Monday, April 27, 2009

लेकिन जरूरी है लिट्टे का खात्मा

श्रीलंका में अलग तमिल राष्ट्र हो या नहीं, यह अलग मुद्दा है. लिट्टे ने इसकी आड़ में हिंसा का रास्ता अपनाते हुए वहां जिस तरह के हालात पैदा किये, उनका समर्थन नहीं किया जा सकता. लिट्टे की हिंसा में अब तक नब्बे हजार नागरिकों की जान जा चुकी है. उनमे वहां के राष्ट्रपति प्रेमदासा, कई मंत्री और जाने-माने चेहरे शामिल हैं. भारत यह कैसे भूल सकता है की प्रभाकरन ने 1991 में लोकसभा चुनाव के दौरान तमिलनाडु के श्री पेराम्बुदूर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की भी निर्मम हत्या करा दी थी.
श्रीलंका सरकार द्वारा लिट्टे के खिलाफ जारी कार्रवाई में हवाई हमलों और भारी हथियारों के इस्तेमाल को रोकने के एेलान से भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकारवादियों और तमिलनाडु में तमिल राजनीति करने वालों को निश्चय ही राहत मिली होगी। पिछले कई साल से सेना से लोहा ले रहे लिट्टे ने खुद को पूरी तरह घिरा हुआ पाकर दो दिन पहले एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की थी, जिसे सरकार ने मजाक बताते हुए ठुकरा दिया था। श्रीलंका सरकार की इस निर्णायक सैन्य कार्रवाई का ही नतीजा है कि प्रभाकरण और उनके लड़ाके उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में मात्र छह किलोमीटर परिधि में सिमटकर रह गए हैं। तीन दिन पहले श्रीलंका के रक्षा मंत्री ने एेलान किया था कि जल्द ही प्रभाकरण को पकड़ लिया जायेगा अथवा मार गिराया जायेगा। राजपक्षे सरकार के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह आ गयी है कि युद्ध क्षेत्र बहुत सीमित हो गया है और वहां करीब एक लाख तमिल लोग फंस गये हैं। प्रभाकरण खुद को बचाये रखने के लिये उन्हें ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। उनमें बहुत से बीमार हैं। हजारों एेसे हैं, जिनके पास खाने का कोई सामान शेष नहीं बचा है। बहुत से सैन्य कार्रवाई और लिट्टे के जवाबी हमलों में जख्मी हो गये हैं।
यह और भी दु:खद है कि युद्ध क्षेत्र में बचाव व राहत दलों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा रही है। रेड़क्रास और यूएन के प्रतिनिधि भी लोगों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचा पा रहे हैं। भारत-अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र समेत कई देशों ने श्रीलंका सरकार से अपील की थी कि मानवीय दृष्टिकोण को मद्देनजर रखते हुए वह युद्धविराम घोषित कर जरूरतमंदों को तुरंत राहत व मदद पहुंचाने की मुहिम शुरू करे। यह राहत की खबर है कि अंतत: श्रीलंका सरकार ने फिलहाल हवाई हमलों और भारी हथियारों के इस्तेमाल को स्थगित करने का निर्णय लिया है।
वहां हालात वाकई बहुत खराब हैं। सरकार यह दावा जरूर कर रही है कि युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाले जा सके लाखों लोगों के लिए राहत शिविरों में खाने-रहने व उपचार की व्यवस्था कर दी गयी है, परन्तु वहां से आ रही खबरों से साफ है कि सरकार नाम मात्र की राहत ही उपलब्ध करा पा रही है। इन हालातों के लिये पूरी तरह महेन्द्र राजपक्षे सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सरकार ने लिट्टे से अनेक बार यह अपील की है कि वह हथियार फैंककर आत्मसमर्पण कर दे, लेकिन प्रभाकरण और उनके कमांडो ने सुनवायी नहीं की। उन्हें लगता रहा कि युद्ध क्षेत्र में फंसे तमिल लोगों की ओट लेकर वे बचे रहेंगे, लेकिन सरकार ने इस बार आर-पार का फैंसला लेकर ही कार्रवाई शुरू की थी।
भारत सरकार आमतौर पर पड़ोसी देशों के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देती है, लेकिन तमिलनाड़ु में एम करुणानिधि और जयललिता की तमिल राजनीति उसे श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाने को बाध्य करती रही है। करुणानिधि ने लोकसभा चुनाव में लाभ लेने की मंशा से सोमवार सुबह अचानक आमरण अनशन शुरू कर दिया। राहत की बात है कि श्रीलंका सरकार ने भी इस बीच व्यापक सैन्य कार्रवाई को स्थगित करने का निर्णय ले लिया। इसके बाद करुणानिधि ने अनशन खत्म कर दिया। अब यह जरूरी है कि युद्ध क्षेत्र में फंसे लोगों को वहां से निकालकर उन्हें राहत पहुंचायी जाये। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाये कि युद्ध विराम का लाभ उठाकर प्रभाकरण के लड़ाके भागने न पायें।
श्रीलंका सरकार ने कोलंबो से जारी एक बयान में कहा कि सेना का अभियान अब पूरा हो चुका है और भारी हथियारों, बंदूकों का इस्तेमाल रोक दिया गया है। बयान में कहा गया है कि अब प्राथमिकता युद्ध प्रभावित क्षेत्न में फंसे आम लोगों को बाहर निकालने और उनकी जान बचाने की है। श्रीलंका सरकार के इस बयान के तुरंत बाद ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्नी ने सोमवार की सुबह शुरू हुआ अपना अनिश्चितकालीन अनशन समाप्त कर दिया। छह घंटे बाद ही अपना अनशन वापस लेते हुए उन्होंने बताया कि ऐसा वो केंद्र सरकार की ओर से मिले आश्वासन के बाद कर रहे हैं। करुणानिधि सोमवार की सुबह छह बजे तमिलनाडु की राजनीति के स्तंभ रहे अन्नादुरई की समाधि पर गए और अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने अनशन शुरू करते हुए कहा कि एलटीटीई के संघर्षविराम के बावजूद राष्ट्रपति राजपक्षे ने लोगों को मारना बंद नहीं किया है। अगर वो तमिल नागरिकों को मार रहे हैं तो वो मुङो भी मार दें। श्रीलंका की सरकार वहाँ के तमिलों की ही तरह मेरी भी जान ले ले। डीएमके पार्टी और उनके पारिवारिक लोगों का कहना है कि उन्होंने किसी से इस बारे में सलाह भी नहीं की और ख़ुद ही तमिलों के मुद्दे पर क्षुब्ध होकर अनशन करने का फैसला ले लिया। राज्य के मुख्यमंत्नी और केंद्र में सत्तारूढ़ डीएमके नेता का अनशन राज्य के लोगों और देश के राजनीतिक गलियारों को स्तब्ध करने वाला
विशेषज्ञों की राय में करुणानिधि ने जो काम अब किया है उसे उन्हें इस मुद्दे पर कुछ समय पहले ही कर देना चाहिए था। इससे करुणानिधि अपने पक्ष में एक राजनीतिक माहौल भी बना पाते और सियासी हलकों में दबाव भी। चुनाव के दौर से गुजर रहे भारत में तमिलनाडु राज्य की संसदीय सीटों के लिए 13 मई को मतदान होना है। इस बार राज्य की राजनीति में श्री लंकाई तमिलों का मुद्दा सबसे प्रमुखता से छाया हुआ है और विपक्षी नेता जयललिता सहित कई राजनीतिक मोर्चे करुणानिधि और उनकी पार्टी डीएमके को घेरते रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहे हैं। दो दिन पहले ही जयललिता ने यह कहकर श्री लंकाई तमिलों के मुद्दे को और हवा दे दी कि उनकी पार्टी श्रीलंका के उत्तर में एक पृथक तमिल राष्ट्र की पक्षधर है।

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