Sunday, May 17, 2009
बूढी कांग्रेस की नई उम्मीद
ज्यादा वक्त नहीं बीता है। संसद के पिछले सत्र की बात है। राहुल गांधी मुख्य द्वार से बाहर निकले। इलेक्ट्रोनिक मीडिया के तीन पत्रकार उनके पीछे लपके। राहुल अपनी गाड़ी में बैठने ही वाले थे, जब एक पत्रकार ने पीछे से आवाज लगाई। सर.सर.एक मिनट.आपसे एक कमेंट लेना है। राहुल रुके। पीछे देखा। माथे पर शिकन उभरी। नाराजगी के स्वर में उस पत्रकार से पूछा कि आपकी उम्र क्या है? पत्रकार थोड़ा सकपकाया। सोचा, कहीं कछ गलती तो नहीं हो गयी है। सिर को झटकते हुए जवाब दिया कि 46 वर्ष। राहुल के होठों पर हल्की सी मुस्कान थी। करीब पहुंचे। उस पत्रकार से कहा कि आप मुझसे उम्र में बड़े हैं। आप मुङो सर कैसे कह सकते हैं। मुङो अच्छा लगता, यदि आप मुङो राहुल कहकर बुलाते। वे तीनों मीडियाकर्मी हक्के-बक्के रह गये।
यह किस्सा यहां बताने के पीछे महज इतना ही मकसद है कि जिसे मीडिया का एक वर्ग युवराज कहकर उन्हें महिमामंडित करने की कोशिश करता है, वे तीनों पत्रकार उसी का हिस्सा थे। राहुल ने जिस अंदाज में यह बात कही, उससे उन्हें झटका लगा क्योंकि मीडिया से अपेक्षाकृत थोड़ी दूरी बनाए रखने वाले गांधी नेहरू परिवार के सदस्यों को लेकर तमाम तरह के किस्से कहानियां गढ़ते रहने वाले पत्रकारों को यह उम्मीद नहीं थी कि वह स्वभाव से इतने सरल हो सकते हैं। अगर यह कहा जाए कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने इस लोकसभा चुनाव में अपने सीधे-सच्चे-सरल स्वभाव से देश भर के मतदाताओं को मोहित किया है, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
39 वर्षीय राहुल गांधी लगभग उसी आयु वर्ग में पहुंच चुके हैं, जिसमें उनके पिता राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनकर देश की बागडोर संभाली थी। उन्होंने बहुत विपरीत परिस्थितियों में शपथ ग्रहण की थी। इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री निवास में ही उनके सुरक्षाकर्मियों ने गोलियों से भूनकर हत्या कर डाली थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद संभालने को तैयार किया। सब अवगत हैं कि वे उस समय देश की बागडोर संभालने को पूरी तरह तैयार नहीं थे लेकिन उस हादसे ने उन्हें एेसा करने को विवश कर दिया।
राहुल गांधी 2004 में सक्रिय राजनीति में आए। अमेठी से चुनाव लड़े और जीते। पार्टी में चापलूसी की पुरानी परंपरा है। चारण स्वभाव के नेताओं की कमी नहीं है। उन्होंने सोनिया गांधी पर दबाव बनाना शुरू किया। दो साल पहले सोनिया ने राहुल को आखिरकार महासचिव बनाया। इसके बाद मांग शुरू हो गयी कि उन्हें मंत्री बनाया जाए। अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह जैसों ने दो कदम आगे बढ़ते हुए शिगूफा उछाला कि राहुल में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण और योग्यता मौजूद है। कांग्रेस का एक वर्ग मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद सौंपे जाने को पचा नहीं पा रहे थे। उन्हें लगा कि राहुल का गुणगान करेंगे तो सोनिया गांधी को अच्छा लगेगा। उनकी सोच गलत निकली। 10, जनपथ से उन्हें डांट पड़ी।
लोकसभा चुनाव का एेलान हुआ तो चारण प्रवृत्ति के नेता फिर सक्रिय हुए। धीरे से फिर यह मांग और अफवाह शुरू की गयी कि इस बार राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे। कांग्रेस उन्हें प्रोजेक्ट करेगी। घोषणा पत्र जारी करते समय सोनिया गांधी ने इस मुहिम की हवा निकाल दी। उन्होंने साफ कर दिया कि बहुमत मिलने पर मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। इसके कुछ समय बाद खुद राहुल गांधी और प्रियंका ने भी मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा कि वहीं प्रधानमंत्री होंगे।
राहुल गांधी ने पहली बार देश भर में सघन प्रचार किया। वे रीडर नहीं, लीडर की तरह भाषण देते हुए नजर आए। कुछ अवसरों पर वे पार्टी की घोषित नीति से भटके भी लेकिन एक पल को भी नहीं लगा कि वे जो कुछ कह रहे हैं, उसमें किसी तरह की कुटिलता है। देश भर में डेढ़ सौ से अधिक जनसभाएं कीं। वे इक्कीस राज्यों में गए। दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन किया तो अपने विरोधियों की भी प्रशंसा कर गये। जिनकी तारीफ की, उनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु और जयललिता भी शामिल थे। शोर मचा कि उन्हें राजनीतिक समझ नहीं है। तमिलनाडु में एम करुणानिधि, बंगाल में ममता बनर्जी और आंध्र में राजशेखर रेड्डी के गाल फुलाने की खबरें आईं लेकिन जब उन्हें पता चला कि राहुल गांधी या 10, जनपथ की नीयत में खोट नहीं है तो वह नाराजगी खत्म भी हो गयी। राहुल ने सहयोगियों की नाराजगी को संजीदगी से लिया और फिर कोई एेसी बात नहीं कही, जिससे अनावश्यक गलतफहमी पनपे।
चुनाव प्रचार के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को 125 साल की बुढ़िया बताते हुए मतदाताओं से पूछा कि क्या ये बुढ़िया कांग्रेस देश का भला कर सकती है? अमेठी में अपने भैया का चुनाव प्रचार कर रही प्रियंका गांधी से जब इस पर प्रतिक्रिया पूछी गयी तो उन्होंने मुस्कुराते हुए पत्रकारों से पूछा कि क्या मैं बूढ़ी नजर आती हूं? आमतौर पर पत्रकारों से दूर रहने वाले गांधी-नेहरू खानदान के इन दोनों नौजवान भाई-बहन ने इस बार देश के समक्ष मौजूद समस्याओं पर खुलकर अपने विचार जाहिर किये। भाजपा नेताओं के हमलों के मुस्कराते हुए जवाब दिये। राहुल गांधी ने तमाम दबावों के बावजूद जिस तरह प्रधानमंत्री पद से दूर रहने का एेलान किया, उससे भारतीय मतदाताओं में एक बार फिर इस परिवार के प्रति यह धारणा मजबूत हुई कि वह पदों का भूखा नहीं है। 125 साल की बूढ़ी कांग्रेस को मिले इस जनादेश का एक पुख्ता कारण यह भी रहा।
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6 comments:
bilkul sahi kaha apne rahul desh ki umeed hai kamna karte hain ki vo safal hon mai to unme nehru ji ki chhavi dekh rahi hoon vo bhi hamesha acche sathion ki talash me rehate thhay unki tarah kuchh karne ki bhavna hai jay ho
आपकी समीक्षा बिलकुल सही... राहुल अगले चुनावों में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बना दिए जाएँ तो आश्यर्य नहीं होगा, लेकिन कांग्रेस को बूढी किसने कहा... हम अनुभवी भी कह सकते हैं...
आपसे शत-प्रतिशत सहमति है मेरी.
बहुत सही लिखा.. बधाई
भाई! विरासत में इतने बड़े देश का नेतृत्व हासिल करना है और वह भी लोकतंत्र की नौटंकी जारी रखते हुए, तो कम-से-कम दिखाने में तो सहजता और विनम्रता होनी ही चाहिए न!
bilkul satik tippani. badhai
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