दो चरणों के मतदान के बाद इसे लेकर भ्रम और गहरा हुआ है कि केन्द्र में अगली सरकार किसकी होगी। 2004 के मुकाबले
कांग्रेस की ताकत घटने की आशंका है। एेसा उसके मिथ्या अहंकारवादी रवैये और सहयोगियों की बयानबाजी से होने जा रहा है। कांग्रेस को भी कछ-कुछ वैसी ही गलतफहमी हो गयी है, जैसी 2004 में चुनाव से ठीक पहले भाजपा को हुई थी। उसे शाइनिंग इंडिया का प्रचार ले डूबा, कांग्रेस को जय हो की भाव भंगिमा मंहगी पड़ने जा रही है। लालू यादव, रामविलास पासवान, मुलायम सिंह यादव और शरद पवार के बयानों से जनता में यह संकेत चला गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व में अगली सरकार नहीं बनने जा रही। जयललिता, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडु और मायावती की रहस्यमय चुप्पी ने तीसरे मोर्चे के झंडाबरदार प्रकाश करात की चिंताएं बढ़ा दी हैं। ये चार एेसे चेहरे हैं, जो चुनाव परिणामों के बाद बड़ी राजनीतिक सौदेबाजी करके भाजपा के साथ भी जा सकते हैं। यह तभी संभव है, जब भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आये। अंदर से प्रकाश करात भले ही चिंतित हों, लेकिन कैमरों के सामने वे यही दर्शा रहे हैं कि किंग मेकर की भूमिका एक बार फिर लाल ब्रिगेड ही निभाने जा रही है। हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि पश्चिम बंगाल और केरल से लेकर त्रिपुरा तक वामपंथियों की ताकत घटने जा रही है। जिस तरह लालू-पासवान-पवार और मुलायम अपने मतदाताओं को भ्रमित करके 2004जितनी सीटें जुगाड़ने में लगे हैं, वैसा ही भ्रम वामपंथी अपने कैडर में बनाए रखना चाहते हैं। इनमें से किसी को नहीं पता कि जनता क्या फैसला सुनाने जा रही है। इसलिए यह तय है कि असली खेल परिणाम आने के बाद शुरू होगा।
एेसे माहौल में कोई कैसे यह भविष्यवाणी कर सकता है कि सरकार किसकी बनेगी और प्रधानमंत्री कौन होगा? यदि कांग्रेस की ताकत घटी। लालू-पासवान-मुलायम-पवार जैसे नेताओं की चली और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा को सत्ता में आने से रोकने का खेल खेला गया तो वामपंथी अपनी घटी हुई शक्ति के बावजूद यह शर्त कांग्रेस के सामने रखेंगे कि वह इस बार तीसरे मोर्चे को सरकार बनाने के लिये बाहर से समर्थन दे। जाहिर है, कांग्रेस इसके लिये आसानी से तैयार नहीं होगी। गैर भाजपा दलों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने पर वह खुद सरकार का नेतृत्व करना चाहेगी। एेसे में वाम मोर्चा शर्तो के साथ समर्थन के लिए तैयार हो सकता है। वह शर्त डा. मनमोहन सिंह को लेकर होगी। वामपंथी उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। मनमोहन सिंह ने हाल ही में वामपंथियों पर यह कहते हुए फिर जबरदस्त हमला बोला है कि वे हमेशा राष्ट्र की मुख्य धारा के विपरीत दिशा में रहे हैं। अमेरिका से एटमी करार के मुद्दे पर वामपंथियों ने न केवल मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, बल्कि सदन में सरकार को गिराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत भी झोंक दी थी। देखने वाली बात यही होगी कि कांग्रेस एेसी शर्त के सामने झुकते हुए किसी और को प्रधानमंत्री के लिए आगे करेगी या विपक्ष में बैठने का फैसला लेगी।
भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि 2004 के मुकाबले उसकी ताकत में इजाफा होगा। इसके बावजूद अपने गठबंधन सहयोगियों के बल पर वह 272 के जादुई आंकड़े के आस-पास तक पहुंच पाएगी, इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। सत्ता के खेल में भाजपा मात भी खा सकती है। तीसरे मोर्चे और कांग्रेस की नजर उनके 'सेक्यूलर' दोस्त नीतीश कुमार पर है, जो इस बार बिहार में बड़ी ताकत बनकर उभरने वाले हैं। गैर भाजपा-गैर कांग्रेस सरकार बनने की सूरत में नीतीश और शरद यादव राजग से बाहर जाने का निर्णय लेकर भाजपा को बड़ा झटका दे सकते हैं। हालांकि तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की संभावना सबसे कम है, क्योंकि मोर्चा किसी एक सर्वसम्मत नाम पर सहमत होगा, इसकी उम्मीद कम है। मायावती और देवगौड़ा के उसमें रहते मुलायम-पासवान-लालू रहेंगे, लगता नहीं। यदि नीतीश आए तो लालू नहीं होंगे। मायावती रहीं तो मुलायम नहीं रहेंगे। तीसरे मोर्चे की सरकार में बड़ी बाधा कांग्रेस भी रहने वाली है। भले ही दो महीने के भीतर फिर से चुनाव हो जायें, कांग्रेस तीसरे मोर्चे को समर्थन नहीं देगी। यह अंदरखाने तय हो चुका है।
एेसे में अहम सवाल यही है कि सरकार किसकी बनेगी? यदि कांग्रेस मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाने पर अड़ गयी तो वामपंथी भी समर्थन नहीं देने का निर्णय कर सकते हैं। इसके लिए भले ही केन्द्र में भाजपा नीत सरकार के गठन का रास्ता साफ हो जाये। कांग्रेस-वामदलों की अहम की लड़ाई भाजपा और लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करेगी। एेसी सूरत में जयललिता, मायावती, चंद्रबाबू नायडु, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी जैसे क्षत्रप अपनी शर्तो पर राजग सरकार को समर्थन का एेलान कर सकते हैं। परदे के पीछे से निश्चित ही इस समय इन सब विकल्पों, संभावनाओं और गुंजाइशों पर विभिन्न दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत चल रही होगी।
कथित धर्मनिरपेक्ष दलों में जिस तरह की फूट नजर आ रही है, वह भाजपा की संभावनाएं पुख्ता कर रही हैं। भाजपा के पक्ष में एक और बात जा रही है। गैर भाजपा दलों-गठबंधनों-मोर्चो में इधर प्रधानमंत्री पद को लेकर बयानबाजी काफी तेज हुई है। कई दावेदार हैं, जो प्रधानमंत्री बनने के लिए अभी से बाकायदा पोजीशनिंग करा रहे हैं। राजग में प्रधानमंत्री पद को लेकर न भ्रम है और न मारामारी। लालू-पासवान-मुलायम-पवार तो सरेआम कहते घूम रहे हैं कि यूपीए का प्रधानमंत्री कौन होगा, इसका निर्णय परिणाम आने के बाद करेंगे। इस बयानबाजी का सीधा सा अर्थ है कि परिणाम आने के बाद गठबंधन टूटेंगे। निष्ठाएं बदलेंगी। लोग वहीं जाएंगे, जहां उन्हें सुकून दिखायी देगा। यही वजह है कि कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि किसकी सरकार बनेगी, कौन प्रधानमंत्री होगा।
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
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2 comments:
इस बयानबाजी का सीधा सा अर्थ है कि परिणाम आने के बाद गठबंधन टूटेंगे। निष्ठाएं बदलेंगी। लोग वहीं जाएंगे, जहां उन्हें सुकून दिखायी देगा। यही वजह है कि कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि किसकी सरकार बनेगी, कौन प्रधानमंत्री होगा। अभी से कैसे कहा जा सकता है की कोण होगा .......वैसे आप मनमोहन जी को इंडिया टीवी के एग्जिट पोल में नकार चुके है
वैसे उन्हें चिंतित
होना नहीं चाहिए
संभावना कम हो
या न भी हो
कि फरक पैंदा है
वे तो बन ही
चुके हैं एक बार
डरें वे जो वेटिंग
में हैं और नहीं
बने हैं एक भी बार
और संभावना उनकी
भी है दिख रही नकार।
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