Thursday, May 13, 2010

मनमोहन के अजब गजब मंत्री



डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार 22 मई को अपना एक साल पूरा करने जा रही है। उनकी पहली सरकार से इस सरकार की तुलना शुरू हो चुकी है। जाहिर है, उनकी दूसरी सरकार का पहला साल काफी मुश्किल और चुनौती भरा रहा है। महंगाई चरम पर रही। आम आदमी को राहत नहीं मिली। पेट्रोल-डीजल की मूल्य वृद्धि ने मुश्किलों को और बढ़ा दिया। संसद में विपक्ष एकजुट हुआ। काफी सालों बाद वित्त विधेयक पर किसी सरकार को विपक्ष के कट मोशन का सामना करना पड़ा। अन्य मुश्किलों के अलावा जो सबसे बड़ी दिक्चकत मनमोहन सिंह के सामने आई, वह थी कुछ मंत्रियों और घटक दलों के नेताओं की स्वेच्छाचारिता। लगता ही नहीं है कि मंत्री कैबिनेट की सामूहित जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्ध हैं। एनसीपी नेता, कृषि मंत्री शरद पवार के बयानों ने जहां चीनी, चावल, दाल और दूध जसी जरूरत की खाद्य वस्तुओं की महंगाई और ज्यादा बढ़ाने का काम किया, वहीं तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी पर पश्चिम बंगाल की राजनीति हावी रहे। उन्होंने कई मुद्दों पर मनमोहन सरकार के समक्ष कठिनाई पेश की। डीएमके प्रमुख, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि के पुत्र अलागिरी की संसद से अनुपस्थिति ने भी विपक्ष को मुद्दा दे दिया। आईपीएल की फ्रैंचाइजी को लेकर जहां विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर को मंत्री पद छोड़ना पड़ा, वहीं शरद पवार और उन्हीं की पार्टी के कोटे के दूसरे मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी संदेह के घेरे में घिरते नजर आए। कमलनाथ और जयराम रमेश के बीच राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण में अडंगेबाजी पर किच-किच हुई तो जयराम रमेश बड़बोलेपन के कारण चर्चा में रहे। भोपाल के एक दीक्षांत समारोह में उन्होंने गाउन उतार फैंका तो बीटी बैंगन मुद्दे पर बुलाई गई बैठक में उन्होंने एक वज्ञानिक के बार-बार सवाल उठाने पर धमकी तक दे डाली कि यदि वे बाज नहीं आए तो उन्हें उठवाकर बाहर फिंकवा देंगे। वही जयराम रमेश अपने बड़बोलेपन की वजह से इस समय मुश्किलों में फंसे हुए हैं। चीन यात्रा पर गए तो अपने ही गृह मंत्रालय की यह कहकर आलोचना कर आए कि चीनी कंपनियों को अनुमति देते समय भारत का गृह मंत्रालय कुछ ज्यादा ही घबरा जाता है। जाहिर है, मामले को तूल पकड़ना ही था। विपक्ष ने तो उन्हें बर्खास्त करने की मांग की ही, खुद गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर आशंका जाहिर की कि इस तरह के बयानों से भारत के चीन के साथ रिश्तों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। अब जयराम रमेश सफाई देते घूम रहे हैं। वे प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा गृहमंत्री से मिलकर माफी मांग चुके हैं। प्रधानमंत्री ने तो बाकायदा उन्हें फटकार लगाई है। कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक में भी इस पर गंभीर मंत्रणा हुई है। ताजा खबर यह आ रही है कि जयराम रमेश ने सोमवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात कर इस्तीफे की पेशकश की थी, जिसे प्रधानमंत्री ने अस्वीकार कर दिया। फिलहाल यह मसला भले ही निपटा हुआ दिख रहा हो, लेकिन जयराम रमेश को लेकर सरकार की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। एक तो सरकार को यह शर्मिंदगी ङोलनी पड़ रही है कि उनके मंत्नी कहीं भी कुछ भी बोल रहे हैं। दूसरे, बीजेपी ने मामले को गंभीर बनाते हुए रमेश पर चीनी कंपनियों के लाबिइंग का आरोप पर मढ़ दिया है। ऐसे में सरकार और कांग्रेस पार्टी अपने मंत्नियों की टिप्पणियों और उनके कामकाज के तौर तरीकों पर लगातार उठ रहे सवालों से बेहद परेशान है।
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