Sunday, January 31, 2010

दांव पर मनमोहन सिंह की साख


सतहत्तर वर्षीय डा. मनमोहन सिंह ने जब 22 मई 2009 को दूसरी बार देश की बागडोर संभाली तो देश के हर वर्ग को उनसे ढेरों उम्मीदें थीं। 2004 में जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब उनके बारे में मिली-जुली सी धारणा थी। यह भाव भी था कि सोनिया गांधी की कृपा से ही वे इस महत्वपूर्ण पद तक पहुंचे हैं, लेकिन 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन को दोबारा जनादेश मिला तो इसकी एक वजह मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लोगों का विश्वास भी था। उनकी दूसरी पारी के एक साल पूरा होने में अभी चार महीने हैं, लेकिन आम आदमी में गहरी निराशा देखी जा रही है। दुनिया भर में उनकी ख्याति कुशल अर्थशास्त्री की है। चोटी के देश और उनके राष्ट्राध्यक्ष वैश्विक मंदी के दौर में मनमोहन सिंह के सूझ-बूझ भरे फैसलों की प्रशंसा कर चुके हैं। खुद उनकी सरकार के प्रचार प्रबंधक मंदी के बावजूद साढ़े छह से सात प्रतिशत की विकास दर को बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं, लेकिन घरेलू मोर्चे पर महंगाई को नहीं रोक पाने पर वे बगलें झांकते हुए नजर आ रहे हैं। बल्कि कहना चाहिए कि इसके लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
आम आदमी की बात करके वोट हासिल करने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रिकार्डतोड़ महंगाई पर लंबी रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं। बीते सप्ताह तीन उल्लेखनीय घटनाएं घटीं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी पर यह कहते हुए शब्दबाणों का हमला बोला कि अब उन्हें उनसे महंगाई कम करने की अपील इटेलियन भाषा में करनी पड़ेगी, क्योंकि अन्य भाषा वे समझ नहीं रही हैं। कभी सोनिया और राहुल का स्तुतिगान करने वाले लालू प्रसाद यादव बिहार की सड़कों पर उतर पड़े। उन्होंने महंगाई के विरोध में राज्य बंद कराया और उनके करीब बारह हजार समर्थकों ने गिरफ्तारी दी। लालू के निशाने पर केन्द्र के साथ नीतीश सरकार भी है। तीसरी घटना केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार का पुणे में दिया गया बयान है। उन्होंने कहा कि महंगाई के लिए वे अकेले जिम्मेदार नहीं हैं। मूल्य निर्धारण का फैसला केबिनेट करती है और उसके मुखिया प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह हैं।
अगले महीने संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है। इसमें रेल और आम बजट आएगा, लेकिन बजट में किसी की दिलचस्पी होगी, लगता नहीं। बजट से महंगाई घटेगी और लोगों को राहत मिलेगी, यह उम्मीद भी नहीं है। उम्मीद विपक्षी दलों से भी नहीं है। महंगाई को लेकर वे दो-चार दिन हल्ला करेंगे। संसद ठप करेंगे। कार्रवाई नहीं चलने देंगे। संसद परिसर में स्थित गांधी जी की प्रतिमा के सामने पोस्टर-बैनर लेकर बैठेंगे-फोटो खिंचवाएंगे और इस तरह अपने कत्र्तव्य की पूर्ति कर लेंगे। यह सब महंगाई से त्रस्त लोगों की भावनाओं को कैश करने की मंश से होगा। सांसदों को महंगाई से कोई खास फर्क पड़ता है या उन्हें आम लोगों की चिंता है, एेसा उनके व्यवहार से नहीं लगता। वसे भी जनता ने एेसे प्रतिनिधि संसद नहीं भेजे हैं, जो उनके दुख-दर्द को समझते हों। आजाद भारत की यह एेसी संसद है, जिसमें सर्वाधिक तीन सौ से भी अधिक करोड़पति सांसद पहुंचे हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि सब्जी-दाल, दूध, तेल, आटा और रसोई की दूसरी जरूरी चीजों के दाम कितने बढ़े हैं और उन्होंने आम आदमी का जीवन किस कदर बेहद कठिन बना दिया है। धूमिल ने लिखा है, एक आदमी रोटी खाता है। एक आदमी रोटी बेलता है। एक तीसरा आदमी भी है, जो ना रोटी खाता है और न बेलता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है। यह तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है।
डा. मनमोहन सिंह से लोगों को इसलिए भी उम्मीद थी क्योंकि वे समावेशी विकास की बात करते रहे हैं। लोग जानते हैं कि उन्होंने गुरबत से सात रेसकोर्स तक का सफर लंबे संघर्षो और कठिन परिश्रम से तय किया है। उनकी सादगी और ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है, लेकिन वे काबिल और संवेदनशील प्रधानमंत्री हैं, यह अभी उन्हें सिद्ध करना है। 1990-91 में पीवी नरसिंह राव सरकार ने देश में आर्थिक उदारीकरण के दौर की शुरुआत की थी। उनकी सरकार में वित्त मंत्री का दायित्व यही मनमोहन सिंह संभाल रहे थे। दुर्भाग्य की बात यही है कि आर्थिक उदारीकरण की नीतियों का लाभ धन्नासेठों की तिजोरियों को और ठसाठस भरने में भले ही सफल रहा, लेकिन देश के आम आदमी तक उसका लाभ बीस साल बाद भी नहीं पहुंच पाया है। मनमोहन सिंह महंगाई को तुरंत काबू में करने के ठोस उपाय नहीं करते हैं तो लोगों का उनसे मोहभंग और तेज होगा। तब कांग्रेस को भी संभलने का मौका नहीं मिलेगा।
omkarchaudhary@gmail.com

2 comments:

डॉ. हरिओम पंवार - वीर रस के कवि said...

ji bilkul sahi kaha aapne, abhi tak manmohan ji ne kisis soojh-boojh ka parichay nahi diya hai. aaj to unhone rajy sarkaron se manhgai kam karne ko kaha hai jo darshata hai ki sthiti unke boote se bahar hai, desh ke liye ye halat ghatak hain.

yash said...

apne desh ke shasankal me sabse kamjaur pradhanmantri, thu hai aise kalyug par jo aise naita paida karte hai, shyad hi kisi desh me aisa neta huaa hoga !