Friday, February 6, 2009
सिरमौर बनने की राह पर टीम इंडिया
महेन्द्र सिंह धोनी और उनकी इस यूथ ब्रिगेड ने वह करिश्मा कर दिखाया है, जो अभी तक कोई भी भारतीय कप्तान अथवा टीम नहीं कर सकी थी। लगातार नौ वनडे मैच जीतने का कारनामा। यह चौथी सीरीज है, जिसे धोनी की टीम ने भारत के नाम किया है। एक समय था, जब भारतीय क्रिकेट सुनील गावस्कर और कपिलदेव के नाम से जाना जाता था। उसके बाद सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड और सौरव गांगुली का दौर आया। यह दौर लंबा खिंचा। यह कहा जाने लगा कि जब ये लोग नहीं होंगे, भारतीय क्रिकेट में एक खालीपन आ जाएगा, जिसे भर पाना आसान नहीं होगा।
ग्रेग चैपल कोच के रूप में आए तो उन्होंने और डराया। दस-दस हजार रन बनाने वाले इन दिग्गजों की काबिलियत पर भी सवाल खड़े किए। यह सोचकर उन्हें कोच बनाया गया था कि वे विश्व विजेता आस्ट्रेलिया को हराने की तरकीब बताएंगे लेकिन यह सच है कि उनके रहते भारतीय टीम और रसातल में चली गई। नामचीन सितारों का मनोबल भी गिर गया। हालांकि भारतीयों को चैपल के इस सुझाव के लिए उनका आभारी होना चाहिए कि युवा क्रिकेटरों को मौके दिए जाने चाहिए। पहले सौरव, फिर द्रविड की वनडे टीम से विदाई हुई। अब सचिन को भी विश्राम दिया जाने लगा है।
गौतम गंभीर, युवराज सिंह, वीरेन्द्र सहवाग और महेन्द्र सिंह धोनी जैसे युवाओं ने कमान संभाल ली है। नतीजा सामने है। उन दिग्गजों के बिना भी टीम नए नए मुकाम हासिल करती जा रही है। पहले ट्वेंटी-ट्वेंटी विश्व कप जीता। उसके बाद से अब तक यह टीम चार वनडे सीरीज अपने नाम कर चुकी है। जिन्हें परास्त किया है उनमें विश्व विजेता आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं। इनमें से कोई भी दोयम दज्रे की टीम नहीं है। नम्बर वन टीम बनने के लिए उसे अब सिर्फ दो पायदान और चढ़ने हैं। अगर धोनी ब्रिगेड न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका को भी हरा देती है तो वह पहले पायदान पर होगी। वैसे भी उसने अब तक जो उपलब्धियां हासिल की है, वह काबिले तारीफ हैं।
इस टीम ने श्रीलंका को चौथे एक दिवसीय मैच में हराकर नया रिकार्ड क़ायम किया है। भारत सीरीज़ तो पहले ही जीत चुका है लेकिन महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में लगातार नौ वनडे जीतकर भारत ने नया इतिहास रचा है। इससे पहले भारत ने सुनील गावसकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ की कप्तानी में लगातार आठ वनडे मैच ही जीते थे। कह सकते हैं कि इस टीम को जीत का चस्का लग चुका है। अब भरोसा कर सकते हैं कि अगर इसी तरह खेलती रही तो इसे विश्व चैम्पियन बनने से कोई नहीं रोक सकता।
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
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7 comments:
गजब भैय्या जी,
राजनीति और खेल पर समान रूप से लेखनी चलाते हैं आप। प्रभाष जी के अलावा ये प्रतिभा बहुत कम लोगों में है।
sir namaskar.
aaj achanak aapke aapke blog se samna hua . jankar achchha laga ki aap bhi yhan maujood hain. aap mujhe nahi jante par main aapko janta hoon" ghera " padhne ke baad se . mujhe ghera aur aannpurna devi ki "shrawni" behad pasand hain . kabhi hamare blog www.sachbolnamanahai.blogspot.com par bhi aayeye............
भाई टीम इंडियां की ज्यादा प्रंशसा मत करो। इनका कुछ पता नही कब लुटिया डुबो दें। वैसे आप सब विषयों को छू रहे हैं। यह आपकी बहुमुखी प्रतिभा का परिचायक है।
खेल पर आज भी बेहतर लिखा है आपने, यही सच है कि माही के धुरंधरों का कोई सानी नहीं। टीम में गजब का संतुलन है और टीम की शारीिरक भाषा ही तब्दील हो गई है, यह बदलते भारतीय िक्रकेट की बानगी भर है, जो उसके शिखर पर विराजमान होने की पटकथा लिख रही है
यशपाल सिंह, http://tirandaj.blogspot.com/
ओमकार जी,
इस टाइम टीम इंडिया जैसा भी कर रही है, हमें तो बढ़िया ही लग रहा है.
पता नहीं कब लौटा लुटिया सब डूबने लग जाये.
खुद बनेगी सिरमौर
हारने वाले को बनाएगी मोर
मोर बनाएगी और
उसका सिर झुकाएगी
तभी तो सच में सिरमौर कहलाएगी।
जिस समय ग्रेग चैपल को कोच बनाया गया था तो मुझे शक हुआ था कि विश्व विजेता आस्ट्रेलिया को हराने के लिए एक आस्ट्रेलियन ही क्या गुर सिखाएगा। मेरे अंतर्मन को शक था। मैंने इस बात को अपने आस-पास लोगों को बताया तो मुझे मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन धीरे धीरे उन्होंने अपने हाथ दिखाने शुरू किये और भारतीय टीम को नई रोशनी देने वाले कप्तान सौरव को अपसैट किया व टीम को भी अपसैट किया। चौधरी साहब आपके लेख पर टिप्पणी के रूप में मेरे ये मन के भाव प्रकट हो गये अन्यथा न लें।
आइयेगा मेरी चौखट पर आपका स्वागत है।
मैं व्यंग्य लेख लिखता हूं। आपकी प्रतिक्रिया को सम्मान से स्वीकार किया जायेगा।
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