लोकसभा चुनाव के प्रचार के समय जिस तरह की बयानबाजी हो रही हैं, उससे राजनीति के गिरते स्तर का तो पता चलता ही है, यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या चुनावी प्रक्रिया इतनी लंबी खिंचनी चाहिए? लम्बी प्रक्रिया में चुनाव प्रचार भी लम्बा खिंचता है और नेता ज्यादा से ज्यादा वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसी बयानबाजी करते हैं, जो समाज को बांटने का काम करती है. यह अपने आप में आश्चर्य की बात है कि विभिन्न दलों में जिम्मेदार पदों पर बैठे नामचीन नेता भी अपनी जुबान पर नियंत्रण खोते दिख रहे हैं। संभवत: यह पहला चुनाव है, जब प्रधानमंत्री और प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बीच मर्यादा को लांघती बयानबाजी देशवासियों ने देखी। शुक्र है, कम से कम उनके बीच तो कुछ दिन से एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने वाली तीव्र बयानबाजी बंद है।
विपक्ष की यह संवधानिक जिम्मेदारी है कि वह सत्तापक्ष की कमजोरियों को सामने लाए, लेकिन इस बार सत्ता में बैठे लोगों की उग्र बयानबाजी देखने को मिल रही है, जिस पर आप हैरान हुए बगैर नहीं रह सकते। खासकर जिन नेताओं को अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती दिखायी दे रही है, वे आपा खोते दिख रहे हैं। बिहार में इस बार लालू यादव को उसकी आधी सीटें भी मिलने की उम्मीद नहीं है, जितनी 2004 में मिली थी। लालू जिस तरह की बयानबाजी पिछले कुछ समय से कर रहे हैं, उससे पता चलता है कि वे वाकई आपा खो बैठे हैं। केन्द्र में वे मंत्री हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह न तो कानून सम्मत है और न ही उनकी उस शपथ के अनुरूप, जो उन्होंने मंत्री पद संभालते समय ली थी। पांच साल तक कांग्रेस के साथ सत्ता का स्वाद चखते रहे लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने सीटों के बंटवारे व तालमेल के वक्त कांग्रेस को जो धोबी पाट मारा, उसका दर्द अभी तक गया नहीं था कि शनिवार को लालू ने यह कहकर दर्द को और बढ़ाने का काम कर दिया है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए भारतीय जनता पार्टी सहित कांग्रेस भी जिम्मेदार है।
यह अजीब बात है कि वे कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में रहते हुए भी कांग्रेस पर वार पर वार किए जा रहे हैं। आश्चर्य का विषय यह भी है कि वे अब भी रेलमंत्री हैं। मनमोहन सिंह की सरकार का हिस्सा हैं। पांच साल तक इसी कांग्रेस के साथ सरकार में रहे हैं, जिसे आज वे बाबरी विध्वंस के लिए भाजपा जितना ही जिम्मेदार बताकर अल्पसंख्यक वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ समय पहले किशनगंज की एक सभा में उन्होंने कहा था कि वे गृहमंत्री होते तो मुसलमानों के बारे में आपत्तिजनक बयान देने वाले वरुण गांधी की छाती पर रोलर चलवा देते। बाद में चाहे जो होता। लालू अल्पसंख्यक वोटों के लिए इस हद तक जा सकते हैं, कोई सोच भी नहीं सकता। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल युनाइटेड ने लालू प्रसाद यादव को उनके इस बयान पर आड़े हाथों लिया है। लालू ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को भारतीय जलाओ पार्टी भी कहा है। शनिवार को दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्नी और जनता दल(यू) के नेता नीतीश कुमार ने लालू यादव को समझौतावादी क़रार देते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद का मुद्दा उठाने के बाद लालू का पर्दाफाश हो गया है और उन्हें बताना पड़ेगा कि आख़िर वो कांग्रेस के साथ सत्ता में भागीदार क्यों रहे हैं।
ओमकार चौधरी
omkarchaudhary@gmail.com
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5 comments:
तलवे से नीचे रसातल तलक।
यह सब ड्रामेबाजी है। आखिर मे सभी मिल बांट कर सत्ता का सुख भोगेगें।बस यह तो जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है।
ओम जी,
कोई स्तर बचा ही कहां है।
कब किस से मिल जाये कब किस से अलग हो जाये,न कोई नीति,न कोई सिद्धांत,न कोई धर्म,न कोई ईमान्।इनका क्या भरोसा है?इनका क्या स्तर?
Sir your script is hard hitting dialog on the back of present Rajniti. The indication that its very wrong to speak in illicit way is right. We all have to think over it.
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