवाब में कार्रवाही होती है। उसकी एके 47 रायफल बरामद करते हैं तो उस स्थिति में भी कोर्ट में केस होता है कि आर्मी ने किसी निर्दोष इंसान को मार दिया। आर्मी का अधिकारी कहता है कि मुङो गोली लगी है। मैंने एके 47 पकड़ी है। मैंने आंतकवादी को मारा है। वो कहते हैं कि गवाह पेश करो। अफसर कहता है कि मैं गवाह कहां से पेश करूं? अब जंगल में जो उग्रवादी को मार रहा है, वह गवाह कहां से आएगा ? इतना ही नहीं, आंतकवादी को बचाने के लिए गांव के ही दस लोग आगे आ जाते हैं। वो कहते हैं कि इसे तो हम जानते हैं। हमारे गांव का था। ये तो उग्रवादी नहीं था। कोर्ट केस का आर्मी पर इतना भारी दबाव है कि वह सोचता है कि उग्रवादी जा रहा है। इसे मारूं कि नहीं? कहीं कोर्ट केस न हो जाए। जाने ही दूं इसे। न तो कोर्ट एक्शन ले रही। न राजनेता एक्शन ले रहे। न नौकरशाह एक्शन ले रहे। सब मूकदर्शक बने हुए हैं।
बढ़ता राजनीतिक दबाव
आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि सेना और सुरक्षाबलों पर दबाव किस कदर बढ़ रहा है। एस.सी. जमीर नागालैंड के मुख्यमंत्री थे, जो अब महाराष्ट्र के गवर्नर हैं। हमने एक स्थान पर छापा मारा। हमारे चार सैनिक मारे गए। हमने उस कार्रवाई में भूमिगत तत्वों का एक बहुत महत्वपूर्ण आतंकवादी पकड़ लिया। उसे दीमापुर सेक्टर जेल में रख लिया। एस सी जमीर ने अपने पुलिस डीजी चमनलाल को कहा कि इसे छोड़ दो। चमनलाल बहुत अच्छा पुलिस अफसर था। वह इस समय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। उन्होंने मुङो फोन किया कि जनरल साहब मुङो आदेश मिले हैं कि इस आतंकवादी को छोड़ दो। मुङो आदेश मानने पडेंगे क्योंकि मैं इनका डीजी हूं। आप कुछ कर सकते हो तो कर लो। मैंने एकदम से एस सी जमीर को टेलीफोन किया कि इसे पकड़ने में हमारे चार आदमियों की जानें गई हैं। आपने छोड़ने के आदेश दे दिए हैं। कहने लगे कि जनरल साहब क्या फर्क पड़ता है। मेरे ऊपर एक और उग्रवादी का प्रेशर है। मैंने कहा कि इसे छोड़ दिया तो सेना के मनोबल पर बुरा असर पड़ेगा। बोले कि नहीं.नहीं छोड़ देते हैं। वे मेरी बात ही नहीं माने। मैंने उनसे कहा कि अच्छा 24 घंटे तक उसे मत छोड़िए। मेरा मकसद ये था कि दीमापुर सेक्टर जेल को हम घेर लेंगे। जैसे ही वह छोड़ा जाएगा, फिर पकड़ लेंगे और पुलिस को नहीं सौंपेंगे। या इस बीच केन्द्र सरकार से दबाव डलवा देंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि ठीक है, 24 घंटे नहीं छोडूंगा। जैसे ही मैंने फोन रखा, उन्होंने उसी समय डीजी को फोन किया कि आप तुरंत उसे छोड़ दो। तो मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या ये अकेले सेना की समस्या है? क्या राजनेताओं की समस्या नहीं है? उसे छोड़ दिया गया। सेना ने बहुत कड़ा स्टेप लिया। मैंने उनसे कह दिया कि मैं नागालैंड से पूरी तरह सेना वापस कर रहा हूं। मैंने सेना को बैरकों में वापस जाने को कह दिया। एस सी जमीर ने प्रधानमंत्री से बात की कि सेना ने आपरेशन बंद कर दिए हैं। आर्मी चीफ ने मुझसे पूछा कि ये क्या हुआ? मैंने उन्हें वस्तुस्थिति बताई। वे बोले कि ये तो तुमने मुङो बताया नहीं? मैंने उन्हें विस्तार से पूरी बात बता दी। वे खुद आश्चर्यचकित रह गए।
अदालतों से इंसाफ नहीं
एक और उदाहरण देना चाहूंगा। एक एम्बुश में हमारे 26 आदमी मर गए थे। हमारे काफी हथियार भी ले गए थे वो। ये वाकिया मणिपुर में हुआ था, इम्फाल में। सीतापुर से वापस आ रहे थे। हमें बताया गया कि मिलिटेंट जो हथियार ले गए हैं, उनमें से तेरह हथियार एक केबिनेट मिनिस्टर के घर में रखे हैं। हमने रात को छापा मारा और सभी हथियार बरामद कर लिये। गोवाहाटी हाईकोर्ट का एक बैंच है इम्फाल में। हाईकोर्ट में केस हो गया। सैन्य अधिकारियों से कहा गया कि तुमने कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले रखी है.मिनिस्टर के घर पर तुम छापा मारते हो? सैन्य अफसर ने कहा कि देखिए, ये डिस्टर्ब एरिया है और डिस्टर्ब एरिया में हमें अधिकार है कि जहां हमें शक है, वहां सर्च कर सकते हैं। अगर कहीं हथियार-गोला बारूद है, उसे नष्ट कर सकते हैं और शक होने पर बिना वारंट के किसी को गिरफ्तार कर सकते हैं। यह सब हमने आर्म फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट के तहत किया है। इस एक्ट में यह विशेषाधिकार भी है कि अगर आर्मी ने कोई गलती कर दी है तो उसके खिलाफ तब तक कोई केस दर्ज नहीं हो सकता, जब तक केन्द्र सरकार इजाजत नहीं दे दे। यह सब बताने के बावजूद जज कहता है कि नहीं, हथियार वापस करो। हमारे अफसर ने कहा कि ये हमारी प्रोपर्टी है, कैसे वापस करें? जज ने धमकाया कि हथियार वापस करो, नहीं तो आपको जेल भेजूंगा। अफसर ने कहा कि ये आटोमैटिक हथियार हैं। इन्हें कोई सिविलियन नहीं रख सकता। जज ने कहा कि मैं कुछ सुनने को ही तैयार नहीं हूं। हमारे अफसर ने कहा कि ठीक है, मैं अपने आफिसर से परमीशन ले लेता हूं। आप कल तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दीजिए। मामला मेरे सामने आया। मैंने कह दिया कि हथियार वापस नहीं किए जाएंगे। अगले दिन मेजर ने कोर्ट में जज को साफ कह दिया कि मुङो हथियार नहीं सौंपने के निर्देश हुए हैं और यह भी कि जो भी राष्ट्र विरोधी हैं, उन्हें बख्शेंगे नहीं। जज ने कहा कि आप मुङो धमकी दे रहे हैं? मेजर ने कहा कि हम देश-द्रोहियों को नहीं छोडेंगे। जज साहब वहां से उठे और रातों-रात गोवाहाटी पहुंच गए कि आर्मी तो मुङो भी मारेगी।
हरेक जिम्मेदारी समङो
अहम सवाल यही है कि क्या न्याय प्रणाली सेना के साथ है? जम्मू-कश्मीर में कोर्ट आर्मी के लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए जा रही है। क्या ये आर्मी को डराने की कोशिश नहीं है? कुपवाड़ा जिले की घटना है। मिस्टर जरगर वहां डीसी थे। हमारे हाथ एक दस्तावेज लगा, जिससे पता चला कि डीसी 120 आंतकवादियों को तन्ख्वाह दे रहा है। मैं जीओसी था। हमने जरगर को बुलाया। पूछा कि ये क्या बात है भई? उसने स्वीकार किया कि हां, देता हूं। हमें तो यहां रहना है। आखिर यह सब क्या हो रहा है? किसी जिले में उग्रवाद क्यों और कैसे फैलता है, इससे साफ है। तो साफ हो गया कि नौकरशाही भी सेना के साथ नहीं है। राजनेता केवल हल्ला-गुल्ला करते हैं। सेना के अधिकारी का ये ध्येय होता है कि जिस इलाके की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई है, वह उससे आतंकवादियों को उखाड़ फैंके। इसी कारण आप सुनते हैं कि मेजर मर गया, कैप्टन मर गया, लेफ्टिनेंट कर्नल मर गया। वे अपनी कुर्बानी दे रहे हैं ताकि उस क्षेत्र में शांति बनी रहे। दूसरी तरफ जिला प्रशासन उग्रवादियों की मदद कर रहे हैं। वे क्यों नहीं ये शपथ लेते कि भले ही जान चली जाए लेकिन वे अपने जिले में उग्रवाद को नहीं पनपने देंगे। राजनेताओं को कोई मतलब नहीं। न्याय व्यवस्था को कोई मतलब नहीं। नौकरशाही को कोई मतलब नहीं। पुलिस का हाल भी देख रहे हैं। उग्रवाद की समस्या का हल कैसे निकल सकता है? हर इकाई की जिम्मेदारी है कि वह हर हाल में ईमानदारी से काम करे। हर एक की जवाबदेही तय होनी चाहिए। अगर सब इकाई अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती हैं तो उग्रवाद नहीं रुक सकता। ( जारी है.. )
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4 comments:
अोमकार भाईं।
बहुत बढिया लेख। जिन्हें हम नेतृत्व अपनी सुरक्षा की जिम्मदारी सौंपे है, उनका कच्चा चिट्ठा खोलता लेखा बधाई।
sir sarkaar yadi sacheet sahi tarike se nahi hui to asa hi hoga
देश और समाज में खुशहाली रहे .....लोग सुरक्षित महसूस करे.......इस के लिए सभी एजेंसिओं की पहले से निर्धारित है......उसका सही प्रकार से निर्वाह हो तो आतंकवाद से निपटा जा सकता है.....अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
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