वो रात
इक ख़बर बन कर आई
इक ऐसी ख़बर
जिसके चेहरे पर हैवानियत पसरी थी
जिसकी आंखें बिना आंसुओं की थीं
जिसके होंठ लहू लुहान थे
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8 comments:
विदेश नीति हो या विकास नीति हम हर जगह मात खा रहे हैं. यहाँ पर नेताओं से सिर्फ़ भ्रष्टाचार की उम्मीद की जा सकती है.जहाँ तक आतंकवाद का सवाल है, इससे से निपटने के मामले में भारत को एक कमज़ोर देश है क्योंकि ये सब वोट की राजनीति की वजह से हो रहा है. देश को वास्तव में संघीय सुरक्षा तंत्र की ज़रूरत है ना कि राज्य पुलिस की जो राज्य सरकारों के हाथ की कठपुतली बन कर काम करती है और आपस में एक दूसरे को दोष देती है कि हमनें तो पहले ही आतंकी हमले की चेतावनी दे दी थी.
your blog is so good......
मुंम्ई की आतंकवादी घटना हो या देशा के अन्य शहरों में हुए हमले। समाचार पत्रो मे रोष दीखता है। जनता में गुस्सा है। सैना आैर सुरक्षा बलो के जवान मारे जा रहे है। किंतु हमारा देश का नेतृत्व चुप है।
दुष्यंत ने लिखा है..
हो गई है पीर पर्वत सी पिंघलनी चाहिए,
अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही,
हो फक्त इक आग लेकिन आग जलनी चाहिए।।
आपसे सहमत हूँ.
क्या कहें भाई, स्तब्ध हैं हम तो...
टिप्पणी करने का समय नहीं है, इस हादसे व्याकुल होने का समय है, इससे ज्यादा क्या हो सकता है! आप ने कुछ न कह कर भी सब कुछ अखबारों के जरिये कह दिया , सच बड़ा दुखद है
socha tha agle din dhoni ki sena ki jeet sabhi akhbaro ki surkhiya hogi, lekin haiwaniyat ki is nangi naach ne meri sari khusiyo ko lut liya. ek aur hamla jo mumbai par nahi bharat par hai. lekin iske sabse bada gunahgar saphed kurte-paijamo me lipte wo neta hai jinhe high alert kehney ke alawe kuch nahi sujhta. kya kahun ander me aag dhadhak rahi hai. kiske hatho me hamare deshwasi surakshit raheng yeh aap jaise intellectual hi decision le aur movement karen.
उस रात
हर नज़र सूख कर,
शिथिल - बेजान हो गई
गुस्सा जो अब तक
दिल में था
मायूसी बनकर रह गया
भीतर की आग
भस्म किए जा रही है...
क्या इस भड़ास को निकालने का
वक्त अभी आया नही?
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