Thursday, February 5, 2009

मुलायम को महंगे पड़ेंगे कल्याण

उत्तर प्रदेश की सियासी जंग तेज हो गई है। मुलायम सिंह यादव ने जब से कल्याण सिंह को साथ लिया है, कांग्रेस उखड़ी-उखड़ी नजर आ रही है। उसके उखड़ने की कुछ और वजहें भी हैं। सुनील दत्त के अभिनेता पुत्र संजय दत्त को अमर सिंह ने सपा से जोड़ा और लखनऊ से लड़ाने का एेलान किया तो कांग्रेस नेताओं के माथे पर बल पड़ गए। यूपी में लोकसभा सीटों के तालमेल को लेकर कांग्रेस, खासकर राहुल गांधी ने जिस तरह की उदासीनता और हठधर्मिता दिखाई, उससे मुलायम को झटका लगा, लेकिन अमर सिंह ने एक के बाद एक जो गुगली फैंकी, उससे कांग्रेस नेता तिलमिला गए हैं। अब वे एेलान कर रहे हैं कि जिन कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते बाबरी विध्वंस हुआ, उनके सपा में रहते हुए कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि वह गठबंधन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाए कि नहीं। यह कहते हुए कांग्रेस भूल जाती है कि जब बाबरी ढांचे को गिराया गया, तब केन्द्र में पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस की ही सरकार थी। वे भी हाथ पर हाथ रखे बाबरी विध्वंस को देखते रहे। इस घटना के बाद से ही मुसलमानों का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और पार्टी उत्तर प्रदेश में सिकुड़ती चली गई। अब कल्याण सिंह को मोहरा बनाकर कांग्रेस मुलायम पर निशाना साध रही है ताकि मुसलिम सपा से कटकर फिर उसका दामन थाम लें।
यह सही है कि 1992 में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और अन्य हिन्दूवादी संगठनों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। कल्याण सिंह सहित भाजपा की तीन राज्य सरकारों को तब बर्खास्त कर दिया गया था। कल्याण सिंह को इसी कारण एक दिन की जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी। कांग्रेस कल्याण सिंह को मुसलिम विरोधी बताकर सपा को घेरने की कोशिश कर रही है। इस बीच कल्याण के उस दौर के उग्र भाषणों की सीडी ढूंढ-ढूंढकर निकाली जा रही हैं, जिनमें उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला था। उन भाषणों के अंश टेलीविजन चैनलों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती का मनोरथ भी पूरा हो रहा है। यूपी के प्रभारी महासचिव दिग्विजय सिंह सहित कुछ कांग्रेस नेताओं के इधर आए बयानों से साफ होने लगा है कि कल्याण सिंह की सपा से नजदीकियों के चलते कांग्रेस अब गठबंधन नहीं करना चाहती। राजस्थान और दिल्ली में वापसी के बाद से वैसे भी कांग्रेस के भीतर कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास अनुभव किया जा रहा है। कांग्रेस अब भी यूपी में खुद को चुका हुआ मानने को तैयार नहीं है, जबकि सपा उसके लिए ज्यादा सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है। इसलिए माना जा रहा है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन सिरे नहीं चढ़ेगा।
सभी जानते हैं कि कांग्रेस अब उत्तर प्रदेश में बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं रह गई है। पिछले कुछ चुनावों के परिणाम यही बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी यूपी में निर्णायक ताकत बनकर उभरी हैं। कांग्रेस इसे जातीय व धार्मिक राजनीति का परिणाम बताकर अतीत में हुई गंभीर किस्म की गलतियों पर परदा डालने की कोशिश करती रही है, जबकि भाजपा को लगता है कि मायावती को तीन बार समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवाना उसकी बड़ी राजनीतिक चूक रही है। बदले हुए हालातों में बसपा को रोकने के लिए शेष राजनीतिक दल गठबंधन अथवा सीटों के तालमेल की कवायद में लगे हैं।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कल्याण सिंह के बेटे को समाजवादी पार्टी में शामिल कर और खुद कल्याण सिंह को दोस्त बताकर मुलायम सिंह फंस गए हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एेसा करके उन्होंने मुसलमानों को नाराज कर लिया है। उनकी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क और आजम खां ने भी मुलायम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुलायम को सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने बाबरी विध्वंस मामले में कल्याण सिंह को क्चलीन चिट नहीं दी है। न ही वे सपा में शामिल हुए हैं। कल्याण सिंह एेलान कर चुके हैं कि वे प्रदेश भर में घूमकर समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार करेंगे। जाहिर है, एेसा कर वे अकेले भाजपा को ही चोट नहीं पहुंचाएंगे, 1992 के बाद से सपा से साथ जुड़े रहे मुसलमानों को भी नाराज करेंगे। मुलायम को लगता है कि कल्याण सिंह के साथ जुड़ने से एटा, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फरूखाबाद और फिरोजाबाद क्षेत्र में सपा की हवा बनेगी। मुलायम मैनपुरी और उनके पुत्र अखिलेश फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने वाले हैं। खुद कल्याण सिंह एटा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे, जिन्हें समाजवादी पार्टी समर्थन देगी। इस क्षेत्र में यादव के अलावा लोध, शाक्य और अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कल्याण सिंह को दोस्त बनाकर मुलायम सिंह ने बड़ा राजनीतिक खतरा मोल ले लिया है। उनसे मुसलिम मतदाता छिटककर मायावती की तरफ रुख कर सकते हैं। इसके अलावा नेता जी यह भी भूल रहे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह सर्वाधिक लोध मतादाताओं वाली सीट से नहीं जितवा पाए थे। अपनी राजनीतिक कलाबाजियों, बड़बोलेपन और अहंकारी स्वभाव के चलते खुद कल्याण सिंह की छवि भी खराब हो चुकी है। एेसे में मुलायम सिंह का यह राजनीतिक दांव उल्टा पड़ने की आशंका ज्यादा है।

ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

6 comments:

222222222222 said...

आपका आकलन सही है।

Hari Joshi said...

कल्‍याण सिंह महज लोधा वोटों का फायदा दिला सकते हैं और इसके बदले में मुलायम की टोपी को चाट भी सकते हैं। कांग्रेस की भले ही उत्‍तर प्रदेश से सियासी जमीन खिसक गई हो लेकिन राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।

निर्मल गुप्त said...

ओमकार भाई आपका बेबाक आकलन सही है .
कल्याण सिंह की राजनीति के मैदान में यह
ताजातरीन कलाबाजी एक चुके हुए नेता का
अन्तिम करतब ही साबित होगा.पुत्र के प्रति
अतिरिक्त मोह ने उन्हे ध्रितराष्ट्र बना दिया
है .सपा को कल्याण कितना लाभान्वित
कर पाते हैं ,यह तो वक्त ही बता पायगा .
समाजवादी सोच का यह कल्याणकारी
चेहरा लोकतान्त्रिक विद्रूप का बढ़िया
नमूना है ......निर्मल

विष्णु बैरागी said...

कल्‍याण सिंह और उनके बेटे को हारना ही चाहिए। इसलिए नहीं कि वे भाजपाई या संघी हैं। इसलिए कि वे दलबदलू हैं। ऐसे लोग मतदाताओं के साथ रखैल जैसा व्‍यवहार करते हैं।

Anonymous said...

I agree with your straight forward political analysis.. it's quite difficult for mulayam singh to adjust kalyaan in there party right now. mulayam will not get that much benefits as much he has to pay for it..

Anonymous said...

कलयाण िवचारधारा नहीं एक वयिकत
----------------------
----------------------
नागपुर में भाजपा की राषटीय पिरषद की बैठक के बाद मुसिलम वोटरों के सामने िसथित सपषट हो चुकी है। कलयाण िसंह को लेकर हाय तौबा मचाने वाली कांगरेस और कुछ मुसिलम नेताओं की नींद भी खुल चुकी होगी। हवा में राजनीित कर वोट बटोंरने की राजनीित में शायद ही कलयाण िसंह िवरोिधयों को कोई सफलता िमले। हम कलयाण के पछ में कुछ नहीं बोल रहे है। कयोंिक कलयाण िसंह मुसमलानों के िले खतरा नहीं है। कलयाण िसंह एक वयिकत है जो राजनीितक अवसान के िनकट है। मुलायम िसंह से दोसती इस राजनीितक अवसान को बचाने के िलए है। फायदा शायद दोनों को हो। कलयाण िसंह के िवरोध करने वाले कांगरेसी नेता और कई और मुसिलम नेता तरकों के आधार पर लड़ाई नहीं लड़ रहे है। िसरफ बाबरी मसिजद को िगराने की बात कर कलयाण िसंह को दोषी ठहराना और सारे मुसिलम वोटरों को अपने तरफ िरझाना एक भरमजाल है। इससे शायद इस देश की मुसिलम जनता वािकफ है।
एक बार िफर भाजपा ने राम मंिदर का राग अलाप िदया है। नागपुर में भाजपा ने साफ कहा िक सता में आएंगे तो राम मंिदर बनेगा। अब बताए इस देश के मुसिलम मतदाता के िलए कलयाण िसंह खतरनाक है या भाजपा। इस देश से मुसलमान कई बातों को समझते है। पर शायद इस देश के नेता नहीं समझते है। यह सचचाई है िक मुसलमानों की लड़ाई एक िवचारधारा से है। इस देश में सिदयों से दो िवचारधारा के बीच संघरष होता रहा है। िजस िवचारधारा को लेकर आरएएस चलती रही है और उसका राजनीितक आपरेशन भाजपा कर रही है। इस देश के मुसलमान इस बात को समझते है िक खतरा कलयाण िसंह से नहीं खतरा भाजपा से है। भाजपा की कमान आरएसएस से है। आरएसएएस इस देश मे एक िवचारधारा लेकर चल रही है जो िहंदू राषट की वकालत करता है। िफर एेेसे मे एक िवचारधारा के िवरोध के बजाए मुसलमान कलयाण िसंह का िवरोध करेंगे शायद सबसे बड़ा झूठ होगा।
मुलायम िसंह से दोसती कल कलयाण िसंह ने भाजपा को कमजोर िकया है। मुसलमान इस बात को समझता है िक भाजपा को कमजरो कर कलयाण िसंह ने िहंदू िवचारधारा संबंिधत आरएसएस की िफलासफी को कमजोर िकया है। यह सही है िक कलयाण िसंह के सीएम रहते बाबरी मसिजद िगरायी गई। यह भी सचचाई है िक कलायण िसंह उस समय उस िवचारधारा के एक कठपुतली थे। वो कुछ नहीं कर सकते थे। इसके िलए सामूिहक फैसले िलए गए थे िजसमें डा.मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता भी शािमल थे जो िफलहाल मायावती के घटजोड़ से चुनाव जीत रहे है। इस सचचाई को मुसलमान समझते है। कलयाण िसंह ने काफी लंबे समय तक इस िवचारधारा से संबंध छोड़े रखा। एक बार पहले भी मुलायम िसंह के साथ थे और उस समय मुसलमानों ने मुलायम को वोट िदया। कुसुम राय मंतरी बनी राजवीर मंतरी बने।
कलयाण के िवरोध करने वाले देश के अंदर नए राजनीितक गठजोड़ का खयाल नहीं कर रह ेहै। अगर एक और मायावती ने सरव जन िहताय की बात कर कांगरेस को पूरे देश में चुुनौती दी है तो उसकी काट के रुप में देश में िपछड़ा राजनीित का सवरुप बनाया जा रहा है। इस सवरुप की शुरूआत यूपी से हो चुकी है। कलयाण और मुलायम के गठजोड़ के पीछे यह खेल है। इसका असर पूरे यूपी में है और इसकी जमीनी हकीकत कांगरेस को नहीं मालूम। पूरे परदेश में िपछड़ी राजनीित के सवरुप को हवा िदया गया है और इसे अनय दलों के साथ िमलकर दूसरे राजयों में भी देने की कोिशश की जाएगी।
समझ में नहीं आता िक कलयाण िसंह के िवरोध करने वाले पुराने राजनीितक गठबंधनों पर चुपी कयों साधते है। इस देश में िहंदू िवचारधारा की वकालत करने वाली भाजपा पहले भी सेकयूलर लोगों के साथ िमली रही। १९७७ में जब जनता पाटी की सरकार बनी तो सारे भाजपाई जनता पारटी में थे। जबिक १९८९ में इसी िहंदू िवचारधारा ने कमयुिनसटों के साथ िमलकर वीपी िसंह की सरकार बनायी। और तो और एक समय में मायावती के साथ भाजपा की सरकार बनी। इसी मायावती को बाद में मुसलमानों ने कई जगहों पर वोट िकया है। आज भी मुसलमानों का एक बड़ा वरग मायावती के साथ जा रहा है। जबिक उसे पता है िक यही मायावती गुजरात में नरेंदर मोदी का परचार कर चुकी है। नरेंदर मोदी से बड़ा मुसलमानों का दुशमन तो शायद ही इस देश में कोई हो।
इस देश में िकसी वयिकत के िखलाफ लड़ाई का कोई फायदा नहीं। लड़ाई िवचारधारा से होनी चािहए। कांगरेस ने यही गलती हमेशा की है। वयिकत को टारगेट िकया। पहले नरेंद मोदी को गुजरात में टारगेट िकया। हार गए। अब कलयाण िसंह को टारगेट कर रहे है। कलयाण िसंह को टारगेट कर भाजपा को मजबूत िकया जा रहा है। कई भाजपा िवरोधी दल इस सचचाई को समझते है िक कलयाण िसंह और उमा भारती सरीखे िपछड़े नेताओं को भाजपा छोड़ने से भाजपा के उस सोशल इंजीिनयिरंग को झटका लगा है जो अिखल िहंदुतव में िवशवास रखता है। िजसमें अगड़ों के साथ िपछड़ों को जोड़ने की कवायद थी। आज भाजपा िफर एक बार मधयवरग बिनयों और उंची जाितयों की पारटी रह गई है। यह सचाई है िक कलयाण िसंह ने बाबरी मसिजद िगरवायी लेिकन यह भी सचचाई है िक आज उनके कदम से एक िवचारधारा भी कमजोर हुई है। अब मुसलमानों को यह फैसला लेना होगा िक वे िवचारधारा को सबसे बड़ा दुशमन मानते है या एक वयिकत को जो कलयाण िसंह नाम का है।