Thursday, April 23, 2009

निर्वाचन आयोग की साख दांव पर

मंगलवार को नवीन चावला ने मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला। उसी दिन उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रैंस कर कहा कि चावला और एसवाई कुरैशी के निर्वाचन आयुक्त रहते देश में निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं हैं। उन्होंने इन दोनों को हटाने की मांग कर डाली। इससे एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के महासचिव अरुण जेटली ने केन्द्र

सरकार से कहा कि वह उस दस्तावेज को सार्वजनिक करे, जो आरोप-पत्र के रूप में निवर्तमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त एन गोपालस्वामी ने राष्ट्रपति को भेजकर नवीन चावला को चुनाव आयुक्त पद से हटाने की सिफारिश की थी। भाजपा का मानना है कि देश को यह जानने का हक है कि नवीन चावला को किस आधार पर निर्वाचन आयोग से हटाने की सिफारिश तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने की। सरकार ने भाजपा की इस मांग को खारिज कर दिया है।
यह पहला अवसर नहीं है, जब विपक्षी दलों के नेताओं ने नवीन चावला को हटाने की मांग की है। मई 2005 में जब उनकी नियुक्ति हुई थी, उस समय भी खासा बवाल हुआ था। खासकर भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने उनकी नियुक्ति पर कड़ा एतराज जताते हुए कहा था कि उनके वहां रहने से निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे। उन पर कांग्रेस नेताओं का करीबी होने का गंभीर आरोप हैं। और यह आरोप हवा में नहीं हैं। इसके पुख्ता सबूत हैं कि किस तरह कांग्रेस के बड़े नेता उन्हें उपकृत करते रहे हैं। चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश के प्रधान गृह सचिव कुंवर फतेह बहादुर को हटाने का फरमान जारी किया। सभी अवगत हैं कि किसी भी राज्य के गृह सचिव सीधे तौर पर कानून और व्यवस्था से जुड़े होते हैं। उत्तर प्रदेश तो वैसे भी देश के सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों में माना जाता हैं। मुख्यमंत्री मायावती ने इस पर अगर एतराज किया तो उसे नाजायज नहीं कह सकते। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने हरदोई की जनसभा में मायावती को जिस अंदाज में सीबीआई की धमकी दी, उससे साफ है कि केन्द्र सरकार उन्हें परेशान करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। एेसे में अगर मायावती नवीन चावला पर कांग्रेस के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रही हैं तो इसमें गलत क्या है?
भारत के निर्वाचन आयोग की दुनिया भर में एक साख है। उसकी निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्याय सम्मत निर्णयों की विदेशों में भी प्रशंसा होती रही है। दुर्भाग्य की बात है कि अब वही निर्वाचन आयोग राजनीति का अखाड़ा बनता दिख रहा है। सरकार और चावला के खिलाफ मोर्चा भाजपा ने खोला। बाद में कांग्रेस की ओर से भी यह आरोप लगाए गए कि निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी भाजपा के इशारे पर काम कर रहे थे और राजनीति के तहत ही उन्होंने चावला को चुनाव आयुक्त पद से हटाने की सिफारिश की। कांग्रेस और मनमोहन सरकार ने सफाई देने की कोशिश की कि चावला पर लगाए गए आरोप सही नहीं हैं, लेकिन तथ्य बताते हैं कि चावला कांग्रेस के चहेते अफसरों में रहे हैं। 10, जनपथ से उनकी करीबी भी किसी से छिपी नहीं है। 1969 बैच के आईएएस चावला आज तक इन आरोपों का खंडन नहीं कर सके कि उनकी पत्नी रूपिका रन के लाला चमनलाल एजूकेशन ट्रस्ट के लिए राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने जयपुर में छह एकड़ जमीन उपलब्ध करायी थी और ए ए खान, आर पी गोयनका, अंबिका सोनी, डा. कर्ण सिंह और ए आर किदवई ने सांसद निधि से इस ट्रस्ट को पैसा उपलब्ध कराया था। क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि चावला कांग्रेस के खासमखास हैं? यही कारण है कि जब गोपालस्वामी ने उन्हें हटाने की सिफारिश की तो पूरी कांग्रेस चावला के बचाव में उठ खड़ी हुई. मनमोहन सरकार ने केबिनेट की बैठक बुलाकर राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को खारिज करने में जरा भी देर नहीं लगाई गई। इसके कुछ ही समय बाद सरकारी तौर पर एेलान कर दिया गया कि चावला अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे।
तमाम विवादों, आशंकाओं और अटकलों के बीच तीस जुलाई 1945 को दिल्ली में जन्मे नवीन चावला ने 21 अप्रैल को आखिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाल लिया। वे इस पद पर 29 जुलाई 2010 तक रहने वाले हैं। उन्होंने एेसे समय पदभार संभाला है, जब पंद्रहवीं लोकसभा के लिए पहले चरण का मतदान हो चुका है और चार चरणों का मतदान अभी शेष है। भारतीय चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है, जब बीच चुनाव किसी मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल समाप्त हुआ है। एन गोपालस्वामी का कार्यकाल यूं तो साफ-सुथरा रहा, लेकिन अवकाश ग्रहण करने से कुछ ही समय पूर्व राष्ट्रपति को भेजे अपने पत्र में उन्होंने जिस तरह नवीन चावला पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हुए उन्हें चुनाव आयुक्त पद से हटाने की सिफारिश की, उस पर काफी हो-हल्ला हुआ। 16 मई 2005 को जब उन्हें मनमोहन सिंह सरकार ने चुनाव आयुक्त बनाने का निर्णय लिया तो विपक्षी दलों, खासकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने इसका तीखा विरोध किया था। बाद में नौबत यहां तक आ पहुंची कि राजग के 205 सांसदों ने हस्ताक्षर कर राष्ट्रपति से उन्हें चुनाव आयुक्त पद से हटाने की मांग तक कर डाली। राज्यसभा में विपक्ष के नेता जसवंत सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें हटाने की मांग की, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष शिकायत करने का सुझाव दिया। इसी आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने जांच-पड़ताल की और नवीन चावला पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति से उन्हें हटाने को कहा, लेकिन मनमोहन सिंह मंत्रीमंडल ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस पर भी सवाल उठे कि मुख्य चुनाव आयुक्त को किसी चुनाव आयुक्त को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार है भी कि नहीं।
बहरहाल, नवीन चावला ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यभार संभाल लिया है और पहली प्रेस कांफ्रैंस में दूसरे चुनाव आयुक्तों एसवाई कुरैशी और वीएस संपत का विश्वास अर्जित करने की मंशा से उन्होंने कहा है कि तीनों आयुक्तों के अधिकार बराबर हैं। यह भी कहा कि आयोग पूरी तरह निष्पक्ष रहकर काम करेगा. वीएस संपत नए चुनाव आयुक्त हैं, जो चावला के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से खाली हुए पद पर आए हैं। आंध्र प्रदेश कैडर से संपत की सर्विस अभी छह साल की है। कांग्रेस सरकार ने उनकी नियुक्ति भी काफी सोच-विचार कर की है। कांग्रेस जानती है कि अगर अगला लोकसभा चुनाव पांच साल बाद ही हुआ, तो भी उस समय मुख्य निर्वाचन आयुक्त संपत ही होंगे। ये एेसे तथ्य हैं, जिनसे पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल किस तरह निर्वाचन आयोग में अपने मोहरे फिट करने की कोशिश करते हैं। संपत हों या नवीन चावला, उन्हें समझना होगा कि उन्होंने किन परिस्थितियों में नयी जिम्मेदारी संभाली है। उन्हें अपने आचरण, व्यवहार और कार्यो से भी यह साबित करना है कि उनकी निष्ठा किसी दल विशेष के प्रति नहीं हैं। उन राजनीतिक दलों का विश्वास भी उन्हें जीतना होगा, जो उन्हें कांग्रेस के आदमी के तौर पर शक की दृष्टि से देख रहे हैं। कह सकते हैं कि अपनी निष्पक्षता के लिए दुनिया भर में जाने जाने वाले चुनाव आयोग की साख दांव पर है। अगर कोई चुनाव आयुक्त किसी राजनीतिक दल के हाथों की कठपुतली बना तो इस संस्थान की विश्वसनीयता पर बट्टा लगते देर नहीं लगेगी।

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