Tuesday, April 21, 2009

लंगड़ी सरकार के लिए तैयार रहिये

लालू यादव ने दरभंगा की जनसभा में जो कुछ कहा, उसके गहरे संकेत हैं। उन्हें लगता है कि कांग्रेस की वापसी नहीं होने जा रही। उनके बयान से साफ है कि परिणाम आने के बाद वे यूपीए का हिस्सा नहीं रहेंगे। एेसा लगता है कि बिहार ही नहीं, देश भर से आने वाले नतीजों का उन्हें आभास हो चला है। उनकी पार्टी का आधार खिसक रहा है और कुछ सीटों पर मुस्लिम वोटर कांग्रेस को भी वोट कर सकता है। कुछ और बातें भी साफ हो गयी हैं। अब तक तो यह केवल चर्चा थी लेकिन बाबरी विध्वंस के लिए कांग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराने संबंधी लालू के बयान से साफ हो गया है कि वे और मुलायम सिंह बिहार और यूपी में कांग्रेस को संभलने का मौका नहीं देना चाहते। वे जानते हैं कि वे कांग्रेस की कीमत पर ही आगे बढ़े हैं। यादव-मुस्लिम समीकरण ने इन दोनों को राजनीतिक ताकत दी है। बिहार में जहां नीतीश कुमार की तेज हवा में लालू की लालटेन बुझने की आशंका है, वहीं उत्तर प्रदेश में मायावती का हाथी मुलायम की साईकिल को रौंदता हुआ दिल्ली की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। लालू और मुलायम की राजनीति अब कुछ-कुछ समझ में आने लगी है। प्रत्यक्ष तौर पर वे भले ही यूपीए में बने रहकर मनमोहन सिंह को ही दोबारा प्रधानमंत्री बनवाने की बात कर रहे हैं, हकीकत यह है कि कांग्रेस को कमजोर कर वे इतनी ताकत जुटा लेना चाहते हैं कि तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की सूरत में मायावती की जरूरत ही नहीं रहे। एक सोची समझी रणनीति के तहत ही इन दोनों ने कांग्रेस से तालमेल को सिरे नहीं चढ़ने दिया। एेसा नहीं होता तो मुलायम अमर सिंह के जरिए कांग्रेस पर तीखे हमले नहीं करा रहे होते और लालू बिहार की जनसभाओं में बाबरी विध्वंस के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए नजर नहीं आते।
लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश और बिहार देश के सबसे बड़े राज्यों में गिने जाते हैं। इन राज्यों से ही लोकसभा के लिए 120 सांसद चुनकर आते हैं। जिस तरह के हालात हैं, उनमें कांग्रेस का बिहार में इस बार खाता भी नहीं खुलेगा और उत्तर प्रदेश में उसकी सीटें 2004 के मुकाबले बढ़ने के बजाय और कम होने की आशंका है। 2004 में उसे बिहार में 40 में से 3 और यूपी में 80 में से 9 सीटें नसीब हुई थीं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु से भी कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद नहीं है। इन दो बड़े राज्यों से लोकसभा के लिए 81 सांसद आते हैं। तमिलनाडु में कांग्रेस की सहयोगी डीएमके की इस बार खस्ता हालत है। इसलिए कांग्रेस को भी नुकसान तय है। जो सर्वे आए हैं, उन पर भरोसा करें तो तमिलनाडु की 39 में से कांग्रेस को दो-तीन सीटें ही मिलेंगी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। इससे वाम मोर्चा की सीटें घटेंगी, लेकिन कांग्रेस को इससे ज्यादा लाभ नहीं मिलता दिख रहा। वहां ममता की सीटें बढ़ेंगी। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से कांग्रेस नेता ज्यादा उम्मीदें नहीं पाल रहे हैं। दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल जसे छोटे राज्यों में भी उसकी ताकत घटेगी। गुजरात और महाराष्ट्र से भी उसे बढ़कर सीटें मिलने की उम्मीद नहीं है।
जिन राज्यों में कांग्रेस की ताकत बढ़ सकती है, उनमें राजस्थान, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और केरल हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में तीसरे मोर्चे की ताकत बढ़ती नजर आ रही है। वाम मोर्चा हालांकि पश्चिम बंगाल और केरल में अपनी जमीन खोता दिख रहा है, लेकिन इसके बावजूद वह तीस से अधिक लोकसभा सीटें जीत कर तीसरे मोर्चे को ताकत देगा। जिस तरह के राजनीतिक हालात बन रहे हैं और देश भर से सूचनाएं आ रही हैं, उससे लग रहा है कि कांग्रेस की सीटें 2004 के मुकाबले घट सकती हैं। तब उसे 145 सीटें मिली थीं। भाजपा की सीटों की संख्या 138 थी। 2004 के चुनाव में भाजपा को 1999 के मुकाबले काफी कम सीटें मिली थीं। ऊपर से उसके गठबंधन सहयोगियों का प्रदर्शन भी काफी खराब रहा। इस बार भाजपा पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के बिना चुनाव लड़ रही है। लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राजग निर्णायक नेता और मजबूत सरकार देने के वादे के साथ मैदान में है। भाजपा के पक्ष में कहीं हवा नजर नहीं आ रही। उसके 11 साल पुराने सहयोगी नवीन पटनायक ठीक चुनाव के वक्चत साथ छोड़ गए। हालांकि असम गण परिषद, राष्ट्रीय लोकदल और इंडियन नेशनल लोकदल जसी पार्टियां उसके साथ फिर से जुड़ी भी हैं। इसके बावजूद एेसा नहीं लगता कि 1999 की तरह उसे जनादेश मिल पाएगा।
तो क्या तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी? क्चया उसे इतनी सीटें मिलने की संभावना है कि वह यूपीए और राजग का खेल बिगाड़ दे? बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा, तमिलनाडु में जयललिता, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडु-चंद्रशेखर राव, उत्तर प्रदेश में मायावती और उड़ीसा में नवीन पटनायक कितनी ताकत के साथ उभरते हैं। तीसरे मोर्चे को जिन दलों और नेताओं के साथ आ मिलने की आस है, उनमें लालू-मुलायम-पासवान-शरद पवार और अजित सिंह शामिल हैं। दरअसल, गठबंधन के इस दौर में इस बार भी क्षेत्रीय दल केन्द्र में बनने वाली सरकार का रूप-रंग तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं। लालू-मुलायम और पासवान ही नहीं, शरद पवार जसे क्षत्रपों को भी लगता है कि कांग्रेस की सरकार नहीं बनने जा रही। हालांकि तीसरे मोर्चे के पेंच भी कम नहीं है। मायावती और मुलायम एक मंच पर साथ-साथ खड़े नहीं होना चाहते तो देवगौड़ा और लालू यादव एक-दूसरे को फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करते। इसके बावजूद चुनाव परिणाम आने के बाद की राजनीतिक उठापटक, जोड़तोड़ और परदे के पीछे होने वाली दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक सौदेबाजी देश देखने को अभिशप्त होगा।
दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में जब विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे थे, तब उसे सत्ता का सेमीफाइनल बताया जा रहा था। विश्लेषकों का मानना था कि जिस दल को सेमीफाइनल में बढ़त मिलेगी, वह फाइनल यानि लोकसभा चुनाव में भी बाजी मारेगा। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने दोबारा सरकार बनायी तो कांग्रेस ने दिल्ली में हैट्रिक लगायी और राजस्थान भाजपा के हाथों से छीन लिया। हिसाब-किताब बराबर। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के सहयोग से उमर अब्दुल्ला ने सरकार बना ली। इसलिए कह सकते हैं कि सेमीफाइनल से किसी की हवा नहीं बन पायी। इसका असर लोकसभा चुनाव पर साफ तौर पर देखा जा रहा है। न भाजपा के पक्ष में हवा है और न कांग्रेस के पक्ष में। तीसरे और चौथे मोर्चे ने हालात एेसे बना दिये हैं कि देश एक लंगड़ी-लूली सरकार की तरफ बढ़ता हुआ नजर आ रहा है।

ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com

5 comments:

निर्मला कपिला said...

kya koi aisa doctor hai jo inki tooti hadiyan theek kar sake yaa sari hadiyan hi tod de taki ye log fir khade na ho saken

अविनाश वाचस्पति said...

जब ककड़ी से सरकार बनायेंगे

तो उसकी टांगे टूटी ही पायेंगे

क्‍योंकि नहीं बनाते घिये से

खीरे से।

ककड़ी चाहे कमल की हो

उसकी भी टूटेंगी ही

लकड़ी की होंगी तो

कोई काट डालेगा

क्‍यों नहीं

बेटांगों की सरकार बनाते

लंगड़ी, बेपैर का खतरा ही मिटाते।

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

koi nai baat hai kya. 1989 se langdi sarkar aa rahi hai. waise aajkal aap hain kahan.

Udan Tashtari said...

तैयार है भई!!

अविनाश वाचस्पति said...

उड़नतश्‍तरी जी

आप तो ऐसे कह रहे हैं

जैसे लट्ठ लेकर तैयार हैं

और उसकी दूसरी भी तोड़ डालेंगे।