मुंबई पर हमले के बाद से एक बार फ़िर इस पर चर्चा तेज हो गई है कि सरकार आतंकवाद रोकने में नाकाम क्यों साबित हो रही है. भारतीय सेना में महत्वपूर्ण पदों पर रहे लेफ्टिनेंट जनरल ओ पी कौशिक से हाल में मैंने आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की. उनकी मानें तो न देश के राजनेता इस पर गंभीर हैं, न न्याय व्यवस्था, न नौकर शाही और न ही पुलिस. उन्होंने जो कुछ कहा, उसे यहाँ लेखों के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ. - ओमकार चौधरी
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) ओ पी कौशिक
देश पर अब तक जितने भी आतंकवादी हमले हुए, वे बहुत नियोजित और दुखद रहे हैं। हर राज्य की राजधानी को वे निशाना बना रहे हैं। संसद पर हमला हो चुका है। मुंबई पर कई हमले हो चुके हैं। हर हमले में पचास से ज्यादा मृत्यु हो जाती हैं। लगता है, आतंकवादियों के दिल में में कोई डर नहीं है। उनको ये भरोसा हो गया है कि भारत में कोई भी घटना कर दो, सजा नहीं मिलेगी। सजा मिलेगी भी तो पंद्रह-बीस साल बाद। राजनीतिक दबाव आ जाएगा, हम छूट जाएंगे। आतंकी के दिल
में अगर ये डर बैठ जाए कि वह मारा जाएगा तो वारदात नहीं करेगा। आतंकियों में भी फर्क है। उत्तर पूर्व का आतंकी मरने में गर्व समझता है। वह नजदीक आकर वार करता है। कश्मीर और पाकिस्तान के आतंकी मरने से डरते हैं। दूर से आक्रमण करने की कोशिश करते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश की नीतियां ऐसी हैं कि आतंकियों के मन में कोई डर नहीं रह गया है। जब तक उग्रवादी के मन में यह डर नहीं बैठेगा कि वह मारा जा सकता है, तब तक घटनाएं होती रहेंगी।
जितने भी बड़े लोकतांत्रिक देश हैं, सबने कड़े कानून बना लिये हैं। कोई भी आतंकी उन देशों में वारदात करेगा तो उसे सख्त सजा मिलेगी। अमेरिका में आतंकी के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया में भी मृत्युदंड की व्यवस्था है। इन्हीं की देखादेखी भारत में पोटा कानून बनाया गया था। उसमें अमेरिकन कानून का करीब अस्सी प्रतिशत ज्यों का त्यों लिया गया था। जब पोटा बना, तब मुङो भी गृह मंत्रालय बुलाया गया था। मैंने भी सलाह दी। उस कानून में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था लेकिन किसी कारण से वर्तमान सरकार ने उसे रद्द कर दिया। परेशानी यह है कि उसके बदले कोई नया कानून बनाया ही नहीं गया।
इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि हमारे देश में आतंकवादी वारदातें क्यों हो रही हैं और रुक क्यों नहीं रही हैं? पहली बात, सरकार के स्तर पर ढील है। कोई भी नीति तय नहीं है कि सरकार सुरक्षा बल से क्या चाहती है? स्पष्ट निर्देश नहीं देंगे तो कैसे काम चलेगा। या तो सरकार निर्देश दे कि आप आतंकवाद को जड़ से उखाड़ो। सेना अपने ढंग से काम करेगी। या आप कहिए कि इस तरह की कार्रवाई करो कि नए उग्रवादी पैदा नहीं होने पाएं। उसके लिए अलग तरह से कार्रवाई की जाएगी। सरकार यदि कहे कि सरहद पार करके कोई उग्रवादी इस तरफ नहीं आने पाए, तो सेना का काम करने का ढंग अलग तरह से होगा। सरकार कोई नीति बनाने को तैयार ही नहीं। कोई निर्देश देने को तैयार नहीं है।
क्या करे सरकार ?
सरकार की ओर से पहल की जानी चाहिए। सारी राजनीतिक पार्टियां मिलकर एक नीति निर्धारित करें और उस समय सत्ता में जो भी सरकार हो, उस नीति का पालन करे। बताएं कि ये हमारी काउंटर टेरेरिस्ट पॉलिसी है। जैसे अमेरिका और इग्लैंड में हो रहा है। इंग्लैंड में चाहे लेबर पार्टी सत्ता में हो या कंजरेटिव पार्टी, उन्होंने इससे संबंधित नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया। अमेरिका में भी ड्मोक्रेट्स हों अथवा रिपब्लिकन वे आतंक के खिलाफ तय नीति में बदलाव नहीं करते। दूसरी बात, अगर देश में पोटा लागू नहीं किया जाता तो उसी के बराबर का एक सख्त कानून बनना चाहिए, जिसमें उग्रवाद के खिलाफ मृत्युदंड का प्रावधान जसी सजाएं रखी जाएं। ऐसा होने पर उनमें डर फैलेगा। तीसरी बात, आतंकवाद में मदद करने वाले स्थानीय लोगों की पहचान करके उन्हें सख्त सजा दी जानी चाहिए। यह तय मानिए कि स्थानीय मदद होती ही है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई कराची से चले। सीधे होटल पहुंचे। आक्रमण कर दे। स्टेशन पर जाए। लोगों पर हमला कर दे। बिना स्थानीय मदद के यह संभव ही नहीं है।
मीडिया अपनी जिम्मेदारी समङो
मीडिया को बहुत सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। आंतकवादी चाहता है कि उसका नाम फैले। उसका प्रचार हो। मीडिया इस खतरे को समझ नहीं रहा है। कमी सरकारी एजेंसियों की भी है। मीडिया से सही बात शेयर ही नहीं की जाती। आतंकवादी जो कहानी देते हैं, मीडिया में चल जाती है। इसलिए आतंकवाद को रोकने में मीडिया की भूमिका भी तय करनी होगी, जिसे हम मीडिया पोलिसी के रूप में भी मान सकते हैं। इसी के अभाव में मीडिया में खबरों को गलत ढंग से दिखाया जाता है।
कई लोग ऐसे हैं जो कभी कहीं जाते ही नहीं और वहां की खबरों को बढ़ा-चढ़ा पेश करते रहते हैं। इसमें सरकार की ओर से मीडिया के साथ सूचना का ठीक प्रकार से आदान-प्रदान करना जरूरी होगा।
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक सेमिनार हुआ जिसका विषय था टेरेरिज्म, ह्युमन राइटस एण्ड नेशनल सिक्योरिटी। यहां पर एक अंग्रेजी अखबार के चीफ एडिटर सेमिनार शुरू होने से पहले कुछ लोगों के साथ बैठे बढ़-चढ़कर बातें कर रहे थे कि वहां के लोग हमारे देशवासियों जसे नहीं हैं। कह रहे थे कि कशमीर पर हमारा कोई हक नहीं है। हमें उसे छोड़ देना चाहिए। वहां पर हमारे कोई कानून नहीं माने जाते। मैं दूर से ही उनकी बात सुन रहा था। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनसे पूछा कि आप पिछले 15 सालों में कभी कशमीर गए हैं? उन्होंने कहा कि नहीं, मैं कभी नहीं गया। उन्होंने मुझसे पूछा कि आप कौन है? ये बताने से पहले कि मैं कौन हूं, मैंने उनसे कहा कि आप एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं और आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। आप पंद्रह साल से वहां गए ही नहीं और एक एक्सपर्ट की तरह बात कर रहे हैं। फिर मैंने उन्हें बताया कि मेरा नाम लेफिटनेंट जनरल कौशिक है। मैं कशमीर का जीओसी रह चुका हूं। मैंने 18 साल उग्रवादियों को झेला है। आईजी आपरेशन रह चुका हूं। ब्लैक कैट कमांडो का मैं फाउंडर आईजी आफिसर रहा हूं। मैं ईस्टन आर्मी के सातों राज्यों का चीफ रहा हूं। मैंने कहा कि जिम्मेदार पद पर रहते हुए आप बिल्कुल गलत तरीके से बात कर रहे हैं। मेरा मानना है कि मीडिया को भी इस मामले में अपना दायित्व निभाने की जरूरत है।
जब भी इस तरह के हमले होते हैं, उस समय टेलीविजन पर लाइव टेलीकास्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से सारी प्लानिंग की जानकारी उग्रवादियों को मिल जाती है। आंतकवादी को टेरराइज करने की जरूरत है। ये तभी संभव है, जब वह पूरी तरह अंधकार में हो कि मेरा क्या होगा? यहां तो उल्टा हो रहा है। उसे हर मिनट की जानकारी मिल रही है कि अब कमांडो उतर गया। अब उस फ्लोर पर पहुंच गया है। जाहिर है, ऐसे में वह सतर्क हो जाएगा और नुकसान उसे होने के बजाय सेना या सुरक्षाबल के जवानों को होगा।
यही समस्या ब्रिटिश आर्मी के साथ हुई थी, जब ब्रिटिश आर्मी ने अर्जेटीना पर अटैक किया था। अर्जेटीना ब्रिटेन से 22 सौ मील दूर था। फोकलैंड आइलैंड पर अर्जेटीना ने कब्जा कर लिया था। मैं उन दिनों हाईकमिश्नरी में असिस्टैंट मिलेट्री एडवाइजर था लंदन में। लाइव टेलीकास्ट आ रहा था कि अभी हमारे पैराटूपर यहां पहुंच गए हैं। यहां कमांडो उतर गए हैं। यहां गन उतर गई हैं। वे सब खबरें अर्जेटीना को मिल रही थी। उनके पास कोई भी इंटेलीजंस एजेंसी नहीं थी। सेटेलाइट उनके पास नहीं थे। उन्हें सारी सूचनाएं ब्रिटिश मीडिया से मिल रही थीं। एक दम सरकार ने मीडिया को ब्लैक आउट कर दिया। इससे अर्जेटीना को सूचनाएं मिलनी बंद हो गई। सेना को पता ही नहीं चल रहा था कि हो क्या रहा है। दस दिन के भीतर अर्जेटीना की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। मुम्बई में हुए हमलों में जो मीडिया प्रोजेक्चशन हुआ है, वो सुरक्षा के लिहाज से बिलकुल गलत है।
इसलिए देश के मौजूदा हालात को देखते हुए जरूरी है की मीडिया पॉलिसी बने.
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4 comments:
app galat khate hi nahi ho
100 precent sahi kha
शतप्रतिशत आपकी पोस्ट से सहमत हूँ . आभार
बहुत सही लिखा है।
आपकी बात बिलकुल सही है।
रामधारी सिंह दिनकर कहतें है।..
स्वत्व कोई छीनता हो आैर तू त्याग तप से काम ले यह पाप है।
पूण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है।
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