Monday, September 7, 2009

वाई एस आर, सोनिया और कांग्रेस


वाई एस आर के नाम से लोकप्रिय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. वाई एस राजशेखर रेड्डी को श्रधांजलि देते समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का गला रुंध आया। कैमरों के सामने बड़ी मुश्किल से उन्होंने भावनाओं पर काबू पाने की चेष्टा की, लेकिन नाकाम रहीं। सोनिया ने अपनी सास इंदिरा गांधी, पति राजीव गांधी और देवर संजय गांधी को बेहद दुखद हादसों में खोया है। इंदिरा और राजीव आतंकवाद के शिकार हुए तो संजय गांधी विमान हादसे में मारे गए। कांग्रेस के कुछ ऊर्जावान, नौजवान और संभावनाओं से भरे हुए कुछ अन्य नेताओं को भी इसी तरह काल का ग्रास बनते उन्होंने देखा है। इनमें राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया प्रमुख हैं। पचास और साठ की अल्पायु में यदि कोई इतना दूरदर्शी-ऊर्जावान नेता चला जाए तो यह पूरे देश की क्षति होती है। सोनिया गांधी की इस कदर उदासी के पीछे कहीं न कहीं अपने बहुत करीबियों की वे बेमिसाल यादें हैं, जो हर इस तरह के हादसे के बाद उन्हें और भी परेशान कर जाती हैं।
राजीव गांधी जब तमिलनाडु के श्री पेरुम्ब्दूर में लिट्टे के आत्मघाती हमले के शिकार हुए, तब उनकी उम्र मात्र 46 वर्ष थी। सोनिया और राजीव ने प्रेम विवाह किया था। उन दोनों का दाम्पत्य जीवन 21 वर्ष ही चला कि उन्होंने अपने सबसे प्रिय को अचानक हुए दर्दनाक हादसे में हमेशा के लिए खो दिया। इटेलियन मूल की होने के बावजूद सोनिया ने जिस तरह एक के बाद एक हादसों के बाद खुद को, परिवार और कांग्रेस को संभाला, वह अपने आप में एक मिसाल है। कोई और होता तो वाई एस आर की मौत के बाद ज्यादा से ज्यादा आंध्र प्रदेश की जनता के नाम एक भावुक संदेश देकर कर्तव्य की पूर्ति कर लेता लेकिन सोनिया हैदराबाद गईं। रेड्डी की पत्नी और परिवार के लोगों से मिलीं। उन्हें हिम्मत बंधाने की चेष्टा की। विमान हादसे में माधवराव की मृत्यु के बाद भी इसी तरह के दृश्य देखे गए थे, जब सोनिया उनके परिवार के बीच दो दिन बैठी रहीं।
सोनिया गांधी कांग्रेस जसी एेतिहासिक पार्टी का किस तरह नेतृत्व कर रही हैं, इन घटनाओं से पता चलता है। 2004 में वे चाहतीं तो प्रधानमंत्री बन सकती थीं, लेकिन उन्होंने बड़ा त्याग किया। 2009 में चाहतीं तो अपने पुत्र राहुल गांधी की ताजपोशी करा सकती थीं। डा. मनमोहन सिंह ने यह कोशिश भी की कि कम से कम राहुल केबिनेट मंत्री की उनकी पेशकश को तो मान ही लें, परन्तु वह नहीं माने। निश्चित ही इन घटनाओं ने मौजूदा राजनीति में इस परिवार का सम्मान और भी बढ़ा दिया है। हालांकि यह भी सच है कि सोनिया और राहुल गांधी का जो रुतबा, रसूख और धमक बिना पद के भी है, वह पदों पर बैठे हुए सैंकड़ों लोगों को नसीब नहीं है। सोनिया और राहुल ने विपक्ष के उस आरोप की एक तरह से हवा निकाल दी है कि यह पार्टी तो परिवारवाद और गांधी-नेहरू खानदान की बांदी बनकर रह गई है। यह सही है कि कांग्रेस में 1998 में नए प्राण इसी परिवार ने फूंके लेकिन जिस तरह सोनिया और राहुल महत्वपूर्ण सरकारी पदों से खुद को दूर रखे हुए हैं, वह न केवल दूसरों के लिए मिसाल है, बल्कि विपक्षी हमलों को भोथरा करने की उनकी रणनीति का हिस्सा भी है।
अब वाईएसआर के असामयिक निधन पर सोनिया गांधी के गला रुंध आने के दूसरे पहलू पर गौर करें। कांग्रेस के भीतर इस समय पीढ़ीगत बदलाव का दौर चल रहा है। इसकी गति भले ही धीमी हो लेकिन सोनिया गांधी के फैसलों से साफ है कि कुछ पदों को छोड़कर बाकी पर धीरे-धीरे वे अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व को आगे लाने का निर्णय ले चुकी हैं। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह, प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यलार रवि ही कांग्रेस की ओर से मंत्रीपरिषद में एेसे नेता हैं, जिनकी उम्र सत्तर के पार है। माना जाता है कि राजनीति में पचास और साठ की उम्र में ही जाकर प्ररिपक्वता आती है। यहां तक कि 1984 में 31 अक्तूबर को जब इंदिरा गांधी की दुखद हत्या के बाद राजीव गांधी को सातवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई थी, तब उन्हें भी नौसिखिया कहा गया था। उनके बहुतेरे फैसले एेसे थे, जिनकी विपक्षी दल और मीडिया खिल्ली उड़ाता था। सही मायने में राजीव गांधी में उसी समय परिपक्वता दिखाई दी था, जब काल के क्रूर हाथों ने उन्हें छीन लिया। उस हादसे से तीन दिन पहले उन्होंने खुद अपने एक करीबी से कहा था कि इस बार अगर देशवासियों ने उन्हें दायित्व सौंपा तो वह उन्हें पूरी तरह बदले हुए राजीव गांधी के रूप में देखेंगे। राजीव एेसे समय चले गए, जब वे बेहतर प्रधानमंत्री हो सकते थे।
राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद सौंपने की मांग करने वाले कांग्रेस के भीतर एेसे नेताओं की कमी नहीं है, जो राजीव गांधी के 39 साल की आयु में प्रधानमंत्री बनने के तर्क पेश करते हैं। डा. मनमोहन सिंह ने जब 2004 में प्रधानमंत्री पद संभाला तो वे 72 के थे। हालांकि उनकी दो बार बाईपास सर्जरी हो चुकी है, लेकिन पूरी तरह स्वस्थ, चुस्त-चौकस नजर आते हैं। उनकी केबिनेट में कुछ अहम पदों पर भले ही कुछ उम्र दराज नेता विराजमान हैं लेकिन जिस तरह पचास-साठ की उम्र और उससे भी कम आयु के नेताओं को आगे लाया गया है, उससे संकेत साफ हैं कि अनुभव के साथ-साथ कांग्रेस नई पीढ़ी को धीरे-धीरे आगे ला रही है। आंध्र के दिवंगत मुख्यमंत्री रेड्डी की उम्र भी साठ थी। कांग्रेस अध्यक्ष के गमगीन होने की एक बड़ी वजह यह भी है। रेड्डी ने 2004 के चुनाव से पहले तीन महीने की पदयात्रा करके आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को दस साल बाद पुर्नजीर्वित किया था। 2009 में तो उन्होंने और भी बड़ा करिश्मा किया। 2004 में मिली लोकसभा सीटों में उन्होंने और वृद्धि कर दी। दोबारा वहां सरकार तो बनाई ही। यही वजह है कि चार बार लोकसभा सदस्य और छह बार विधानसभा सदस्य रहे वाईएसआर को सोनिया और मनमोहन सिंह ने दूरदर्शी और संभावनाओं से भरा नेता बताते हुए याद किया।
जमीन से जुड़े नेताओं को आज अंगुलियों पर गिना जा सकता है। खासकर कांग्रेस में एेसे नेता गिने-चुने ही हैं। ज्यादातर राज्यों में सरकारें इसलिए बन जाती हैं क्चयोंकि शासन कर रही सरकारों के खिलाफ स्वभाविक जन नाराजगी होती है। शीला दीक्षित और वाईएसआर जैसे मुख्यमंत्री कम ही देखने को मिलते हैं, जो पांच और दस साल के शासन के बाद फिर भी जन विश्वास हासिल करने में सफल रहें। 2009 में वाईएसआर ने विकास और विश्वास के नारे पर जनादेश हासिल किया। निश्चित ही कह सकते ैहैं कि वे संभावनाओं से भरे नेता थे और कांग्रेस नेतृत्व यदि सदमे में है तो इसकी वजह समझी जा सकती है। वाईएसआर जसे ऊर्जावान नेता साल-दो-साल में तैयार नहीं होते हैं। जनता एेसे ही किसी पर इतना भरोसा नहीं करती है। उनकी मौत के बाद सवा सौ लोगों के जान दे देने की घटना किसी को भी आश्चर्य में डाल सकती है। इससे पता चलता है कि वे कितने लोकप्रिय थे।

4 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

कांग्रेस पार्टी के जायज - नाजायज कर्मों से सहमती रखतालेख है आपका | बढिया है, कांग्रेस प्रेम मैं ही उनत्ति है |

Udan Tashtari said...

वाईएसआर जसे ऊर्जावान नेता साल-दो-साल में तैयार नहीं होते हैं-सत्य वचन!!

jindaginama said...

omkar bhaiya,

aapka haribhoomi mein aajkal kalam ke tahat lekh padhte hain. achchha lagta hai aur sikhne ko milata hai. aapki madarshan ki mujhe bhi darkar hai.

aapka
raj kumar sahu
janjgir, chhattisgarh
correspondent doordarshan & aakashwani

my blog.
www.jindaginama.blogspot.com
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mob. 098934-94714
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jindaginama said...

omkar bhaiya,

aapka haribhoomi mein aajkal kalam ke tahat lekh padhte hain. achchha lagta hai aur sikhne ko milata hai. aapki madarshan ki mujhe bhi darkar hai.

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