Monday, July 20, 2009

जमीन बचाने व हथियाने की जंग


मित्रों यह मेरी सौवीं पोस्ट है. जिन पर सौंवी पोस्ट लिखना चाहता था, नहीं लिख सका. जिन पर नहीं लिखना चाहता था, उन्हीं पर सौंवी पोस्ट जा रही है. सियासत पर लिखते हुए कोफ्त होती है लेकिन इसके सिवा चारा भी नहीं है. आप सभी दोस्तों का आभारी हूँ, जिनका सहयोग मिलता रहा.
-ओमकार चौधरी


उत्तर प्रदेश में सियासी महाभारत छिड़ गयी है। रीता बहुगुणा जोशी के बयान ने मायावती को मौका दे दिया है। लोकसभा चुनाव में अपने मंसूबों पर पानी फिरने की बड़ी वजह मायावती कांग्रेस के उभार को मानती हैं। वे कांग्रेस पर वार करने का मौका तलाश ही रही थी कि रीता जोशी ने दे दिया। वहां विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल का वक्त है। कांग्रेस और बसपा के बीच
जिस तरह की सियासी जंग शुरू हुई है, उससे लगता है कि यह लड़ाई अभी और तेज होगी। मायावती जिस अंदाज में शासन चलाती हैं, उसमें घटने के बजाय टकराव और बढ़ने की आशंका है। सत्ता और शक्ति उनके पास है। जिन बयानों पर उन्होंने किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत, वरुण गांधी और रीता जोशी के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमें कायम कराकर जेल भेजने का बंदोबस्त किया, कोई और मुख्यमंत्री होता तो शायद नोटिस भी नहीं लेता, क्योंकि राजनीति में इस तरह के जुमले आम बात है। जनवरी 2007 में खुद मायावती ने भी ठीक इसी तरह की भाषा का प्रयोग तब के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के लिये किया था। वे भी उसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर मायावती को जेल की हवा खिलवा सकते थे, लेकिन उन्होंने एेसा नहीं किया। रीता जोशी पर दलित उत्पीड़न एक्ट बनता भी है कि नहीं, यह तो अब अदालत तय करेगी, लेकिन इससे एक बात साफ हो गयी है कि लोकसभा चुनाव से पहले सर्वजन समाज की बात करने वाली मायावती की समझ में आ गया है कि बिना दलितों को एकजुट रखे, वे पावर में नहीं रह पाएंगी। राज्य में बिजली-पानी-बदत्तर होती कानून व्यवस्था और बेरोजगारी बड़ी चुनौती के रूप में उनके सामने हैं। लोगों की नाराजगी बढ़ रही है। खासकर सवर्ण तबके में उनके शासन के तौर-तरीके से नाराजगी बढ़ रही है। एेसा नहीं होता तो लोकसभा चुनाव में बसपा की एेसी गत नहीं होती।
ताजा प्रकरण के बाद कुछ सवाल आम लोगों के मन मस्तिष्क में उठ रहे हैं। रीता जोशी ने अभद्र टिप्पणी की। मायावती ने उन्हें गिरफ्तार करवाकर जेल भिजवा दिया। वकीलों की हड़ताल का बहाना बनाकर दो दिन तक उनकी जमानत को रोके रखा। भीड़ ने लखनऊ में रीता जोशी के घर और कारों को आग लगा दी। पुलिस एक डेढ़ घंटे तक मौके पर नहीं पहुंची। कांग्रेस ने बसपा के एक विधायक के खिलाफ नामजद रिपोर्ट करायी, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। अगर दोषी रीता जोशी हैं तो उनकी गिरफ्तारी के साथ मामला यहीं खत्म होना चाहिए था। इसके आगे की कार्रवाई अदालत में होनी थी, लेकिन मायावती ने इसे सियासी रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने रीता जोशी ही नहीं, कांग्रेस और सोनिया गांधी को भी दलित विरोधी साबित करने की कोशिश की। इसके लिए वे लगातार दो दिन तक लखनऊ में प्रेस कांफ्रैंस करती रही। मानो राज्य में इससे बड़ा मसला कोई है ही नहीं। जिस तरह उन्होंने बेवजह सोनिया गांधी को विवाद में घसीटा, उसे लोगों ने पसंद नहीं किया। इस राजनीतिक लंद-फंद से मायावती खासकर दलित समाज की सहानुभूति तो बटोर सकती हैं परन्तु अन्य तबकों में जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, उससे नुकसान होने की आशंका अधिक है।
अब जरा यह भी समझ लिया जाये कि मायावती कांग्रेस और सोनिया गांधी से इस कदर नाराज क्यों हैं? उन्हें यह नागवार गुजरा कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में दलितों के घर गये। वहां भोजन किया और वहीं एक खाट डालकर सो गए। तब मायावती ने कहा कि उन्हें पता चला है कि कांग्रेस का यह युवराज दलितों से मिलकर जब दिल्ली लौटता है तो विशेष साबुन से स्नान करता है और अपनी शुद्धि भी करवाता है। 2007 में मायावती अपने बलबूते सत्ता में लौटी तो इसलिए क्योंकि उन्हें दलितों के साथ-साथ अगड़ों ने भी वोट दिया। सत्ता में आने के बाद बिगड़ी कानून व्यवस्था की सबसे अधिक शिकार यही अगड़े बने। मुलायम सिंह यादव के कथित गुंडा राज को विदा करने की गर्ज से लोगों ने मायावती को जनादेश दिया, लेकिन वे बिजली-पानी-बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान के बजाय अपनी मूर्तियां लगवाने और बड़े-बड़े पार्क बनवाने में हजारों करोड़ रुपया खर्च करने में लग गयी। विपक्ष में रहते हुए उन्होंने जिन माफियाओं का विरोध किया, लोकसभा चुनाव में उनमें से कई को टिकट थमा दिया। जिस सवर्ण वर्ग ने उन्हें यूपी की सत्ता सौंपी थी, उसी ने लोकसभा चुनाव में उन्हें वोट नहीं देकर एक करारा झटका दे डाला।
मायावती की उम्मीदें दलितों के साथ-साथ मुसलमान और अगड़ों पर टिकी थी। राहुल गांधी ने कुछ हद तक ही सही, मायावती के दलित वोट बैंक में भी सेंध लगायी। मुसलमानों ने सपा-बसपा को कम और कांग्रेस को अधिक संख्या में वोट डाले। सवर्ण और नौजवान मतदाताओं ने भी कांग्रेस में विश्वास जाहिर किया। नतीजतन यूपी में जो कांग्रेस विधानसभा चुनाव में चौथे स्थान पर थी, वह लोकसभा चुनाव में दूसरे नम्बर की पार्टी बन गयी। बसपा पिछड़ गयी। केन्द्र की सत्ता में वापसी के बाद सोनिया गांधी ने मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बनाकर एक और मास्टर स्ट्रोक लगा दिया। यही नहीं, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह मायावती को यह धमकी भी दे आये कि उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमें दर्ज कराकर यदि उत्पीड़नात्मक कार्रवाई की तो ध्यान रहे कि उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच भी चल रही है। उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मायावती को लगता है कि कांग्रेस उनके लिये बड़ा खतरा बन सकती है। वे जानती हैं कि उनकी राजनीतिक जमीन खिसकी तो कांग्रेस को लाभ मिलेगा। ताजा सियाजी जंग की वजह ही यह है कि मायावती अपनी राजनीतिक जमीन को बचाना चाहती हैं और कांग्रेस उसे हथियाना चाहती है।





7 comments:

Anonymous said...

bilkul sahi kaha aapne maya ji ko dar sata raha hai mahlon se ek neta jhopadi walon se rishta badhane chal pada to unke pair ukhdne svabhavik hain, yadi Rahul ka yah abhiyan jari rahe to satta ke mad me choor sashkon ki nav doobni nischit hai.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

तो बस यह सोच कर हैरान होता रहता हूँ कि प्रधानमंत्री बन जाते तो क्या होता ( कुछ मीडिया वालो ने तो कोई कसार ही नहीं छोडी थी इस बाबत )

डॉ. हरिओम पंवार - वीर रस के कवि said...

bilkul sahi kaha aapne maya ji ko dar sata raha hai mahlon se ek neta jhopadi walon se rishta badhane chal pada to unke pair ukhdne svabhavik hain, yadi Rahul ka yah abhiyan jari rahe to satta ke mad me choor sashkon ki nav doobni nischit hai.

dharmendra said...

sabse pehle is century ke liye bahut bahut badhai.
aur jahan baat maya aur congress ki hai to dono bachain hain. maya ko bhi apni satta ki lalch hai to dusri taraf suru se he satta ki laddu khanwali congress ko bhi yahi lag rha hai ki meri laddu maya ke kaise chli gayi. isiliye dono nehle pe dehla marne ke chakar me hain. aakhir jeet to in khandani rahisjado ko hi milegi.

बवाल said...

सन ४७ के आसपास के नेताओं की ग़लतियों का ख़ामियाज़ा अगले सन ४७ तक भुगतना ही पड़ता है।
मनूवादियों की जय। हा हा।

SHEHZAD AHMED said...

सर पहले तो प्रणाम स्वीकार करे। इसके बाद आपको सौवीं पोस्ट की हार्दिक बधाई। क्योंकि सियासत की यह ज़ंग youn ही chalti rahegi। लेकिन आपकी कलम ऐसे javlant muddo par hamesa chalti rahegi or aapke shabd or vichar hame jgate rhenge. ise ummied ke saath aapka apna shehzad ahmed

श्यामल सुमन said...

आपकी चिन्ता से सहमत होते हुए शतक मारने की शतकीय बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com